भारत में परीक्षाओं में नंबरों का हद से ज्यादा महिमा-मंडन किया जा रहा है। इसके दुष्परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। आंध्र प्रदेश के काकीनाडा जिले में एक सरकारी कर्मचारी अपने दो छोटे बच्चों की हत्या कर फंदे पर झूल गया, क्योंकि उनका शैक्षणिक प्रदर्शन कमजोर था। उसे चिंता थी कि अगर बच्चे अभी इतने कमजोर हैं तो 'प्रतिस्पर्द्धात्मक दुनिया' में कैसे सफल होंगे! परीक्षाओं में सफलता पाना अच्छी बात है। क्या यह बच्चों की जिंदगी से बढ़कर है? यह भी तो हो सकता था कि ये बच्चे भविष्य में अच्छा प्रदर्शन करते और जीवन में सफल होते! शुरुआती कक्षाओं में किसी परीक्षा के नंबर देखकर यह अंदाजा लगाना कि उस बच्चे का कोई भविष्य नहीं है, घोर अनुचित है। ऐसे लोगों को आइंस्टीन के बारे में पढ़ना चाहिए। उन्होंने बचपन में ऐसा कोई कमाल नहीं किया था, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि इस बच्चे में बड़ा वैज्ञानिक बनने के गुण हैं। ईश्वर ने हर बच्चे को कोई-न-कोई प्रतिभा देकर भेजा है। अगर मौजूदा व्यवस्था उसे नहीं पहचान पाती, उसकी प्रतिभा का सकारात्मक उपयोग नहीं कर पाती तो यह स्पष्ट रूप से उसकी विफलता है। इसमें बच्चे का क्या दोष है? हमारे देश में जैसी शिक्षा प्रणाली रही है, उसने बड़ी-बड़ी प्रतिभाओं का भारी नुकसान किया है। असल में यह देश का नुकसान था। ऐसे कितने ही लोग मिल जाएंगे, जो बचपन में बहुत अच्छी चित्रकारी करते थे, लेकिन उन्हें एक दिन स्कूल में ऐसी डांट पड़ी कि इससे हमेशा के लिए तौबा कर ली। कई लोग खेलकूद में बहुत अच्छे थे, लेकिन उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। अगर प्रोत्साहन मिलता तो वे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धाओं में इतिहास रचते।
इतनी आबादी होने के बावजूद हमारा देश ओलंपिक मेडलों की सूची में कहां है? भारत की नौजवान आबादी के कारण इसे युवाओं का देश कहा जाता है। वहीं, चीन और जापान, जो (कुल प्रजनन दर में भारी गिरावट के कारण) बुजुर्गों के देश कहलाते हैं, वे इस सूची में कहां हैं? पढ़ाई-लिखाई की ओर ध्यान देना सराहनीय है। जो बच्चा अच्छे नतीजे लेकर आए, उसे बधाई मिलनी चाहिए। इसके साथ ही उन बच्चों का भी हौसला बढ़ाना चाहिए, जिनके कम नंबर आए हैं। परीक्षा को जीवन-मरण का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। परीक्षाओं के नतीजे आते ही कई परिवारों में भयानक दृश्य देखने को मिलते हैं। सबसे पहले तो उस बच्चे को खरी-खोटी सुनाई जाती है। उसकी अक्ल पर सवालिया निशान लगाया जाता है। उसे मिलने वाली 'सुविधाओं' में भारी कटौती कर दी जाती है। घर के बड़े-बुजुर्ग उसे डांट-फटकार लगाते हुए बताते हैं कि हमारे ज़माने में ऐसा होता था! अगर पड़ोस या रिश्तेदारी में किसी बच्चे के अच्छे नंबर आ गए तो उसका उदाहरण दे-देकर ताने मारे जाते हैं। क्या इस तरह उस बच्चे का प्रदर्शन सुधारा जा सकता है? क्या इस तरीके से बच्चे को तेजस्वी बनाया जा सकता है? अगर कोई बच्चा पढ़ाई में आशानुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाता तो इसकी वजह मालूम करने के लिए उसके साथ अच्छे माहौल में बात करनी चाहिए। अगर उसे अतिरिक्त मार्गदर्शन या शैक्षणिक सामग्री की जरूरत है तो उसका इंतजाम करना चाहिए। हां, बच्चे को अनुशासित करना जरूरी है। अगर वह टीवी, मोबाइल फोन आदि को बहुत ज्यादा समय देता है तो इनके इस्तेमाल को लेकर नियम निर्धारित करने चाहिएं। बच्चे की छोटी-छोटी उपलब्धियों की भी तारीफ करनी चाहिए। उसे शुरुआत में कुछ आसान लक्ष्य देकर पुरस्कृत करना अच्छा उपाय हो सकता है। यह सोचना या कहना किसी भी सूरत में ठीक नहीं है कि बच्चे का कोई भविष्य नहीं है। इतिहास गवाह है, बचपन में छोटी-छोटी बातों से डरने वाले भी भविष्य में उचित माहौल और मार्गदर्शन पाकर महान योद्धा बने हैं। हर बच्चा एक योद्धा है। उसका हौसला बढ़ाएं, हिम्मत न तोड़ें।