देवेंद्र फडणवीस के साथ पटरी पर महाराष्ट्र की राजनीति

आगे सरकार की दिशा क्या होगी?

Photo: devendra.fadnavis FB Page

अवधेश कुमार
मोबाइल: 9811027208

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के साथ महाराष्ट्र की राजनीति के स्थिर आयाम तक पहुंचने का संकेत मिल रहा है| वर्तमान विधानसभा चुनाव परिणाम का स्वाभाविक राजनीतिक फलितार्थ यही हो सकता था| वर्ष २०१४ से देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में महाराष्ट्र की राजनीति के जिस दौर की शुरुआत हुई उस पर २०१९ में ग्रहण लगने का कोई स्वाभाविक कारण नहीं था| भाजपा और शिवसेना दोनों को मिलाकर जनता ने १६१ सीटों का बहुमत दिया था लेकिन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना ने मुख्यमंत्री के रूप में समर्थन देने से इनकार कर स्वयं अपनी दावेदारी पेश की| यहां से महाराष्ट्र की राजनीति अस्वाभाविक, अनैतिक और अस्थिरता के ऐसे दौर में उलझी जहां राजनीतिक विचारधारा का सबसे बड़ा संभ्रम कायम हुआ| शरद पवार के नेतृत्व में राकांपा और कांग्रेस तो राजनीतिक साझेदार थे ही लेकिन महाराष्ट्र में आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति वाले शिवसेना ने सत्ता के नेतृत्व के लिए जिस तरह रंग बदला उसे जनता की स्थायी स्वीकृति मिलनी २०१४ से भारत में आरंभ हुई राजनीति के दौर के बीच असाधारण घटना होती|

सच कहें तो महाराष्ट्र की राजनीतिक सत्ता अब स्वाभाविक विचारधारा की पटरी पर आ गई है| वैसे तो जून २०२२ में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के अंदर हुए विद्रोह ने ही संदेश दे दिया कि अस्वाभाविक वैचारिकता के घुटन को बड़ा वर्ग स्वीकार करने को तैयार नहीं| दूसरी ओर जब अजीत पवार के नेतृत्व में राकांपा भी इस ओर आ गई तो साफ हो गया कि महाराष्ट्र के सत्ता समीकरण में कांग्रेस को छोड़ किसी दल के अंदर सहजता नहीं थी| हालांकि लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ के प्रभावी प्रदर्शन ने फिर एक बार स्वाभाविक राजनीति पर ग्रहण लगाया लेकिन निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ विश्लेषक मान रहे थे कि यह भी एक अस्थाई परिघटना ही है| लोकसभा चुनाव में कई कारकों ने महाराष्ट्र के साथ उत्तर प्रदेश तथा इससे कम परिमाण में कुछ दूसरे राज्यों में अपनी भूमिका निभाई जिसे भाजपा नेतृत्व में राजग की सीटें कम हुईं| परिणाम के बाद स्वयं मतदाताओं को भी लगा उनसे गलती हो चुकी है| पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में मतदाताओं ने अनुकूल परिस्थितियों, सक्षम नेतृत्व एवं समीकरणों की सहजता को देखते हुए अपना जनादेश दे दिया|

किसी भी नेता के मुख्यमंत्री बनने के बाद गठबंधन विजयी हो और सरकार में होते हुए फिर उसे पद पर न लाया जाए तो समस्या होती है| चुनाव परिणाम के बाद सरकार गठन में लगभग दो सप्ताह का समय इसी कारण लगा क्योंकि देवेंद्र को नेता के रूप में स्वीकार करने के लिए एकनाथ शिंदे को तैयार करना था या उन्हें तैयार होना था| चुनाव परिणाम से इतना तो साफ है कि एकनाथ शिंदे के विद्रोह को शिव सैनिकों ने स्वीकार किया और उन्होंने इतने प्रभावी परिवार से पार्टी को अलग कर स्वाभाविक पटरी पर लाने की अकल्पनीय भूमिका निभाई| जून २०२२ में भाजपा नेतृत्व के सामने सरकार की स्थिरता और सुदृढ़ता के लिए आवश्यक था कि शिंदे को नेतृत्व दिया जाए| भाजपा नेतृत्व ने उन्हें स्थाई रूप से मुख्यमंत्री बनाने का कोई वचन दिया होता तो वह अवश्य इसकी चर्चा करते| पूरे चुनाव अभियान के दौरान कोई भी मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया गया| शिंदे के समर्थक और शिवसैनिकों का निश्चित रूप से एक बड़ा वर्ग फिर से उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता होगा लेकिन ऐसा जारी रहना ही फिर महाराष्ट्र की राजनीति के अस्वाभाविक अस्थिर होने का कारण बन जाता| शिंदे को भी जन प्रतिक्रिया का आभास होगा एहसास हो गया होगा कि उद्धव ठाकरे के विरुद्ध विद्रोह से निर्मित  सशक्त नेता की उनकी छवि सरकार गठन में बाधा बनने से काफी कमजोर हो रही है| उनकी वर्तमान भूमिका भविष्य पर ग्रहण लग रहा था| कह सकते हैं कि दूसरे साझेदार अजीत पवार के साथ भाजपा को बहुमत मिल गया था और इसमें शिंदे की अपरिहार्यता नहीं रह गई थी| यह सतह पर दिखने वाला एक पहलू है| भाजपा नेतृत्व को पता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में उनके लिए शिंदे नेतृत्व वाली शिवसेना का साथ विचारधारा के आधार पर दीर्घकालिक काम करने के लिए आज आवश्यक है|

वैसे गठबंधन में साझेदार होने के कारण अजीत पवार के मंतव्य का भी नेतृत्व के संदर्भ में महत्व था और उन्होंने भी परिपक्वता दिखाई| सच कहें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने दूरगामी सोच के साथ अपनी पार्टी और दोनों साझेदारों को किसी स्तर पर असंतुष्ट और नाराज होने का अवसर नहीं दिया| संघ की भी प्रभावी सक्रियता थी| यही कारण था कि सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन तक में थोड़ी बहुत हल्के फुल्के मतभेद होते हुए भी तीनों पार्टियों तथा प्रमुख नेता बिल्कुल एकजुट होकर चुनाव लड़ते रहे| किसी ने भी एक दूसरे के विरुद्ध भ्रम पैदा होने का एक बयान नहीं दिया| यहां यह ध्यान रखना जरूरी है एकनाथ शिंदे जब उद्धव ठाकरे के विरुद्ध विद्रोह कर बाहर आए थे तो उन्हें भी भान नहीं था कि भाजपा उनके हाथों सरकार का नेतृत्व सौंप देगी| भाजपा के पास विधानसभा में १०५ सीटें थीं| जब पत्रकार वार्ता में देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री के रूप में उनके नाम की घोषणा की तो उन्होंने बिल्कुल एक शत-प्रतिशत कृतज्ञ भरे भाव के साथ इसे देवेंद्र की महानता और विशेष कृपा करार दिया था| तो उनके अंदर भी यह भाव अवश्य रहा होगा कि देवेंद्र फडणवीस ही भाजपा और गठबंधन के स्वाभाविक नेता होंगे| वैसे देवेंद्र की शिंदे को गठबंधन से बाहर लाने में बहुत बड़ी भूमिका थी| उन्होंने उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों के विरुद्ध राजनीतिक मोर्चा खोला और पवार को तो सीधी चुनौती दी|

अब प्रश्न है कि आगे सरकार की दिशा क्या होगी? पूरे चुनाव अभियान में देवेंद्र फडणवीस की छवि एक परिपक्व व आत्मविश्वास से भरे हिन्दुत्ववादी शुद्ध स्वयंसेवक भाजपा नेता की बनी| उन्होंने प्रदेश में कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं और उनका समर्थन देने वाले महाविकास आघाड़ी के विरुद्ध लगातार प्रखर आक्रमणों से अपनी छवि वर्तमान राजनीतिक धारा के अनुरूप बनाई| संघ और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से इसकी हरी झंडी थी इसलिए उन्हें खुलकर सामने आने में समस्या भी नहीं हुई| इस मंच से उनके द्वारा द्वारा गाए जा रहे जागो हिंदू गीत भी वायरल था और इसका असर हुआ| भाजपा में केंद्रीय नेतृत्व के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि पहले से प्रखर हिंदुत्ववादी नेता की है| देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक जीवन का यहां से नए दौर की शुरुआत हुई है और महाराष्ट्र में भी आने वाले समय में हमें देश व प्रदेश के लिए अति आवश्यक कट्टर इस्लामवाद के विरुद्ध प्रखर हिंदुत्व की नीति साफ दिखाई देगी| भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने अपने भाषण में हिंदवी स्वराज से लेकर अहिल्याबाई होल्कर का नाम लिया और फिर उसी श्रेणी में बाबा साहब से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य भाजपा नेताओं तथा समर्थन देने वाले विधायकों तक का उल्लेख कर अपनी राजनीतिक धारा को बिल्कुल स्पष्ट किया|  एक है तो सेफ है और बंटेंगे तो कटेंगे नारे को लेकर महायुति में लगा कि मतभेद है| अजीत पवार ने योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे के विरुद्ध बयान दिया| लेकिन देवेंद्र फडणवीस ने अपने साक्षात्कार में स्पष्ट कह दिया कि योगी जी ने कुछ भी गलत नहीं बोला है| औरंगाबाद में उन्होंने वोट जिहाद को वोट के धर् युद्ध से पराजित करने की घोषणा की और इनका भी चमत्कारी कसर हुआ| अजीत पवार के बारे में भी उनकी टिप्पणी थी कि वह बहुत बाद गठबंधन में आए हैं और धीरे-धीरे उन्हें भी समझ में आ जाएगा| यह सरकार गठन के पूर्व  भावी नीतियों को लेकर घोषणा थी| यानी गठबंधन का कोई दबाव संघ तथा भाजपा के अपने हिंदुत्व एजेंडा के मार्ग में बाधा नहीं बनेगा| यही विचारधारा शिवसेना शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के भी भाजपा के साथ बने रहने की गारंटी होगी| धीरे-धीरे शिंदे का व्यवहार भी समान्य पटरी पर आएगा| जब ५ वर्ष तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद देवेंद्र फडणवीस दूरगामी राजनीतिक हित को देखते हुए उपमुख्यमंत्री के रूप में काम कर सकते हैं तो फिर एकनाथ शिंदे क्यों नहीं?

About The Author: News Desk