किसानों के लिए 'उम्मीद की किरण' बने धरतीपुत्र सुभाष पद्मश्री के लिए चुने गए
प्राकृतिक खेती से किसानों की ज़िंदगी बदल रहे सुभाष शर्मा
Photo: @naturalfarmingbysubhashsharma9 YouTube Channel
यवतमाल/दक्षिण भारत। महाराष्ट्र का यवतमाल जिला, जो किसानों की आत्महत्या के कारण सुर्खियों में रहा है, के एक किसान ने ऐसा उल्लेखनीय काम किया है, जिसके कारण उन्हें पद्मश्री के लिए चुना गया है।
सुभाष खेतूलाल शर्मा ने खेती से जुड़ीं चुनौतियों के बीच वह रास्ता ढूंढ़ लिया है, जो किसानों की ज़िंदगी बदल सकता है। वे प्राकृतिक खेती करते हुए कई किसानों को प्रशिक्षित कर चुके हैं। खेती के इस तरीके में परंपरा और नवीनता, दोनों का समावेश है, जिससे उपज में शानदार बढ़ोतरी देखने को मिलती है।इस तरह सुभाष शर्मा उन किसानों के लिए 'उम्मीद की किरण' बनकर सामने आए हैं, जिनके लिए खेती घाटे का सौदा ही रही है। सुभाष जिस तरीके को अपनाते हुए 'अनूठी' खेती कर रहे हैं, उसमें तीन बातों पर खास जोर दिया जाता है- कुदरत के साथ जुड़ाव, सभी जीवों के अस्तित्व का सम्मान और बाजार की ताकतों से आज़ादी।
ऐसे आया बदलाव
सुभाष शर्मा का यह सफर रातोंरात शुरू नहीं हुआ था। फिर यह बदलाव कैसे आया? दरअसल पहले, वे भी अन्य किसानों की तरह ही खेती करते थे, जिसके तहत जमीन में अंधाधुंध रसायनों और कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता था। इससे शुरुआत में तो फायदा होता, लेकिन कुछ साल बाद उपज घटने लगती।
साल था 1994, जब सुभाष शर्मा ने रासायनिक खेती को छोड़ने का फैसला लेते हुए कुछ नया करने की ठानी। उन्होंने प्राकृतिक खेती के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी हासिल की और अपने 'प्रयोगों' में व्यस्त रहे।
मेहनत रंग लाई
धुन के धनी सुभाष शर्मा की मेहनत रंग लाई। लगभग छह साल बाद उपज में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला, जिससे हर कोई अचंभित था। पहले, जहां खेत से बमुश्किल 50 टन उपज होती थी, प्राकृतिक खेती के कारण वह आठ गुणा तक बढ़ गई। यही नहीं, खेती की लागत भी घट गई।
सुभाष शर्मा प्रकृतिक खेती में किसानों का उज्ज्वल भविष्य देखते हैं। वे रासायनिक खेती से जुड़े अनुभवों को याद करते हुए इसे विनाशकारी बताते हैं। उनके अनुसार, अच्छी खेती वह है, जिसमें जमीन का पोषण किया जाए। अगर जहरीले रसायनों का इस्तेमाल करेंगे तो उसके नतीजे घातक ही होंगे।
किसानों के लिए 'पाठशाला'
दारव्हा के पास स्थित सुभाष शर्मा का खेत किसानों के लिए किसी 'पाठशाला' से कम नहीं है। यहां रोजाना ही कई किसान आकर प्राकृतिक खेती करना सीखते हैं। सुभाष अपने खेत में आने वाले हर किसान को सलाह देते हैं कि वे खेती के साथ पशुपालन करें, पौधे लगाएं, पक्षियों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाएं और बायोमास का उपयोग करें।
वास्तव में ये सभी बातें खेती की उपज और किसान के उत्थान के साथ गहराई से जुड़ी हुई हैं। इससे खेत के लिए बेहतरीन खाद बनाई जा सकती है, कीट नियंत्रण में आसानी होती है और रसोईघर के लिए अच्छा ईंधन हासिल किया जा सकता है।
उपज का सही मूल्य जरूरी
जीवन के 70 बसंत देख चुके सुभाष शर्मा 'किसानों की आत्महत्या' के मुद्दे से आगे सोचने का आह्वान करते हैं। वे इसकी असल वजहों की बात करते हैं। वे कहते हैं कि किसान को उसकी उपज का सही मूल्य मिलना चाहिए। जब सही मूल्य नहीं मिलता तो किसान शहर में पलायन करने को मजबूर होता है।
मिल रहीं बधाइयां
सुभाष शर्मा को पद्मश्री सम्मान के बारे में तब पता चला, जब वे खेत से घर लौट रहे थे। इस समाचार से इलाके में खुशी का माहौल है और लोग उन्हें बधाइयां दे रहे हैं।