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कई समस्याओं का एक समाधान

कई देश साइकिल को अपनी संस्कृति का हिस्सा बना चुके हैं

कई समस्याओं का एक समाधान
क्या हम दिल्ली में ऐसी व्यवस्था लागू कर सकते हैं?

केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया जिस तरह युवाओं में साइकिल के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं, उसे और बड़े स्तर पर ले जाने की जरूरत है। इससे व्यक्ति, परिवार, समाज और देश, सबको अनेक फायदे होंगे। जब केंद्रीय मंत्री साइकिल सवारों का नेतृत्व करते हुए युवाओं को इसके फायदे बताएंगे तो निश्चित रूप से यह संदेश दूर तक जाएगा। हालांकि रास्ते में कई मुश्किलें भी हैं। हमारी कितनी सड़कें ऐसी हैं, जो साइकिल सवारों के लिए सुरक्षित मानी जा सकती हैं? देश में ऐसी परिवहन नीति होनी चाहिए, जिसमें साइकिल सवारों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए। साथ ही, ऐसे लोगों के प्रति सम्मान की भावना पैदा होनी चाहिए। जो व्यक्ति साइकिल चलाता है, वह कहीं-न-कहीं देश की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को फायदा ही पहुंचाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मन की बात' कार्यक्रम में इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि बढ़ता मोटापा देश के लिए एक चुनौती है। अगर लोग साइकिल को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लें तो इस चुनौती का दृढ़ता से सामना किया जा सकता है। साइकिल चलाने से पूरे शरीर का व्यायाम हो जाता है। स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं नियंत्रण में रहती हैं। पेट्रोल, भारी मेंटेनेंस और पार्किंग के खर्चों से मुक्ति मिलती है सो अलग। आज कई देश साइकिल को अपनी संस्कृति का हिस्सा बना चुके हैं। नीदरलैंड ने हजारों किमी की साइकिल लेन बनाकर अपने नागरिकों को बड़ा उपहार दिया है। वहां किसी साइकिल सवार को इस बात की चिंता नहीं करनी पड़ती कि पीछे से कोई ट्रक या कार आकर टक्कर मार देगी! साइकिलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में किए गए उस निवेश ने नागरिकों को कई तरह से फायदा पहुंचाया है।

एम्स्टर्डम जैसे शहर में कई कंपनियों के उच्चाधिकारी साइकिल से दफ्तर जाते हैं। यहां बात सिर्फ अच्छी सड़कों और सुविधाओं की नहीं है, मानसिकता की भी है। नीदरलैंड में साइकिल चलाने को किसी व्यक्ति की आर्थिक या सामाजिक स्थिति से जोड़कर नहीं देखा जाता। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि नीदरलैंड में साइकिल को बढ़ावा देने से वायु प्रदूषण में काफी कमी आई है। इससे ट्रैफिक उत्सर्जन कम हुआ है। यही नहीं, जिन लोगों की फिटनेस अच्छी हुई, उनके स्वास्थ्य खर्चों में कमी आई। जिन रास्तों पर साइकिल से आवागमन बढ़ा, वहां ट्रैफिक जाम जैसी समस्याएं लगभग खत्म हो गईं। इससे समय और ईंधन की बचत हुई। इसी तरह डेनमार्क एक अच्छा उदाहरण है, जहां सरकार साइकिल खरीदने पर टैक्स में छूट समेत कई तरह की रियायतें देती है। कोपेनहेगन को तो साइकिलिंग कैपिटल कहा जाता है। क्या हम दिल्ली में ऐसी व्यवस्था लागू कर सकते हैं? क्या महानगरों में रहने वाला साधन-संपन्न वर्ग हफ्ते में दो दिन कारों का इस्तेमाल बंद या सीमित करने के लिए तैयार होगा? क्या वह साइकिल को बढ़ावा देने के लिए आगे आएगा? जब तक समर्थ एवं संपन्न लोग, वरिष्ठ नेता, अधिकारी आदि साइकिल पर सवारी नहीं करेंगे, समाज में बदलाव कैसे आएगा? जर्मनी ने अपने यहां साइकिल हाईवे बना दिए हैं। जब सरकार ने साइकिल सवारों को प्रोत्साहन देना शुरू किया तो घरेलू रोजगार भी बढ़ा। वहां युवा नए-नए प्रयोग कर साइकिलों के आकर्षक मॉडल पेश कर रहे हैं। पिछले दिनों भारत में सोशल मीडिया पर कुछ युवाओं की कहानी चर्चा में रही थी, जिन्होंने बांस का इस्तेमाल कर साइकिल बना दी! चूंकि भारत में बांस खूब उगाया जाता है। अगर ऐसी साइकिलों का बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाए तो हमारे किसानों को बहुत फायदा हो सकता है। इसके लिए सरकार को इच्छाशक्ति दिखानी होगी। वहीं, लोगों को भी अपनी सोच बदलनी होगी। साइकिल ऐसा सुंदर आविष्कार है, जिसमें कई बीमारियों और पर्यावरणीय एवं आर्थिक समस्याओं को दूर करने की भरपूर शक्ति तथा सामर्थ्य है।

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