मिटाना होगा आत्महत्याओं का कलंक

आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण आर्थिक पक्ष को माना जाता है

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रमेश सर्राफ धमोरा
मो.  9414255034

भारत में आए दिन आत्महत्या की घटनाएं घटित होती रहती है| यहां हर चार मिनट में एक आत्महत्या की जाती है| यहां शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जब किसी न किसी इलाके से गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, कर्ज जैसी तमाम आर्थिक तथा अन्य सामाजिक दुश्वारियों से परेशान लोगों के आत्महत्या करने की खबरें न आती हों्| आत्महत्या करना सभ्य समाज के माथे पर एक कलंक के समान है| आत्महत्या में व्यक्ति स्वयं को दंडित करते हुए अपनी जान दे देता है| ऐसा घिनोना कार्य कोई व्यक्ति तभी करता है जब वह चारों तरफ से निराश हो जाता है|

आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण आर्थिक पक्ष को माना जाता है| उसके बाद मानसिक, पारिवारिक व अन्य बहुत से कारण हो सकते हैं्| आर्थिक रूप से कमजोर होने पर व्यक्ति स्वयं को गिरा हुआ महसूस करता है और अंत में वह आत्महत्या करने जैसा घिनौना कदम उठा लेता है| हम आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं कि बहुत से परिवारों ने आर्थिक कर्म से सामूहिक आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर ली| बहुत से किसान अपना खेती का कर्ज नहीं चुका पाने के कारण भी बड़ी संख्या में आत्महत्या करते हैं्| आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने कानून तो बना दिया मगर उसका प्रभाव समाज पर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है| प्रेम में असफल होने पर भी बड़ी संख्या में नवयुवक युवतियां आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं्|

आंकड़ों की दृष्टि से भारत आत्महत्याओं के मामले में दुनिया में सिरमौर बनता जा रहा है| आत्महत्या रोकने की दिशा में अब तक सरकारी स्तर पर जितने भी प्रयास हुए हैं वह सब नाकाम साबित हुए हैं्| सरकारी आंकड़ों में जितनी आत्महत्या की संख्या दर्शायी जाती है उससे कई गुना अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान गंवा रहे हैं्| मगर आत्महत्या की घटनाओं को रोकने की कोई सार्थक पहल नहीं हो पाई है| खेती के लिए लिया गया कर्ज़ नहीं चुका पाने के कारण भी बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं्| मगर सरकारी बैंकों, साहूकारों के कर्ज से परेशान किसान आज भी आत्महत्या कर रहें हैं्| उन्हें रोकने की दिशा में भी सरकार ने कोई विशेष पहल नहीं की है| बैंक आज भी किसानों से जबरदस्ती कर्ज वसूली के लिए उनकी जमीने नीलाम कर रहे हैं्| इसी के चलते किसान मजबूर होकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं्|

भारत में आत्महत्या एक प्रमुख समस्या है| राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार २०२२ में १७१,००० आत्महत्याएं की गईं थी जो २०२१ की तुलना में ४.२ प्रतिशत अधिक थी | प्रति एक लाख की जनसंख्या पर आत्महत्या की दर २०२२ में बढ़कर १२.४ हो गई जो आंकड़ो के हिसाब से सर्वोच्च थी| २०२२ के दौरान आत्महत्याओं में २०१८ की तुलना में २७ प्रतिशत की वृद्धि हुई और भारत में दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्याएं हुईं्| वैश्विक आत्महत्या मौतों में भारत के आंकड़े १९९० में २५.३ प्रतिशत से बढ़कर २०१६ में महिलाओं में ३६.६ प्रतिशत और पुरुषों में १८.७ प्रतिशत से बढ़कर २४.३ प्रतिशत हो गये| २०१६ में १५-२९ वर्ष और १५-३९ वर्ष के आयु समूहों में आत्महत्या मृत्यु का सबसे आम कारण था| दैनिक वेतन भोगी लोग आत्महत्या पीड़ितों का २६ प्रतिशत हिस्सा थे| जो आत्महत्या के आंकड़ों में सबसे बड़ा समूह था|

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार २०२२ में राज्यों में सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र (२२,७४६) में हुईं्| इसके बाद तमिलनाडु में १९,८३४ और मध्य प्रदेश में १५,३८६ आत्महत्याएं हुईं्| चार राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल को मिलाकर देश में हुयी कुल आत्महत्याओं में से लगभग आधी उक्त प्रदेशों में हुयी थी| नागालैंड में केवल ४१ आत्महत्याएं हुईं्| महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में २०१७ से २०१९ के दौरान भारत में लगभग आधी आत्महत्याएं हुयी हैं्| केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में सबसे अधिक आत्महत्याएं हुईं, उसके बाद पुडुचेरी का स्थान रहा| बिहार और पंजाब में २०१८ की तुलना में २०१९ में आत्महत्याओं के प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुयी थी|

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच सालों में आत्महत्या की घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ता हुआ दिखता है| २०१७ में देश में १,२९,८८७ आत्महत्याओं की मामले रिकॉर्ड किए गए थे| तब आत्महत्या दर ९.९ प्रतिशत थी| आत्महत्या दर प्रति लाख आबादी पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं को दर्शाता है| २०१७ के आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति लाख ९.९ आत्महत्या की घटनाएं दर्ज की गईं थी| २०१८ में आत्महत्या दर में इजाफा हुआ और ये बढ़ कर १०.२ पर पहुंच गयी थ्| तब देश में १,३४,५१६ आत्महत्या के मामले दर्ज हुए थे| २०१९ में कुल १,३९,१२३ लोगों ने तो २०२० में ये संख्या बढ़कर १,५३,०५२ हो गई थी| २०२१ में आत्महत्या के १,६४,०३३ मामले हुये थे|

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तुलनात्मक आंकड़े बताते हैं कि भारत में आत्महत्या की दर विश्व आत्महत्या दर के मुकाबले बढ़ी है| भारत में पिछले दो दशकों की आत्महत्या दर में एक लाख लोगों पर २.५ फीसद की वृद्धि हुई है| आज भारत में ३७.८ फीसद आत्महत्या करने वाले लोग ३० वर्ष से भी कम उम्र के हैं्| दूसरी ओर ४४ वर्ष तक के लोगों में आत्महत्या की दर ७१ फीसद तक बढ़ी है| २०१८ में पारित हुए मेंटल हेल्थ केयर एक्ट २०१७ के तहत भारत में आत्महत्या के अपराधीकरण का कानून खत्म करते हुए मानसिक बीमरियों से जूझ रहे लोगों को मुफ्त मदद का प्रावधान किया गया है| इस नए कानून के तहत आत्महत्या का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को मदद पहुंचाना, इलाज करवाना और पुनर्वास देना सरकार की जिम्मेदारी होगी|

भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ से जूझ रहे लोगों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है| हालांकि इस मामले में अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कोई ठोस बयान जारी नहीं किया गया है| लेकिन विश्व के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों पर तुरंत संज्ञान लेने की जरूरत है| विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर साल लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं्| जिनमें से २१ फीसदी आत्महत्याएं भारत में होती है| विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सरकारों को सलाह दी गई है कि आत्महत्या का मीडिया ट्रायल नहीं हो| देश में अल्कोहल को लेकर ठोस नीति बनाई जाए्| आत्महत्या के संसाधनों पर रोक लगाते हुए आत्महत्या के प्रयास करने वालों की उचित देखभाल की जाए्|

आत्महत्या जैसे मामलों को रोकने के लिए समाज के हर एक जिम्मेदार व्यक्ति को सामने आने की जरूरत है| जिससे ज्यादा-से-ज्यादा लोग इस बात से जागरूक हो सकें और आत्महत्या जैसे मामलों में कमी लाई जा सके| सभी को इस बात को समझने की जरूरत है कि आज की इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में तनाव की स्थिति कभी कम तो कभी ज्यादा बनी रहती है| परंतु इसका समाधान अपनी जिन्दगी को समाप्त कर लेना नहीं हैं्| जानबूझकर खुद को मारना आत्महत्या या फेलो डे से के रूप में जाना जाता है| भारतीय दंड संहिता, १८६० की धारा ३०९ आत्महत्या से संबंधित है| इसमें कहा गया है कि जो कोई भी आत्महत्या का प्रयास करेगा और इस तरह के अपराध को अंजाम देगा उसे एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास, जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा| विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या के मामलों के अध्ययन के बाद सरकार और गैर-सामाजिक संगठनों को मिल कर एक ठोस पहल करनी होगी| इसके लिए जागरुकता अभियान चलाना होगा| ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने की ठोस रणनीति के बिना देश में बढ़ती आत्महत्यों पर रोक लगाना मुश्किल होगा| सरकार को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले आर्थिक-सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों की गहराई से पड़ताल करनी चाहिये| साथ ही ऐसे उपाय करे कि लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने का विचार ही दिमाग में न लाए्|

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