मानसी जोशी: बैडमिंटन में देश को सोना दिलाने वाली ‘बार्बी डॉल’

मानसी जोशी: बैडमिंटन में देश को सोना दिलाने वाली ‘बार्बी डॉल’

मानसी जोशी: बैडमिंटन में देश को सोना दिलाने वाली ‘बार्बी डॉल’

मानसी जोशी

नई दिल्ली/भाषा। नौ बरस पहले एक प्यारी-सी लड़की सड़क दुर्घटना में अपना एक पैर गंवा बैठी। इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स इंजीनियरिंग ग्रेजुएट इस लड़की के सारे सपने जैसे अपाहिज हो गए। कुदरत की इस बेदर्दी पर हर कोई निराश था लेकिन कौन जानता था कि वह हादसा किसी भी विषम परिस्थिति में हार नहीं मानने वाली इस लड़की के लिए शोहरत और कामयाबी का नया रास्ता खोल देगा और वह कुछ ऐसा कर दिखाएगी जो अपने आप में एक मिसाल बन जाएगा।

बैडमिंटन की विश्व प्रतियोगिता के नक्शे पर भारत का नाम सुनहरी स्याही से लिखने वाली देश की पैरा शटलर मानसी जोशी की जिंदगी वक्त के बेरहम और मेहरबान हो जाने की बड़ी दिलचस्प दास्तान है। 2011 में अपना पांव गंवाने वाली मानसी अपनी कड़ी मेहनत और कुछ कर गुजरने के जज्बे के दम पर टाइम मैगजीन की ‘नेक्स्ट जनरेशन लीडर 2020’ सूची में शामिल हुईं और पत्रिका के एशिया संस्करण के आवरण पर अपनी जगह बनाई। मानसी इस सूची में शामिल दुनिया की पहली पैरा एथलीट और भारत की पहली एथलीट हैं।

यह अद्भुत सम्मान मिलने से आह्लादित मानसी जोशी ने कहा, ‘टाइम मैगजीन की नेक्‍स्‍ट जनरेशन लीडर की सूची में शामिल होना मेरे लिए सम्मान की बात है। मुझे लगता है कि एक पैरा एथलीट को इतनी प्रतिष्ठित पत्रिका के कवर पर देखकर लोगों की दिव्‍यांग्‍यता के प्रति सोच बदलेगी और भारत तथा एशिया में पैरा स्‍पोर्ट्स के प्रति भी लोगों का रवैया बदलेगा।

वर्ष 2011 में हुई दुर्घटना का जिक्र करने पर मानसी कुछ पल को सिहर जाती हैं, फिर उसी आत्मविश्वास के साथ सधे शब्दों में कहती हैं कि वह सिर्फ उन्‍हीं चीजों के बारे में सोचती हैं, जो उनके नियंत्रण में हो। ‘मैंने विषम परिस्थितियों को अपने हक में मोड़ना सीख लिया।’ वह कहती हैं कि सड़क सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है और वह इस बारे में बात करना चाहती हैं। उनका मानना है कि सरकार और प्रशासन से जुड़े लोगों को सड़क सुरक्षा को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।

ग्यारह जून, 1989 को जन्मी मानसी जोशी छह साल की उम्र में अपने पिता के साथ बैडमिंटन खेला करती थीं। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद मानसी ने 2010 में मुंबई विश्विवद्यालय के केजे सोमैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग में पढ़ाई पूरी की और साफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करने लगी, लेकिन उनकी तकदीर ने उनके लिए कोई और ही रास्ता चुना था। दिसंबर 2011 में वह अपनी मोटरबाइक से काम पर जाते हुए एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं और उनकी एक टांग काट देनी पड़ी।

निराशा और हताशा के उस दौर से निकलने के लिए मानसी ने एक बार फिर बैडमिंटन को अपना सहारा बनाया और एक अन्य पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी नीरज जार्ज की सलाह पर उन्होंने प्रतिस्पर्धा के स्तर पर खेलने का फैसला किया और कड़ी मेहनत करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के बाद स्पेन में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में पहली बार हिस्सा लिया।

इसके बाद जैसे किस्मत मानसी जोशी पर मेहरबान होती गई। 2015 में इंग्लैंड के स्टोक मैंडविल में मानसी ने पैरा बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप की मिश्रित यु्गल स्पर्धा में रजत पदक जीता। अक्टूबर 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियाई पैरा गेम्स में मानसी ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता। 2018 में ही उन्होंने बैडमिंटन के जादूगर पुलेला गोपीचंद की हैदराबाद स्थित बैडमिंटन अकादमी में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 2019 में इस प्रशिक्षण का असर दिखाई देने लगा और अगस्त में स्विटजरलैंड के बेसेल में हुई पैरा बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर मानसी अपनी मिसाल खुद बन गईं। इससे अलावा भी उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश का मान बढ़ाया।

मानसी के नाम पर एक और दुर्लभ उपलब्धि भी है। हाल ही में बॉर्बी डॉल बनाने वाली कंपनी ने उनके जैसी गुड़िया बनाकर उनकी तमाम उपलब्धियों का सम्मान किया है। मानसी जोशी ने इस पर खुशी जाहिर करते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘धन्‍यवाद बार्बी। यह अ‍तुलनीय है कि एक बार्बी डॉल मुझसे प्रेरित होकर बनी है। मेरा मानना है कि बच्चों के लिए उनके आसपास के परिवेश की शिक्षा जल्दी शुरू होनी चाहिए और मुझे उम्मीद है कि मेरी कहानी बच्चियों को उनकी वास्तविक क्षमता को समझने और उसके साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेगी।’

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