देश और परिवेश
सैम पित्रोदा ने अलग ही मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद कांग्रेस नेताओं को स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है
प्राय: कुछ 'बुद्धिजीवी' भारतीय समाज की सभी समस्याओं का समाधान अमेरिका की नीतियों में देखते हैं
चुनावी मौसम में 'तिल का ताड़' बनते देर नहीं लगती, इसलिए वरिष्ठ नेताओं को कोई भी बयान देते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान के बाद 'संपत्ति के बंटवारे संबंधी' जो बहस शुरू हुई, वह किसी और ही दिशा में जाती दिख रही है। 'सोने पे सुहागा' यह कि इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने अमेरिका में 'विरासत पर कर' का जिक्र कर दिया! पहले, चुनावों में मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह जैसे 'दिग्गज' नेता ऐसे शब्दबाण छोड़ते थे, जो घूमकर कांग्रेस की ही ओर लौट आते थे। अब सैम पित्रोदा का बयान भी वही काम करता नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'संपत्ति मामले में' जिस अंदाज़ में कांग्रेस पर प्रहार कर रहे हैं, उस दौरान अपनी पार्टी को ताकत देने के बजाय सैम पित्रोदा ने अलग ही मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद कांग्रेस नेताओं को स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है। सैम पित्रोदा ने अमेरिका में लगने वाले 'विरासत पर कर' के बारे में जो जानकारी दी, उसकी कोई जरूरत नहीं थी, खासकर तब, जब लोकसभा चुनाव चल रहे हों और 'संपत्ति' का मुद्दा गरम हो। सैम पित्रोदा ने जो बयान दिया, हो सकता है कि उससे जुड़ी खबर पढ़ने-सुनने के बाद भारत में बहुत लोग यह समझें कि कांग्रेस यहां इसे लागू करने का इरादा रखती है! संपत्ति संबंधी मामले बड़े संवेदनशील होते हैं। भले ही सैम पित्रोदा अपने 'एक्स' अकाउंट पर अंग्रेज़ी में लिखें- 'किसने कहा कि 55 प्रतिशत छीन लिया जाएगा? किसने कहा कि भारत में ऐसा कुछ होना चाहिए?' यहां बड़ा सवाल यह है कि गांव-देहात में कितने लोग अंग्रेज़ी में लिखे इस स्पष्टीकरण को पढ़ेंगे?
प्राय: कुछ 'बुद्धिजीवी' भारतीय समाज की सभी समस्याओं का समाधान अमेरिका की नीतियों में देखते हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत और अमेरिका के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर बहुत अंतर है। दोनों देशों में खानपान, रहन-सहन, मान्यताओं में काफी असमानताएं हैं। इसलिए अगर अमेरिकी जनजीवन से जुड़ा कोई उदाहरण दें तो इन बिंदुओं को नहीं भूलना चाहिए। भारत में आज़ादी के बाद उद्योग-धंधों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिला। युवाओं के दिलो-दिमाग में यह बात बैठाई गई कि सरकारी नौकरी करना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। कारोबारी वर्ग का फिल्मों में ग़लत चित्रण किया गया। अब अगर सैम पित्रोदा यह कह रहे हैं कि 'अमेरिका में विरासत पर कर लगता है। यदि किसी के पास 100 मिलियन डॉलर की संपत्ति है और जब उसकी मृत्यु हो जाती है तो वह अपने बच्चों को केवल 45 प्रतिशत हस्तांतरित कर सकता है, 55 प्रतिशत सरकार द्वारा ले लिया जाता है', तो वह युवा, जो अपना कारोबार करना चाहता है या कारोबार कर रहा है, उसके मन में (चुनावी मौसम में) सबसे पहला सवाल यही आएगा- 'कहीं मेरे साथ तो ऐसा नहीं हो जाएगा?' अगर सैम पित्रोदा यह उदाहरण दे ही रहे थे तो साथ ही इतना जरूर कह देते कि 'भारत और अमेरिका, दो अलग-अलग राष्ट्र और संस्कृतियां हैं ... लिहाजा हमें भारत की सामाजिक मान्यताओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही कोई कदम उठाना चाहिए!' इससे कांग्रेस को यह कहना नहीं पड़ता कि 'इसका यह मतलब नहीं है कि पित्रोदा के विचार हमेशा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थिति को दर्शाते हैं। कई बार वे ऐसा नहीं करते।' और न ही मोदी को कांग्रेस पर हमला बोलने का एक और मौका मिलता। वरिष्ठ नेताओं को चाहिए कि वे देश और परिवेश को ध्यान में रखकर ही किसी बड़े मुद्दे से संबंधित सुझाव दें।