दोहरी नीति क्यों?
कई खूंखार आतंकवादी पाकिस्तान के उत्पाद हैं
पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली सहायता का दुरुपयोग किया
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद 26/11 हमलों के पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात कहते हुए जिस अंदाज़ में ख़ुशी जताई है, उसके दूसरे पहलू को देखना जरूरी है। तहव्वुर एनआईए की हिरासत में है। उस पर मुकदमा चलेगा और कई सबूतों पर बहस होने के बाद फैसला आएगा। इसमें काफी समय लग सकता है, क्योंकि फैसले से असंतुष्ट होने पर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय जाने का भी विकल्प रहेगा। तब तक अमेरिकी विदेश मंत्री आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कुछ ठोस कदम उठा सकते हैं। अगर आतंकवाद का खात्मा करना है तो उसकी जड़ को उखाड़ फेंकना होगा। तहव्वुर राणा, हाफिज सईद, जकीउर्रहमान लखवी, मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकवादी पाकिस्तान के उत्पाद हैं। अमेरिका को मानवता की इतनी ज्यादा चिंता है तो उसे पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक एवं सैन्य प्रतिबंधों की घोषणा करनी चाहिए। यह नहीं हो सकता कि एक तरफ अमेरिकी विदेश मंत्री आतंकवाद की निंदा करें और दूसरी तरफ उनका देश डॉलर की पेटियां पाकिस्तान भेजता रहे! क्या ऐसे आतंकवाद खत्म होगा? इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली आर्थिक एवं सैन्य सहायता का दुरुपयोग किया और आतंकवाद की आग भड़काई। उसने अफगानिस्तान को तबाह कर दिया। भारत उसका दृढ़ता से मुकाबला कर रहा है और सैकड़ों आतंकवादियों का खात्मा भी किया है। जब तक अमेरिका इस्लामाबाद को धन और हथियार देता रहेगा, आतंकवाद के खिलाफ उसके बयान महत्त्वहीन रहेंगे।
अमेरिका को यह दोहरी नीति छोड़नी होगी। उसके द्वारा सार्वजनिक किए गए विभिन्न आंकड़े बताते हैं कि वह अब तक पाकिस्तान को अरबों डॉलर की सहायता दे चुका है। उसने साल 2002 से 2011 के बीच 18 अरब डॉलर की सहायता दी थी। यह वो दौर था, जब पाक में मुशर्रफ की तानाशाही चली और भारत में कई आतंकवादी हमले हुए थे। 26/11 हमले भी उसी दौरान किए गए थे। कोएलिशन सपोर्ट फंड के तहत दी गई उस सहायता का उद्देश्य पाकिस्तान को अफगानिस्तान में 'आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई' में सहयोग करना था। ये शब्द कितने हास्यास्पद लगते हैं! जिस देश का राजनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व आतंकवाद का खुलकर समर्थन करता है, जहां आतंकवादी शिविर चल रहे हों, उसे अमेरिका अरबों डॉलर की सहायता देता है, ताकि आतंकवाद से मुकाबला किया जाए! यह तो बंदर के हाथ में उस्तरा थमाने जैसा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में पाकिस्तान पर 'झूठ और धोखे' का आरोप लगाते हुए सहायता में कटौती जरूर की, लेकिन पूरी तरह बंद नहीं की थी। उनके बाद जो बाइडन ने खूब दरियादिली दिखाई। अमेरिका ने साल 2022 में एफ-16 लड़ाकू विमानों के कथित रखरखाव के लिए 450 मिलियन डॉलर की सहायता मंजूर की थी। इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ सहयोग के नाम पर सहायता जारी रखी। उसने साल 2022 में पाकिस्तान में आई बाढ़ के बाद 97 मिलियन डॉलर की सहायता दी थी। कई रिपोर्टों में बताया गया कि अमेरिका ने साल 2024 में पाकिस्तान के प्रति प्रेम का भरपूर प्रदर्शन करते हुए लगभग 101 मिलियन डॉलर की सहायता दी थी। वजह थी- लोकतंत्र की मजबूती और आतंकवाद का विरोध! उस सहायता से पाकिस्तान में न तो लोकतंत्र मजबूत हुआ और न ही उसकी आतंकी गतिविधियों पर रोक लगी। अलबत्ता एलओसी के रास्ते आतंकवादी घुसपैठ की कोशिशें करते रहे और भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों ढेर होते रहे। अब अमेरिकी विदेश मंत्री (26/11 हमलों में मारे गए) अपने छह नागरिकों समेत 166 लोगों को न्याय दिलाने के लिए भारत के साथ मिलकर लंबे समय से किए जा रहे 'प्रयास' गिना रहे हैं तो इसमें विरोधाभास झलकता है। अगर अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करना चाहता है तो पाकिस्तान को मिलने वाली सहायता पर तुरंत ताला लगाए।

