सराहनीय फैसला

शराब से परिवार के परिवार बर्बाद हो जाते हैं

सराहनीय फैसला

शराब किसी के जीवन में अकेली नहीं आती

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 17 धार्मिक स्थलों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने का फैसला सराहनीय है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने यह कहकर कि 'शराब से परिवार के परिवार बर्बाद हो जाते हैं, सामाजिक बुराइयां भी आती हैं, इसलिए देसी हो या विदेशी, धार्मिक शहरों में शराब की दुकानों पर ताले लगाए जाएंगे', उन परिवारों की पीड़ा को अपने शब्दों में अभिव्यक्त किया है, जिनमें किसी को शराब की लत लग गई थी। यह देखकर आश्चर्य होता है कि जब दूध, लस्सी, शर्बत और जूस जैसी इतनी अच्छी चीजें दुनिया में उपलब्ध हैं, जो सेहत को फायदा पहुंचाती हैं, फिर भी कुछ लोग शराब जैसे जहर को मुंह क्यों लगाते हैं! कई शायर ज़माने को सही राह दिखाने और जागरूक करने के बजाय शराब की शान में कलम चलाते रहे, लोग उनकी 'रचनाओं' पर वाह-वाह कर दाद देते रहे! शराब ने कितने ही परिवारों को तबाह कर दिया। अगर कोई सरकार इसके प्रसार को सीमित करने, प्रतिबंधित करने का फैसला लेती है तो यह स्वागत-योग्य है। सरकार की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं हो जाती। उसे संबंधित इलाकों में कड़ी नजर भी रखनी होगी। प्राय: जहां शराब पर प्रतिबंध लगाया जाता है, वहां अवैध शराब का धंधा चलाने वाले गिरोह सक्रिय हो जाते हैं। वे या तो दूसरे राज्यों / इलाकों से तस्करी के जरिए शराब लाकर चोरी-छिपे बेचने लगते हैं या अपने यहां ही भट्टियां लगा लेते हैं। अवैध तरीके से बनी यह शराब बहुत ज्यादा नुकसानदेह होती है। कई बार जहरीली शराब बन जाती है। उसे पीने वाले दर्जनों लोग एकसाथ काल के गाल में समा जाते हैं। उसके बाद सरकार पर ठीकरा फोड़ा जाता है।

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वह स्थिति बड़ी मुश्किल होती है। अगर शराब पर प्रतिबंध न लगाए तो सरकार जिम्मेदार, अगर प्रतिबंध लगा दे और लोग जहरीली शराब पीने लगें तो भी सरकार जिम्मेदार! बेशक मद्यपान को हतोत्साहित करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन कुछ जिम्मेदारी लोगों की भी है। अगर लोग ही शराब से दूरी बना लें तो यह बुराई खत्म हो जाए। शराबमुक्त समाज बनाना असंभव नहीं है। हमारे देश में ऐसे कई गांव हैं, जहां लोग शराब से दूरी बना चुके हैं। कुछ गांव अपने देवता के प्रति गहरी आस्था होने के कारण शराब जैसी बुराई को आने ही नहीं देते। याद रखना चाहिए कि शराब किसी के जीवन में अकेली नहीं आती। वह क्रोध, झगड़ा, आर्थिक हानि, जुआ, सट्टा और बीमारियां भी लाती है। कितने ही लोग ऐसे हैं, जिन्हें शराब की लत लग गई तो उनका मिज़ाज बदल गया। उनके घरों में कलह-क्लेश का माहौल रहने लगा। वे नशे के कारण विवेक का लोप हो जाने से जुआ, सट्टा आदि में रुपए उड़ाने लगते हैं। जब तक उनकी सेहत साथ देती है, नशाखोरी का सिलसिला चलता है। एक बार जब सेहत बुरी तरह बिगड़ जाती है तो पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता। हमारे आस-पास ही ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो अपने जीवन में बहुत अच्छे काम कर सकते थे, लेकिन शराब की लत ने उन्हें नुकसान पहुंचाया। ऐसे व्यापारियों के किस्से सबने सुने होंगे, जिनका व्यापार किसी समय खूब चमका था, फिर शराब की बोतल में ऐसा डूबा कि सबकुछ चौपट हो गया। पिछले कुछ दशकों में शराब पर बने गानों का लोकप्रिय होना अशुभ संकेत है। लोग, खासकर नौजवान इन पर खूब थिरकते मिल जाते हैं। नशाखोरी को बढ़ावा देने वाले ऐसे गाने लिखना, गाना, प्रसारित करना कला का अपमान है। इनसे देश का युवा गुमराह होता है। सरकार को इस संबंध में भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

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