नए नजरिए से लाएं बदलाव
युवाओं को चाहिए कि वे राष्ट्र के नायकों से प्रेरणा लें
नए नजरिए के साथ काम करेंगे तो बदलाव आएगा, जरूर आएगा।
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जारी की गई पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में ऐसे कई नाम हैं, जो कोई 'सेलिब्रिटी' तो नहीं हैं, अलबत्ता वे 'बदलाव के नायक' जरूर हैं। उनके कार्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस बार जिन किसानों को पद्म पुरस्कारों के लिए चुना गया है, अगर उनके कामकाज का अध्ययन किया जाए तो युवाओं के लिए रोजगार के कई अवसर पैदा हो सकते हैं। हमारे देश को इसकी बहुत जरूरत है। किसने सोचा था कि निचले पहाड़ी इलाकों की गर्म परिस्थितियों में सेब की खेती की जा सकती है, जिसकी देश-दुनिया में भारी मांग होगी! हिमाचल प्रदेश के किसान हरिमन शर्मा (जिन्हें पद्मश्री के लिए चुना गया है) ने यह कर दिखाया और कई मिथक तोड़ दिए। उनके द्वारा विकसित की गई सेब की खास किस्म स्कैब नामक बीमारी से काफी सुरक्षित है। यह नेपाल, बांग्लादेश, जांबिया और जर्मनी जैसे देशों में भी लोकप्रिय है। ऐसे प्रगतिशील किसानों को सम्मानित करने से उन्हें और बेहतर काम करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही युवा भी खेती करने के लिए प्रेरित होंगे। भारत में अनगिनत फल पैदा होते हैं। हालांकि आज भी ऐसे कई इलाके हैं, जहां फलों का उपभोग बहुत कम है। फल पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं। उनके उपभोग को बढ़ावा देकर कुपोषण जैसी समस्याओं से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि फलों की कीमतें आम आदमी के बजट में हों। यह तभी संभव है, जब उत्पादन बढ़ाया जाए। हमें अंगूर, अनार, पपीता, केला जैसे दर्जनों फलों की ऐसी किस्में विकसित करनी होंगी, जो कम उपजाऊ जमीन और कम संसाधनों में भी बढ़िया उपज दें।
इसके लिए इजराइल के अनुभवों से भी लाभ उठाया जा सकता है। वहां रेगिस्तानी इलाकों में खजूर की ऐसी कई किस्मों की खेती की जाती है, जिनकी उपज का प्रति किग्रा भाव एक हजार रुपए से ज्यादा है। इजराइली खजूर की दुनियाभर में भारी मांग रहती है। इसके अलावा आलू एक ऐसी सब्जी है, जिसकी मांग सालभर बनी रहती है। इससे चिप्स समेत कई उत्पाद बनाए जा सकते हैं। हर साल प्याज और टमाटर के भावों में बहुत उछाल देखने को मिलता है। रसोईघरों और भोजनालयों में इनकी काफी मांग रहती है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे फलों और सब्जियों की मांग बहुत बढ़ी है, जिन्हें उगाने में घातक रसायनों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खासकर कोरोना महामारी के बाद बहुत लोग अपनी सेहत को लेकर जागरूक हो गए हैं। भविष्य में रसायनों और कीटनाशकों के इस्तेमाल के बिना तैयार किए गए फलों-सब्जियों का बड़ा बाजार आकार लेगा। जो लोग इसके लिए तैयारी करना चाहते हैं, वे महाराष्ट्र के यवतमाल जिले से आने वाले किसान सुभाष खेतूलाल शर्मा से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन्हें भी पद्मश्री के लिए चुना गया है। उन्होंने प्राकृतिक खेती की ऐसी विधियां विकसित की हैं, जिनमें लागत को काफी कम किया जा सकता है और उपज भरपूर होती है। अब तो ऐसे प्रगतिशील किसान सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा करने लगे हैं। भविष्य में ड्रोन तकनीक का खेती में इस्तेमाल बढ़ेगा। युवाओं की इसमें दिलचस्पी रोजगार के नए द्वार खोल सकती है। इसी तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े कितने ही उत्पाद हैं, जिनका महत्त्व भविष्य में बढ़ने की भरपूर संभावना है। युवाओं को उनमें रोजगार के अवसर ढूंढ़ने चाहिएं। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के आदिवासियों द्वारा तैयार किए गए कुछ उत्पाद ऑनलाइन बाजार में बहुत चर्चित हुए थे। गोंद के लड्डू, जो गांवों के घर-घर में बनाए जाते हैं, ऑनलाइन खूब बिक रहे हैं। युवाओं को चाहिए कि वे राष्ट्र के ऐसे नायकों से प्रेरणा लें, जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से उल्लेखनीय बदलाव लेकर आ रहे हैं। अगर वे नए नजरिए के साथ काम करेंगे तो बदलाव आएगा, जरूर आएगा।