शरणार्थी बच्चों की शिक्षा का मुद्दा

संकट प्रभावित स्कूली उम्र के ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है

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अमित बैजनाथ गर्ग
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इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी की ओर से हाल ही में जारी एक रपट कहती है कि फरवरी, २०२२ से यूक्रेन और रूस में युद्ध शुरू होने के बाद से यूक्रेन के लगभग दो-तिहाई बच्चों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है| एक अनुमान के अनुसार, यूक्रेन में चार मिलियन बच्चों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है और १,३०० से अधिक स्कूल नष्ट हो गए हैं| इसी तरह के हालात रूस के कुछ क्षेत्रों में भी दिखाई देते हैं, जो इस बात की तस्दीक करते हैं कि युद्ध के बाद दोनों देशों में बचपन संकटग्रस्त है| एक अनुमान के अनुसार, संकटों से प्रभावित दुनिया में करीब २२४ मिलियन बच्चों को शैक्षिक सहायता की आवश्यकता है, जिनमें ७२ मिलियन से अधिक ऐसे बच्चे शामिल हैं, जो स्कूल नहीं जा सकते| जो लोग सीखना जारी रख सकते हैं, उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है|

इसी तरह साल २०२३ में जारी किए गए एक वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आवश्यकता वाले संकटग्रस्त बच्चों की संख्या बढ़ रही है| अध्ययन यह भी दर्शाता है कि समस्या केवल पहुंच की नहीं है, बल्कि गुणवत्ता की भी है| संकटग्रस्त आधे से अधिक बच्चे शिक्षा में न्यूनतम दक्षता भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं| इस अध्ययन में सभी के लिए समावेशी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कही गई है| अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि संकटों में बेहतर सीखने के परिणामों को सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महत्वपूर्ण ह्| वहीं सामूहिक कार्रवाई के लिए वैश्विक भलाई के रूप में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तत्काल आवश्यकता वाले संकटग्रस्त बच्चों पर डाटा अंतराल को भरने की जरूरत है| हालांकि इस दिशा में प्रयास उतने नहीं हो पा रहे हैं, जितने कि होने चाहिए|

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल जाने योग्य ७.१ मिलियन शरणार्थी बच्चों में से ३.७ मिलियन (आधे से अधिक) बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं| स्टेपिंग अप: रिफ्यूजी एजुकेशन इन क्राइसिस नामक रिपोर्ट से पता चलता है कि जैसे-जैसे शरणार्थी बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें शिक्षा तक पहुंचने से रोकने वाली बाधाओं को दूर करना कठिन होता जाता है| केवल ६३ प्रतिशत शरणार्थी बच्चे प्राथमिक विद्यालय जाते हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह ९१ प्रतिशत है| दुनिया भर में ८४ प्रतिशत किशोरों को माध्यमिक शिक्षा मिलती है, जबकि केवल २४ प्रतिशत शरणार्थियों को ही यह अवसर मिलता है| यूएनएचसीआर का कहना है कि स्कूल वह जगह है, जहां शरणार्थियों को दूसरा मौका मिलता है| शरणार्थियों को उनके भविष्य में निवेश करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान विकसित करने का अवसर न देकर उन्हें विफल किया जा रहा है, जो कि नहीं होना चाहिए|

रिपोर्ट कहती है कि शरणार्थियों को अनौपचारिक समानांतर स्कूलों में जाने के बजाय राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें प्री-प्राइमरी, प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूल के माध्यम से औपचारिक, मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम का पालन करने की अनुमति दी जानी चाहिए| इससे उन्हें मान्यता प्राप्त योग्यताएं मिलेंगी, जो विश्वविद्यालय या उच्च व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए उनके लिए स्प्रिंगबोर्ड हो सकती हैं| भले ही शरणार्थी किशोर बाधाओं को पार करके माध्यमिक विद्यालय तक पहुंच जाते हैं, लेकिन केवल तीन प्रतिशत ही इतने भाग्यशाली होते हैं कि उन्हें किसी प्रकार की उच्च शिक्षा मिल पाती है| यह वैश्विक आंकड़ा ३७ प्रतिशत के मुकाबले बहुत कम है| दुनिया भर के शरणार्थी बच्चों की शिक्षा का मुद्दा बहुत जरूरी है| २०१८ के अंत तक दुनिया भर में २५.९ मिलियन से ज्यादा शरणार्थी थे, जिनमें से २०.४ मिलियन यूएनएचसीआर के अधीन थे| उनमें से लगभग आधे १८ साल से कम उम्र के थे और लाखों लोग लंबे समय से मुश्किल हालात में जी रहे थे| इनके घर लौटने की उम्मीद भी कम थी|

वहीं संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में चौंका देने वाले आंकड़े दर्शाते हैं कि संकट प्रभावित स्कूली उम्र के ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है, जिन्हें शैक्षणिक समर्थन की आवश्यकता है| इस रिपोर्ट के अनुसार, जरूरतमंद बच्चों की संख्या वर्ष २०१६ में साढ़े सात करोड़ से बढ़कर अब २२ करोड़ २० लाख तक पहुंच गई है| रिपोर्ट कहती है कि आपात हालात और लंबे समय से चले आ रहे संकट प्रभावित इलाकों में शिक्षा के लिए इन २२ करोड़ से अधिक लड़के-लड़कियों में सात करोड़ ८२ लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं| लगभग १२ करोड़ बच्चे स्कूल में उपस्थिति के बावजूद गणित या पढ़ने में न्यूनतम कौशल हासिल नहीं कर पा रहे हैं| संकटों के असर से जूझ रहे हर १० में से केवल एक बच्चा ही प्राथमिक या माध्यमिक स्तर पर वास्तविकता में निपुणता मानकों पर खरा उतर पा रहा है| संकट प्रभावित इलाकों में हिंसक टकराव, विस्थापन और जलवायु व्यवधान भविष्य के लिए उनके सपनों को छीनने का काम कर रहे हैं|

रिपोर्ट के विश्लेषण के अनुसार, स्कूल से वंचित होने वाले ८४ प्रतिशत बच्चे लंबे समय से जारी संकटों से प्रभावित इलाकों में रह रहे हैं| इनमें अफगानिस्तान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, माली, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सूडान और यमन समेत अन्य देश हैं| यूएन का कहना है कि जरूरतें कभी भी इतनी विशाल और इतनी तात्कालिक नहीं रही हैं| कोविड के कारण निर्धनतम परिवारों में शिक्षा का नुकसान अधिक हुआ है| साथ ही वे समुदाय भी प्रभावित हुए हैं, जो पहले से ही शिक्षा में पिछड़ रहे थे| इन दोनों श्रेणियों में आम तौर पर संकट प्रभावित इलाकों में रहने वाले बच्चे आते हैं| यूएन का कहना है कि संकट प्रभावित बच्चों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा हर हाल में करनी ही होगी| इनमें न्यायोचित, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार शामिल है| हम सभी को शिक्षा को हर स्थान पर हर बच्चे की पहुंच में रखने के प्रयास करने होंगे|

एजुकेशन कैन नॉट वेट (ईसीडब्ल्यू) की रिपोर्ट कहती है कि संकटग्रस्त देशों में केवल २५ मिलियन बच्चे ही स्कूल में हैं और न्यूनतम दक्षता स्तर प्राप्त कर रहे हैं| इन देशों में जबरन विस्थापित आबादी में स्कूल न जाने वाले बच्चों की दर चिंताजनक रूप से उच्च बनी हुई है, जो स्कूली आयु वर्ग के बच्चों के लिए लगभग ५८ प्रतिशत है| लगभग १४.५ मिलियन बच्चों को कार्यात्मक कठिनाइयां हैं और वे स्कूल नहीं जा रहे हैं| इनमें से लगभग ११ मिलियन उच्च-तीव्रता वाले संकटों में केंद्रित हैं| इन क्षेत्रों में माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच अपर्याप्त है, निम्न माध्यमिक विद्यालय आयु वर्ग के लगभग एक तिहाई बच्चे स्कूल से बाहर हैं| उच्च माध्यमिक विद्यालय आयु वर्ग के लगभग आधे बच्चे शिक्षा तक पहुंच पाने में असमर्थ हैं|

एक अनुमान के अनुसार, तीन वर्ष की आयु से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी करने की अपेक्षित अवधि के अंत तक कम से कम २५ मिलियन संकटग्रस्त बच्चे अंतर-एजेंसी योजनाओं और अपीलों से बाहर रह गए हैं, जो कि कुल वैश्विक संख्या का लगभग ९.४ प्रतिशत है| उप-सहारा अफ्रीका के संकटग्रस्त देशों के तुलनात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि ७ से १४ वर्ष की आयु के बच्चों के लिए सीखने की गति बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित देशों की तुलना में औसतन लगभग छह गुना धीमी हो सकती है| वहीं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम और संकट की गंभीरता के बीच एक संबंध है| वैश्विक स्तर पर आपात स्थितियों में स्कूल न जाने वाले लगभग ८३ फीसदी बच्चे और स्कूल जाने वाले लेकिन पढ़ाई से वंचित रहने वाले लगभग ७५ प्रतिशत बच्चे ऐसे देशों में रहते हैं, जिनका जलवायु परिवर्तन जोखिम सूचकांक वैश्विक औसत मूल्य ६.४ से अधिक है|

असल में संकट के समय बच्चों की शिक्षा को सबसे ज्यादा प्रभावित किया जाता है| संकट के दौरान शिक्षा को सबसे पहले निलंबित किया जाता है और सबसे आखिर में बहाल किया जाता है| संकट के समय बच्चों को बेहतर बनाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा| इनमें बच्चों की शिक्षा और कल्याण को बनाए रखना जरूरी है| संकट से प्रभावित बच्चों को शिक्षा सहायता देनी होगी| शिक्षा प्रणालियों को ज्यादा संसाधनों की जरूरत होती है, लेकिन उन्हें मानवीय सहायता का तीन प्रतिशत से भी कम हिस्सा मिलता है| इसे बढ़ाना होगा| शिक्षा प्रणालियों में शिक्षण और कर्मचारियों की कमी को पूरा करना होगा| डाटा अंतराल के कारण निर्णय लेने में दिक्कत होती है और समन्वय की चुनौतियां होती हैं| इन्हें दूर करना होगा| संकट के समय बच्चों को स्कूल से सुरक्षा मिलती है| साथ ही उन्हें जीवन रक्षक भोजन, पानी, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता की सुविधा भी मिलती है| इस दौरान बच्चों को मनोवैज्ञानिक सहायता भी देनी होगी| हमें इन पहलुओं पर गंभीरता से काम करना होगा| किसी भी बच्चे का बचपन संकट में आने पर उसे बाहर निकालना ही होगा, तभी बचपन बचेगा|

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