मन की बात: ध्यानचंद से लेकर जन्माष्टमी और हुनर को सम्मान तक क्या बोले मोदी?

मन की बात: ध्यानचंद से लेकर जन्माष्टमी और हुनर को सम्मान तक क्या बोले मोदी?

मन की बात: ध्यानचंद से लेकर जन्माष्टमी और हुनर को सम्मान तक क्या बोले मोदी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो स्रोत: भाजपा ट्विटर अकाउंट।

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देशवासियों के साथ अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हम सबको पता है आज मेजर ध्यानचंद की जन्म जयंती है और हमारा देश उनकी स्मृति में इसे राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता भी है, क्योंकि दुनिया में भारत की हॉकी का डंका बजाने का काम ध्यानचंद की हॉकी ने किया था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कितने ही पदक क्यों न मिल जाएं, लेकिन जब तक हॉकी में पदक नहीं मिलता भारत का कोई भी नागरिक विजय का आनंद नहीं ले सकता है और इस बार ओलंपिक में हॉकी का पदक मिला, चार दशक के बाद मिला।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जब खेल-कूद की बात होती है, तो स्वाभाविक है हमारे सामने पूरी युवा पीढ़ी नजर आती है। जब युवा पीढ़ी की तरफ गौर से देखते हैं कितना बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। युवा का मन बदल चुका है। आज का युवा मन बने-बनाए रास्तों पर चलना नहीं चाहता है। वो नए रास्ते बनाना चाहता है। अज्ञात जगह पर कदम रखना चाहता है। मंजिल भी नई, लक्ष्य भी नए, राह भी नई और चाह भी नई, अरे एक बार मन में ठान लेता हैं न युवा, जी-जान से जुट जाता है। दिन-रात मेहनत कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम देखते हैं, अभी कुछ समय पहले ही, भारत ने अपने स्पेस सेक्टर को खोला और देखते ही देखते युवा पीढ़ी ने उस मौके को पकड़ लिया और इसका लाभ उठाने के लिए कॉलेजों के विद्यार्थी, विवि, निजी क्षेत्र में काम करने वाले नौजवान बढ़-चढ़कर आगे आए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज छोटे-छोटे शहरों में भी स्टार्टअप संस्कृति का विस्तार हो रहा है और मैं उसमें उज्ज्वल भविष्य के संकेत देख रहा हूं। अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश में खिलौनों की चर्चा हो रही थी। देखते ही देखते जब हमारे युवाओं के ध्यान में यह विषय आया कि उन्होंने भी मन में ठान लिया कि दुनिया में भारत के खिलौनों की पहचान कैसे बने।

प्रधानमंत्री ने कहा कि खिलौने कैसे बनाना, खिलौने की विविधता क्या हो, खिलौनों में टेक्नोलॉजी क्या हो, चाइल्ड साइकोलॉजी के अनुरूप खिलौने कैसे हों … आज हमारे देश का युवा उसकी ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है, कुछ योगदान करना चाहता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरे देश का युवा मन अब सर्वश्रेष्ठ की तरफ अपने आपको केन्द्रित कर रहा है। सर्वोत्तम करना चाहता है, सर्वोत्तम तरीके से करना चाहता है। यह भी राष्ट्र की बहुत बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बार ओलंपिक ने बहुत बड़ा प्रभाव पैदा किया है। ओलंपिक के खेल पूरे हुए अभी पैरालंपिक्स चल रहे हैं। देश को हमारे इस खेल जगत में जो कुछ भी हुआ, विश्व की तुलना में भले कम होगा, लेकिन विश्वास भरने के लिए तो बहुत कुछ हुआ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरे प्यारे नौजवानो! हमें इस अवसर का फायदा उठाते हुए अलग-अलग प्रकार के स्पोर्ट्स में महारत भी हासिल करनी चाहिए। गांव-गांव खेलों की स्पर्धाएं निरंतर चलती रहनी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आइए, हम सभी देशवासी इस मोमेंटम को जितना आगे बढ़ा सकते हैं, जितना योगदान हम दे सकते हैं, ‘सबका प्रयास’ इस मंत्र से साकार करके दिखाएं। अब देश में खेल, खेल-कूद, स्पोर्ट्स, स्पोर्ट्समैन ​भावना अब रुकनी नहीं है। इस मोमेंटम को पारिवारिक जीवन में, सामाजिक जीवन में, राष्ट्र जीवन में स्थायी बनाना है – ऊर्जा से भर देना है, निरंतर नई ऊर्जा से भरना है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कल जन्माष्टमी का महापर्व भी है। जन्माष्टमी का यह पर्व यानी, भगवान श्री कृष्ण के जन्म का पर्व। हम भगवान के सब स्वरूपों से परिचित हैं, नटखट कन्हैया से ले करके विराट रूप धारण करने वाले कृष्ण तक, शास्त्र सामर्थ्य से ले करके शस्त्र सामर्थ्य वाले कृष्ण तक।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सोमनाथ मंदिर से तीन-चार किलोमीटर दूरी पर ही भालका तीर्थ है। यह तीर्थ वो है जहां भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर अपने अंतिम पल बिताए थे। एक प्रकार से इस लोक की उनकी लीलाओं का वहां समापन हुआ था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम अपने पर्व मनाएं, उसकी वैज्ञानिकता को समझें, उसके पीछे के अर्थ को समझें। इतना ही नहीं हर पर्व में कोई न कोई सन्देश है, कोई-न-कोई संस्कार है। हमें इसे जानना भी है, जीना भी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में उसे आगे बढ़ाना भी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी संस्कृत भाषा सरस भी है, सरल भी है। संस्कृत अपने विचारों, अपने साहित्य के माध्यम से ये ज्ञान विज्ञान और राष्ट्र की एकता का भी पोषण करती है, उसे मजबूत करती है। संस्कृत साहित्य में मानवता और ज्ञान का ऐसा ही दिव्य दर्शन है जो किसी को भी आकर्षित कर सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल के दिनों में जो प्रयास हुए हैं, उनसे संस्कृत को लेकर एक नई जागरूकता आई है। अब समय है कि इस दिशा में हम अपने प्रयास और बढ़ाएं। अगर आप इस तरह के प्रयास में जुटे ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते हैं, ऐसी किसी जानकारी आपके पास है तो कृपया #CelebratingSanskrit के साथ सोशल मीडिया पर उनसे संबंधित जानकारी जरूर साझा करें।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अगले कुछ दिनों में ही ‘विश्वकर्मा जयंती’ भी आने वाली है। भगवान विश्वकर्मा को हमारे यहां विश्व की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है। हमारे शास्त्रों में ये भी कहा गया है – विश्वस्य कृते यस्य कर्मव्यापारः सः विश्वकर्मा। अर्थात्, जो सृष्टि और निर्माण से जुड़े सभी कर्म करता है वह विश्वकर्मा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि लेकिन साथियों इसका एक और पहलू भी है और वो कभी-कभी चिंता भी कराता है, जिस देश में, जहां की संस्कृति में, परंपरा में, सोच में, हुनर को, स्किल मैनपावर को भगवान विश्वकर्मा के साथ जोड़ दिया गया हो, वहां स्थितियां कैसे बदल गईं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें हुनर को सम्मान देना होगा, हुनरमंद होने के लिए मेहनत करनी होगी। हुनरमंद होने का गर्व होना चाहिए। आइए, इस बार हम भगवान विश्वकर्मा की पूजा पर आस्था के साथ-साथ उनके संदेश को भी अपनाने का संकल्प करें। हमारी पूजा का भाव यही होना चाहिए कि हम स्किल के महत्व को समझेंगे, और स्किल्ड लोगों को, चाहे वो कोई भी काम करता हो, उन्हें पूरा सम्मान भी देंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में 62 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है लेकिन फिर भी हमें सावधानी रखनी है, सतर्कता रखनी है। और हां, हमेशा की तरह, जब भी आप कुछ नया करें, नया सोचें, तो उसमें मुझे भी जरूर शामिल करिएगा। मुझे आपके पत्र और संदेशों का इंतज़ार रहेगा। इसी कामना के साथ, आप सभी को आने वाले पर्वों की एक बार फिर ढेरों बधाइयां।

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