कश्मीर में इंटरनेट बहाली समेत ये चर्चित फैसले दे चुके हैं 48वें सीजेआई एनवी रमण

कश्मीर में इंटरनेट बहाली समेत ये चर्चित फैसले दे चुके हैं 48वें सीजेआई एनवी रमण

कश्मीर में इंटरनेट बहाली समेत ये चर्चित फैसले दे चुके हैं 48वें सीजेआई एनवी रमण

उच्चतम न्यायालय। स्रोत: Supreme Court of India Website

नई दिल्ली/भाषा। भारत के नए प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वाले न्यायमूर्ति एनवी रमण ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं जिनमें से एक जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध का अंत सुनिश्चित करने से जुड़ा था और एक अन्य निर्णय के तहत उच्चतम न्यायालय पारदर्शिता कानून के दायरे में आ गया।

आंध्र प्रदेश में कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव में जन्मे मृदुभाषी न्यायमूर्ति रमण को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। उनका कार्यकाल 16 महीने से अधिक समय का होगा। वे अगले साल 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होंगे और उन्हें देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच शीर्ष अदालत में कामकाज में सुगमता रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालनी होगी।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद इंटरनेट प्रतिबंध से जुड़े अनुराधा भसीन मामले में न्यायमूर्ति रमण द्वारा लिखे गए फैसले की अनेक लोगों ने सराहना की थी और इसे प्रगतिशील निर्णयों में से एक करार दिया था।

न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल जनवरी में कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है। पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश दिया था।

उनकी अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने से पिछले साल मार्च में इनकार कर दिया था।

वह पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने नवंबर 2019 में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है। नवंबर 2019 के फैसले में, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ‘जनहित’ में सूचनाओं को उजागर करते हुए ‘न्यायिक स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखना होगा।’

वे शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था। नवंबर 2019 में, उनकी अगुवाई वाली पीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सदन में बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था और कहा था कि मामले में विलंब होने पर ‘खरीद फरोख्त की संभावना’ है।

न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका पर भी सुनवाई की थी जिसमें पूर्व एवं मौजूदा विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के निस्तारण में बहुत देरी का मुद्दा उठाया गया था।

27 अगस्त, 1957 को जन्मे, न्यायमूर्ति रमण 10 फरवरी, 1983 में अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए थे। उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और वह 10 मार्च, 2013 से 20 मई, 2013 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर कार्यरत रहे।

न्यायमूर्ति रमण को दो सितंबर, 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया था और 17 फरवरी, 2014 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई थी। पूर्व में, केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति रमण को 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की थी। उन्होंने न्यायमूर्ति एसए बोबडे की जगह ली है जो कल सेवानिवृत्त हो गए थे।

प्रधान न्यायाधीश (अब सेवानिवृत्त) बोबडे ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद पद संभालने के लिए न्यायमूर्ति रमण के नाम की अनुशंसा परंपरा और वरिष्ठता क्रम के अनुरूप की थी। उनकी ओर से केंद्र सरकार को अनुशंसा उस दिन की गई थी जब उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति रमण के खिलाफ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी की शिकायत पर ‘उचित तरीके से विचार’ करने के बाद इसे खारिज करने के फैसले को सार्वजनिक किया था।

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