पढ़ाई को रोचक बनाएं

जब बुनियाद कमजोर रहेगी तो इमारत कैसी होगी?

इस नीति पर पहले भी कई सवाल उठे थे

केंद्र सरकार ने साल के आखिर में परीक्षा उत्तीर्ण करने में असफल रहने वाले कक्षा पांच और आठ के विद्यार्थियों के लिए ‘अनुत्तीर्ण न करने की नीति’ को खत्म कर ऐसा कदम उठाया है, जो भविष्य में स्कूली शिक्षा के दौरान सीखने की प्रक्रिया में सुधार करेगा। इस नीति पर पहले भी कई सवाल उठे थे। जब बच्चे को यह लगता है कि वह पढ़ाई में मेहनत करे या न करे, उसे कोई अनुत्तीर्ण करने वाला नहीं है, तो वह पूर्ण मनोयोग से क्यों पढ़ाई करेगा? ज्यादातर बच्चे मेहनत करते हैं, उनके माता-पिता पढ़ाई की ओर ध्यान लगाने के लिए कहते हैं। वहीं, कुछ बच्चों के रवैए में लापरवाही भी आ जाती है। जब अनुत्तीर्ण करने जैसा कोई प्रावधान ही नहीं होगा तो ये बच्चे पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लेते। इसका उन्हें क्षणिक लाभ तो मिल सकता है, लेकिन कालांतर में इससे हानि ही होगी। जब बुनियाद कमजोर रहेगी तो इमारत कैसी होगी? कुछ साल पहले राजस्थान में एक सामाजिक 'कार्यकर्ता' ने विचित्र मांग के साथ नई बहस छेड़ दी थी। उन्होंने कहा था कि 'अंग्रेजी ऐसा विषय है, जिसमें कई बच्चों को बहुत संघर्ष करना पड़ता है, कुछ बच्चे तो इसमें बमुश्किल उत्तीर्ण हो पाते हैं, कई बच्चे अन्य विषयों में उत्तीर्ण हो जाते हैं, लेकिन अंग्रेजी में अनुत्तीर्ण रहते हैं ... इसलिए यह विषय ही हटा देना चाहिए!' कुछ लोगों ने उनकी हां में हां मिलाई थी और दावा किया था कि उन्हें स्कूली पढ़ाई के दौरान अंग्रेजी की किताबें बिल्कुल नहीं सुहाती थीं, परीक्षा में इसका प्रश्नपत्र हाथ में आते ही पढ़ा-पढ़ाया सब भूल जाते थे, इसलिए यह सुझाव सही है! हालांकि उनके इस सुझाव का काफी विरोध हुआ। उनमें वे लोग भी शामिल थे, जो पढ़ाई के दिनों में अंग्रेजी को खास पसंद नहीं करते थे, लेकिन इस विषय का महत्त्व जानते थे। एक ओर जहां दुनियाभर में अंग्रेजी का दबदबा बढ़ता जा रहा है, वहीं स्कूली शिक्षा में कुछ बच्चों को इससे दूर कर देने का मतलब होता- उन्हें भविष्य में कई अवसरों से वंचित करना।

अगर कोई विषय पढ़ने में कठिन लगता है तो उन कठिनाइयों को दूर किया जाए। आज किसी भी विषय को रोचक ढंग से पढ़ाने-समझाने के लिए ढेरों विकल्प मौजूद हैं। इसी तरह जो बच्चे स्कूली पढ़ाई में आशानुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाते और उनके अनुत्तीर्ण होने की आशंका है तो इसका समाधान यह नहीं है कि उन्हें ' खास तरह की छूट' दे दी जाए। ज्ञान प्राप्त करने में ऐसी छूट आलस्य का कारण बनती है, जो भविष्य में बहुत महंगी पड़ सकती है। इसका समाधान यह है कि शिक्षक उन बच्चों की पहचान करें, जिनका पढ़ाई में प्रदर्शन कमजोर है। उन पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। उनके लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगाई जा सकती हैं। उनके अभिभावकों से संपर्क कर कई बातों का पता लगाया जा सकता है। वे स्कूल के बाद किन गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, घर में कितने घंटे पढ़ाई करते हैं, शिक्षा में अपनी प्रगति के बारे में क्या बताते हैं, इनके दोस्त कौन हैं, उनका प्रदर्शन कैसा है ... जैसे कुछ सवाल पूछकर 'समस्या' की असल वजह को आसानी से मालूम किया जा सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब शुरुआती कक्षाओं में किसी विद्यार्थी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इसकी अलग-अलग वजह हो सकती हैं। यह भी देखा गया है कि ऐसे विद्यार्थी बाद में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। कई महान वैज्ञानिकों, लेखकों, गणितज्ञों का जीवन ऐसा रहा है। इस बदलाव में उनके शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे विषय कुछ कठिन माने जाते हैं, लेकिन इन्हें रोचक ढंग से पढ़ाया जाए तो ये विद्यार्थियों को बहुत सरल लगते हैं। शिक्षकों द्वारा किए गए ऐसे प्रयोग परीक्षा परिणाम सुधारने में सहायक सिद्ध होते हैं। कुछ शिक्षक ऐसे बच्चों के साथ बहुत सख्त और रूखा बर्ताव करते हैं। किसी विद्यार्थी को कक्षा में खड़ा कर सबके सामने अपमानित करने, प्रार्थना सभा में अलग करने, उसकी पिटाई करने ... जैसे तरीके बहुत प्रचलित रहे हैं। इससे उस विद्यार्थी का प्रदर्शन तो नहीं सुधरता, अलबत्ता वह खुद को असहाय महसूस करते हुए पढ़ाई से पीछा छुड़ाने की कोशिश जरूर करने लगता है। इक्कीसवीं सदी में ऐसे 'तरीकों' के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

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