नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता। उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में साल 2010 से कई जातियों को दिया गया ओबीसी दर्जा रद्द कर दिया था।
उच्च न्यायालय के 22 मई के फैसले को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका सहित अन्य याचिकाएं न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आईं।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, 'आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता।'
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, 'यह धर्म के आधार पर नहीं है। यह पिछड़ेपन के आधार पर है।'
उच्च न्यायालय ने साल 2010 से पश्चिम बंगाल में कई जातियों को दिए गए ओबीसी दर्जे को रद्द कर दिया था तथा सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और राज्य संचालित शैक्षणिक संस्थानों में उनके लिए आरक्षण को अवैध करार दिया था।
अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा, 'वास्तव में इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र मानदंड प्रतीत होता है।
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि 'मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़े के रूप में चुनना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है।'