जर्मनी में मैगडेबर्ग शहर के क्रिसमस बाजार में सऊदी मूल के एक व्यक्ति द्वारा कई राहगीरों को अपने वाहन से कुचले जाने की घटना उस संकट का संकेत देती है, जिसका सामना इस देश को भविष्य में बड़े स्तर पर करना पड़ सकता है। जर्मनी ने पिछले कुछ दशकों में बिना सोच-विचार किए दुनियाभर से आए इतने लोगों को पनाह दे दी है, जिनमें से कई तो अब उसके लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। न सिर्फ जर्मनी, बल्कि पश्चिम के कई देश ऐसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। दरअसल इनकी सरकारों को बहुत बड़ा भ्रम है कि हम तो उदारवाद और बहुसांस्कृतिक समाज के पैरोकार हैं, लिहाजा दुनिया में कहीं से भी कोई शख्स यहां आएगा और रहेगा तो वह यहीं की संस्कृति में घुलमिल जाएगा। बहुत लोग ऐसे होते हैं। उदाहरण के लिए, भारत से कितने ही उच्च शिक्षित लोगों ने रोजगार के सिलसिले में पश्चिमी देशों का रुख किया। उन देशों ने उनके लिए दरवाजे खोले तो उन्होंने भी वहां रहकर बेहतर समाज, मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने में योगदान दिया। भारतीयों के लिए तो कहा जाता है कि ये जहां जाते हैं, वहां अच्छी तरह से घुलमिल जाते हैं। कुछ देशों के नागरिकों के मामले में स्थिति बिल्कुल उलट है। वहां कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो पश्चिमी देशों में प्रवेश पाने की अनुमति मिलने से पहले काफी उदारवादी व सहिष्णु होने का दिखावा करते हैं। एक बार जब उन्हें रहने की अनुमति मिल जाती है, उसके बाद वे उसी देश के लिए मुसीबतें खड़ी करना शुरू कर देते हैं। ऐसी घटनाओं के एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनों उदाहरण हैं।
क्रिसमस बाजार में हमले का आरोपी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। वह डॉक्टर है, जो वर्ष 2006 में जर्मनी आया था। उसे स्थायी निवास की अनुमति दे दी गई थी। इस घटना ने एक बार फिर यह धारणा ध्वस्त कर दी कि आतंकवाद को सिर्फ उच्च शिक्षा से खत्म किया जा सकता है। जो व्यक्ति डॉक्टर हो, जिसने कई मरीजों का इलाज किया हो, क्या उसकी डिग्रियों में कोई कमी रह गई थी? पश्चिमी देश इस हकीकत को स्वीकार करने के लिए अब तक तैयार नहीं हैं कि आतंकवाद की जड़ में कट्टरपंथ का विष है। इसके संपर्क में आने वाला व्यक्ति उच्च शिक्षित हो या निरक्षर, वह गड़बड़ कर सकता है। कुख्यात आतंकवादी अयमान अल-ज़वाहिरी तो सर्जन था। हाफिज सईद के पास दो मास्टर डिग्री हैं। वह पाकिस्तान की इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में शिक्षक रह चुका है। पिछले साल अगस्त में अमेरिका में एच1-बी वीजा पर काम करने वाला एक पाकिस्तानी डॉक्टर आईएसआईएस की मदद करने और 'लोन वुल्फ' हमला करने की कोशिश में लिप्त पाया गया था। मोहम्मद मसूद नामक वह डॉक्टर गिरफ्तारी के वक्त सिर्फ 31 साल का था। अमेरिका ने उसे बेहतरीन माहौल दिया, नौकरी दी, सम्मान दिया, लेकिन वह डॉक्टर आईएसआईएस में भर्ती होकर उसी देश को तबाह करने का सपना देख रहा था! मिनेसोटा के मेडिकल क्लिनिक में अनुसंधान समन्वयक रहा डॉ. मसूद न तो ग़रीब परिवार से था, न अशिक्षा ने उसका रास्ता रोका, न उसके साथ कोई भेदभाव किया गया था। इसके बावजूद उसे अमेरिकी समाज से इतनी नफरत थी कि वह लोगों की हत्याएं करने की साजिशें रच रहा था। अगर उसे समय रहते नहीं पकड़ा जाता तो वह निश्चित रूप से बड़ी वारदात को अंजाम देता। अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया तो कई लोगों ने पश्चिमी देशों में पनाह ली थी। इसके कुछ महीने बाद जर्मनी समेत विभिन्न देशों से ऐसी खबरें आने लगीं कि कथित शरणार्थियों ने किसी आराधना स्थल में तोड़फोड़ की, किसी महिला के पहनावे पर अभद्र टिप्पणी की या किसी अपराध में लिप्त पाए गए। ये घटनाएं कनाडा के लिए भी सबक हैं, जिसने उग्रवाद समर्थक कई लोगों को मनमानी करने की छूट दे रखी है। ये भविष्य में उसके लिए सिरदर्द बनेंगे। बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय! इन देशों में ऐसे हालात के लिए वोटबैंक की राजनीति भी एक बड़ी वजह है, जिससे अब परहेज करना चाहिए।