चंडीगढ़/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मैं सभी देशवासियों को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के लागू होने की अनेक शुभकामनाएं देता हूं। चंडीगढ़ प्रशासन से जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक ऐसे समय में जब देश विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं, तब संविधान की भावना से प्रेरित 'भारतीय न्याय संहिता' के प्रभाव का प्रारंभ होना, बहुत बड़ी बात है। देश के नागरिकों के लिए हमारे संविधान ने जिन आदर्शों की कल्पना की थी, उन्हें पूरा करने की दिशा में यह ठोस प्रयास है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के सात दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो चुनौतियां आईं, उन पर गहन मंथन किया गया। हर कानून का व्यावहारिक पक्ष देखा गया, भविष्य के मापदंड पर उसे कसा गया, तब भारतीय न्याय संहिता इस स्वरूप में हमारे सामने आई है। मैं इसके लिए उच्चतम न्यायालय का, माननीय न्यायाधीशों का, देश के सभी उच्च न्यायालयों का विशेष आभार व्यक्त करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 1857 में देश का पहला बड़ा स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया था। उस संग्राम ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं, तब जाकर साल 1860 में अंग्रेज इंडियन पीनल कोड यानी आईपीसी लाए।
उसके कुछ साल बाद, इंडियन पीनल एक्ट लाया गया यानी सीआरपीसी का पहला ढांचा अस्तित्व में आया। इस कानूनों की सोच व मकसद यही था कि भारतीयों को दंड दिया जाए, उन्हें गुलाम रखा जाए। दुर्भाग्य देखिए, आजादी के बाद दशकों तक हमारे कानून उसी दंड संहिता और पीनल माइंड सेट के इर्दगिर्द ही मंडराते रहे, जिसका इस्तेमाल नागरिकों को गुलाम मानकर होता रहा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश अब उस कोलोनियल माइंडसेट से बाहर निकले, राष्ट्र की सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में हो, इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था। इसलिए मैंने 15 अगस्त को लाल किले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है। हमारी न्याय संहिता 'जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए' की उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 1947 में, सदियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश आजाद हुआ, पीढ़ियों के इंतजार के बाद, लोगों के बलिदानों के बाद, जब आजादी की सुबह आई, तब कैसे-कैसे सपने थे, देश में कैसा उत्साह था! देशवासियों ने सोचा था कि अंग्रेज गए हैं, तो अंग्रेजी कानूनों से भी मुक्ति मिलेगी। अंग्रेजों के अत्याचार के, उनके शोषण का जरिया ये कानून ही तो थे। ये कानून ही तब बनाए गए थे, जब अंग्रेजी सत्ता भारत पर अपना शिकंजा बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- नागरिक प्रथम। ये कानून नागरिक अधिकारों के रक्षक बन रहे हैं, 'ईज आफ जस्टिस' का आधार बन रहे हैं। पहले प्राथमिकी करवाना भी कितना मुश्किल होता था, लेकिन अब जीरो प्राथमिकी को भी कानूनी रूप दे दिया गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों कैदियों को छोड़ा गया, जो पुराने कानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। आप कल्पना कर सकते हैं कि एक नया कानून नागरिक अधिकारों के सशक्तीकरण को कितनी ऊंचाई दे सकता है!
प्रधानमंत्री ने कहा कि पुराने कानूनों में दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिसे कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया, उन्हें कमजोर महसूस कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिलाया। साल 2016 में हमने दिव्यांग व्यक्ति के अधिकार अधिनियम लागू करवाया।