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अवैध धर्मांतरण का फैलता जाल

पंजाब में धर्मांतरण अलग ही स्तर पर पहुंच चुका है

अवैध धर्मांतरण का फैलता जाल
सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए

छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा द्वारा की गई यह घोषणा कि उनकी 'सरकार राज्य में अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए जल्द ही नया कड़ा कानून बनाएगी', स्वागत-योग्य है। अवैध धर्मांतरण एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, जिस पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा कानून होना ही चाहिए। इसके साथ ही उसे सख्ती से लागू करना जरूरी है। आज छत्तीसगढ़ ही नहीं, सभी राज्यों में ऐसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं। कहीं दु:ख-दर्द दूर करने के नाम पर सभाएं हो रही हैं, कहीं सिर्फ चमत्कारों के दम पर बीमारियां दूर की जा रही हैं, कहीं 'ऊपरी हवा' का असर दूर करने के लिए नारे लगवाए जा रहे हैं! क्या आधुनिक विज्ञान के युग में हम ऐसा समाज बनाना चाहेंगे? पूरे भारत में अलग-अलग नामों के साथ कई गिरोह काम कर रहे हैं, जिनके निशाने पर भोलेभाले और जरूरतमंद लोग हैं। वे किसी की बीमारी दूर करने का दावा करते हैं। किसी से कहते हैं कि हमारी शरण में आ जाएंगे तो सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाएगी। कोई गिरोह थोड़ा अनाज और आर्थिक मदद देकर आस्था का सौदा कर रहा है। इससे समाज में टकराव भी पैदा हो रहा है। प्राय: जो लोग आर्थिक संकटों से घिरे रहते हैं, जिनके परिवारों में क्लेश, तनाव या बीमारी जैसी दिक्कतें हैं, वे ऐसे जाल में जल्दी फंस जाते हैं। उन्हें मीठी-मीठी बातें कर ऐसा 'घुमाया' जाता है कि वे अपना धर्म बदलने के लिए तैयार हो जाते हैं। पूर्व में ऐसी कई खबरें सामने आ चुकी हैं, जिनमें बताया गया कि जिन लोगों ने किसी कारणवश अपना धर्म बदला, उनके घरों में भारी झगड़ा हुआ। खासकर अपने परंपरागत त्योहारों को मनाने की बात आई तो उन्होंने इससे इन्कार कर दिया!

धर्मांतरण कराने वाले गिरोहों के लिए उन इलाकों में अपना सिक्का जमाना ज्यादा आसान होता है, जहां गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा ज्यादा हों। यही नहीं, जिन इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी नहीं होतीं, वहां ऐसी कथित सभाएं खूब जोर पकड़ती हैं, जिनमें दावा किया जाता है कि वहां जाने से लाइलाज बीमारियां भी दूर हो जाएंगी। ऐसी गतिविधियां पूर्णत: अवैज्ञानिक हैं। हमारी संस्कृति में इनके लिए कोई जगह नहीं है। सोचें, अगर किसी सभा में जाने, बैठने और स्वीकार कर लेने भर से बीमारियां ठीक हो सकती हैं तो हमारे ऋषियों ने हजारों जड़ी-बूटियों पर शोध क्यों किया? आयुर्वेद में ऐसी एक-एक बूटी के दर्जनों नाम और गुण मिलते हैं। जब हमारे उन पूर्वजों ने इनका अध्ययन किया था तो कितना समय दिया होगा! वह एक महान तपस्या थी। प्राकृतिक चिकित्सा में पंच तत्त्वों के संतुलन और ऋतुचर्या पर बहुत जोर दिया गया है, ताकि हम स्वस्थ रहें, सुखी रहें। अवैज्ञानिक तौर-तरीकों और अंधविश्वासों में फंसने से बीमारी ठीक नहीं होती, बल्कि बढ़ती है। अब सोशल मीडिया पर अनेक लोग ऐसी घटनाओं का जिक्र करते मिल जाते हैं, जब किसी व्यक्ति ने अंधविश्वास के कारण इलाज कराने से मना कर दिया, जिससे उसकी ज़िंदगी खतरे में पड़ गई। एक व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित था। उसे किसी कथित उपदेशक ने कह दिया कि 'अब तुम मेरी शरण में आ गए, लिहाजा तुम्हारे सभी संकट दूर हो जाएंगे, जो मर्जी हो, वह खाओ।' फिर क्या था, उस व्यक्ति ने अपना मनपसंद पकवान खूब खाया, जिससे उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया। पंजाब में धर्मांतरण अलग ही स्तर पर पहुंच चुका है। वहां ऐसी कई सभाओं में 'कनेड्डा' का वीजा लगवाने, शादी कराने, नशा छुड़वाने, घर में सुख-शांति लाने और अन्य मनोकामनाएं पूरी करने के नाम पर 'अर्जियां' लगवाई जा रही हैं। ये गतिविधियां समाज को किस दिशा में लेकर जाएंगी? इस पर विशेषज्ञ कई बार चिंता जता चुके हैं। सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए।

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