कुदरत का हिसाब

सरफराज तांबा पर हमले की खबर को पाकिस्तानी मीडिया ने दबा दिया

कुदरत का हिसाब

पाकिस्तान अब आतंकवादियों के लिए वह 'जन्नत' नहीं रहा, जहां वे निर्भय होकर विचरण कर सकते थे

ऐसा प्रतीत होता है कि इन दिनों पाकिस्तानी आतंकवादियों पर किसी 'अदृश्य शक्ति' का प्रकोप है। हाल के महीनों में इन पर ताबड़तोड़ हमले कर जिस तरह खात्मा किया गया, उससे 'शांति के शत्रु' भयभीत हैं। यह भय होना चाहिए। इन्होंने जिस तरह आतंकवाद को परवान चढ़ाते हुए निर्दोष लोगों का लहू बहाया था, वह अक्षम्य है। अब कुदरत इनका खूब हिसाब ले रही है। पाकिस्तान के कुख्यात डॉन आमिर सरफराज तांबा को जिस तरह उसके 'घर में घुसकर' मारा गया, उससे आतंकवादियों को स्पष्ट संदेश मिल गया है। जरूरी नहीं कि 'घर में घुसकर' आतंक का खात्मा करने के लिए कोई सरहद पार करके आए। इन लोगों ने पाकिस्तान में ही इतने दुश्मन पैदा कर लिए हैं कि जब मौका हाथ लगता है तो वे भी 'करामात' दिखा देते हैं। सरफराज तांबा पर हमले की खबर को पाकिस्तानी मीडिया ने दबा दिया। जब बात चारों ओर फैल गई तो स्थानीय प्रशासन 'लीपापोती' पर उतर आया, इसलिए पड़ोसी देश में कहीं यह खबर चलाई जा रही है कि तांबा की मौत हो गई, तो कहीं यह दावा किया जा रहा है कि तांबा जिंदा है। जो भी हो, इतना तो तय है कि पाकिस्तान अब आतंकवादियों के लिए वह 'जन्नत' नहीं रहा, जहां वे निर्भय होकर विचरण कर सकते थे। हाल में जिस तरह कोई दो दर्जन आतंकवादी 'अज्ञात हमलावरों' द्वारा मारे गए, उसने उनके आकाओं के माथे पर पसीने ला दिए हैं। अब वह ज़माना नहीं रहा, जब ये कराची, लाहौर, पेशावर, रावलपिंडी ... में 'आज़ाद' होकर तकरीरें करते थे, अपनी जहरीली जुबानों से भारत के लिए आग उगलते थे।

अब तो जरा भी नज़र हटी, 'अज्ञात हमलावरों' द्वारा चलाई गई गोली सीधे परलोक ले जाएगी। सरफराज तांबा कुख्यात अपराधी तो था ही, वह लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद का करीबी सहयोगी भी था। एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा। उसने कोट लखपत जेल में जिस दरिंदगी के साथ भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की हत्या की थी, उसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था! कोई व्यक्ति इतना क्रूर कैसे हो सकता है? उस हमले के बाद सरबजीत लाहौर के एक अस्पताल में हफ्तेभर अचेत रहे थे। वह हमला साजिशन कराया गया था। उसके पीछे आईएसआई का हाथ था। सरबजीत के मामले को देश-दुनिया का मीडिया उठा रहा था। कई मानवाधिकार संगठन उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे। ऐसे में पाक सरकार पर काफी दबाव था। आईएसआई नहीं चाहती थी कि सरबजीत सकुशल स्वदेश लौटें, इसलिए उन पर कातिलाना हमला हुआ। सरबजीत पर अचानक हमला किया गया था, जिससे वे गंभीर रूप से लहूलुहान हो गए थे। तांबा पर भी 'अज्ञात हमलावरों' ने अचानक हमला किया और गोलियां बरसाकर उसे इस कदर लहूलुहान कर दिया कि जब परिजन उसे संभालने आए तो वह पूरी तरह खून से लथपथ हो चुका था। पाकिस्तानी आतंकवादियों को भ्रम था कि वे अपराध को अंजाम देने के बाद कर्मफल से बचे रहेंगे, क्योंकि उनके सिर पर फौज और आईएसआई का हाथ है। यह भ्रम बहुत तेजी से दूर हो रहा है, क्योंकि न तो फौज और न ही आईएसआई, कोई भी उनकी जान बचाने में सक्षम नहीं है। बशीर अहमद, एजाज अहमद, खालिद रजा, रियाज, अदनान, रहीमुल्लाह, अकरम खान ... जैसे आतंकवादी फौज और आईएसआई के अत्यंत 'प्रिय' होने के बावजूद मारे गए। जो बाकी रह गए, अगर वे जीएचक्यू (पाक फौज का मुख्यालय) में डेरा डाल लें, तो भी देर-सबेर अपने कर्मों का फल जरूर पाएंगे।

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