जलवायु परिवर्तन पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती: मोदी

जलवायु परिवर्तन पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती: मोदी

प्रधानमंत्री ने कहा- जब साइंस, सरकार और सोसायटी मिलकर काम करेंगे तो उसके नतीजे और बेहतर आएंगे  


नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय जैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान के नए परिसर का डिजिटल माध्यम से उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा​ कि जलवायु परिवर्तन पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि और विज्ञान के तालमेल का निरंतर बढ़ते रहना 21वीं सदी के भारत के लिए बहुत जरूरी है। आज इसी से जुड़ा एक और अहम कदम उठाया जा रहा है। देश के आधुनिक सोच वाले किसानों को समर्पित किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि छोटे-छोटे किसानों की जिंदगी में बदलाव की आशा के साथ यह सौगात कोटि-कोटि किसानों के चरणों में समर्पित कर रहा हूं। बीते छह-सात सालों में साइंस और टेक्नॉलॉजी को खेती से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए प्राथमिकता के आधार पर उपयोग किया जा रहा है।

विशेष रूप से बदलते हुए मौसम में, नई परिस्थितियों के अनुकूल, अधिक पोषण युक्त बीजों पर हमारा फोकस बहुत अधिक है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां उत्तर भारत में घाघ और बटुरी की कृषि संबंधी कहावतें बहुत लोकप्रिय रही हैं। घाघ ने आज से कई शताब्दी पहले कहा था- जेते गहिरा जोतै खेत, परे बीज फल तेतै देत। यानी खेत की जुताई जितनी गहरी की जाती है, बीज बोने पर उपज भी उतनी ही अधिक होती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज 35 और नई फसलों की वैरायटी देश के किसानों के चरणों में समर्पित की जा रही हैं। ये बीज जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से खेती की सुरक्षा करने और कुपोषण मुक्त भारत के अभियान में बहुत सहायक होने वाले हमारे वैज्ञानिकों की खोज का परिणाम हैं। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोटिक स्ट्रेस मैनेजमेंट के तौर पर देश को वैज्ञानिक काम के लिए नया संस्थान मिला है। यह संस्थान मौसम और अन्य परिस्थितियों के बदलाव से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में देश के प्रयासों को वैज्ञानिक सहायता देगा। 
यहां से जो वैज्ञानिक तैयार होंगे, जो समाधान तैयार होंगे, वो देश की कृषि और किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष ही कोरोना से लड़ाई के बीच में हमने देखा है कि कैसे टिड्डी दल ने भी अनेक राज्यों में बड़ा हमला कर दिया था। भारत ने बहुत प्रयास करके तब इस हमले को रोका था, किसानों का ज्यादा नुकसान होने से बचाया था। नई फसलों की वैरायटी मौसम की कई तरह की चुनौतियों से निपटने में सक्षम तो है ही, इनमें पौष्टिक तत्व भी ज्यादा है। इनमें से कुछ वैरायटी कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए औ कुछ फसल गंभीर रोगों से सुरक्षित है। कुछ जल्दी तैयार हो जाने वाली है, कुछ खारे पानी में भी हो सकती है। यानी देश की अलग-अलग परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इन्हें तैयार किया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों को पानी की सुरक्षा देने के लिए, हमने सिंचाई परियोजनाएं शुरू कीं, दशकों से लटकी करीब-करीब 100 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का अभियान चलाया। फसलों को रोगों से बचाने के लिए, ज्यादा उपज के लिए किसानों को नई वैरायटी के बीज दिए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि खेती-किसानी को जब संरक्षण मिलता है, सुरक्षा कवच मिलता है, तो उसका और तेजी से विकास होता है। किसानों की जमीन को सुरक्षा देने के लिए, उन्हें अलग-अलग चरणों में 11 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड दिए गए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि एमएसपी में बढ़ोतरी के साथ-साथ हमने खरीद प्रक्रिया में भी सुधार किया ताकि अधिक-से-अधिक किसानों को इसका लाभ मिल सके। रबी सीजन में 430 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेहूं खरीदा गया है। इसके लिए किसानों को 85 हजार से अधिक का भुगतान किया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों को टेक्नोलॉजी से जोड़ने के लिए हमने उन्हें बैंकों से मदद को और आसान बनाया गया है। आज किसानों को और बेहतर तरीके से मौसम की जानकारी मिल रही है। हाल ही में अभियान चलाकर 2 करोड़ से ज्यादा किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड दिए गए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि पीएम फसल बीमा योजना से किसानों को लाभ हो और सुरक्षा मिले, इसकी चिंता की गई। इसकी वजह से किसानों को करीब 1 लाख करोड़ रुपए की क्लेम राशि का भुगतान किया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोविड के दौरान गेहूं खरीद केंद्रों की संख्या तीन गुना तक बढ़ाई गई है। साथ ही दलहन-तिलहन खरीद केंद्रों की संख्या भी तीन गुना बढ़ाई गई है। किसानों की छोटी से छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान सम्मान निधि के तहत 11 करोड़ से अधिक किसान को करीब-करीब 1.5 लाख करोड़ से ज्यादा रुपए उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किए गए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण जो नए प्रकार के कीट, नई बीमारियां, महामारियां आ रही हैं, इससे इंसान और पशुधन के स्वास्थ्य पर भी बहुत बड़ा संकट आ रहा है और फसलें भी प्रभावित हो रही है। इन पहलुओं पर गहन रिसर्च निरंतर जरूरी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जब साइंस, सरकार और सोसायटी मिलकर काम करेंगे तो उसके नतीजे और बेहतर आएंगे। किसानों और वैज्ञानिकों का ऐसा गठजोड़, नई चुनौतियों से निपटने में देश की ताकत बढ़ाएगा। आज जब क्लाइमेट चेंज की चुनौती बढ़ रही है तब हमें अपने कार्यों की गति बढ़ाना होगा। बीते वर्षों में इसी भावना को हमने किसानों की आय में बढ़ोतरी करने में प्रोत्साहित किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसान को सिर्फ फसल आधारित सिस्टम से बाहर निकालकर उन्हें वैल्यू एडिशन और खेती के अन्य विकल्पों के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। छोटे किसानों को इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है, इसलिए हमें पूरा ध्यान छोटे किसानों पर लगाना ही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि साइंस और रिसर्च के समाधानों से अब मिलेट्स और अन्य अनाजों को और विकसित करना ज़रूरी है। मकसद ये कि देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से इन्हें उगाया जा सके।

प्रधानमंत्री ने कहा कि खेती की जो हमारी पुरातन परंपरा है उसके साथ-साथ मार्च टू फ्यूचर भी उतना ही आवश्यक है। फ्यूचर की जब हम बात करते हैं तो उसके मूल में आधुनिक टेक्नॉलॉजी है, खेती के नए औज़ार हैं। आधुनिक कृषि मशीनों और उपकरणों को बढ़ावा देने के प्रयासों का परिणाम आज दिख रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के इस अमृत काल में हमें कृषि से जुड़े आधुनिक विज्ञान को गांव-गांव, घर-घर तक पहुंचाना है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके लिए कुछ बड़े कदम उठाए गए हैं। हमें अब कोशिश करनी है कि मिडिल स्कूल स्तर तक कृषि से जुड़ी रिसर्च और टेक्नोलॉजी हमारे स्कूल पाठ्यक्रम का भी हिस्सा बने।

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