अमित शाह: संसद में प्रखर वक्ता बनने के साथ बढ़ता सियासी कद

शाह ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान बिना किसी आरोप-प्रत्यारोप के विपक्ष को जवाब दिया

अमित शाह: संसद में प्रखर वक्ता बनने के साथ बढ़ता सियासी कद

अमित शाह को संसद में एक प्रखर वक्ता के रूप में इससे पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दौरान देखा गया था

.. नीलू रंजन ..

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के निर्विवाद नेता हैं और उनकी लोकप्रियता के बल पर भाजपा के लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन लोकसभा में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के बाद अमित शाह को एक 'बड़े राजनेता' और प्रखर वक्ता के रूप में सामने आते हुए देखा गया। 

अभी तक अमित शाह को लोग भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाने वाले सफल संगठनकर्ता और लोकसभा से लेकर विभिन्न राज्यों में भाजपा की जीत के लिए कुशल रणनीतिकार के रूप में जानते थे। शाह ने अविश्वास प्रस्ताव पर लगभग दो घंटे तक बोलते हुए जिस गंभीरता और संयम का परिचय दिया, वह बिल्कुल नया है।
 
अपने आक्रमक रुख के लिए प्रसिद्ध अमित शाह ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान बिना किसी आरोप-प्रत्यारोप के विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया और मणिपुर की सच्चाई सामने रखी। यहां तक कि कांग्रेस के सदन के नेता अधीर रंजन चौधरी को भाजपा के कोटे से आधा घंटे तक समय देने का भी ऑफर कर दिया। विरोधियों से निपटने के दौरान कोई मुरव्वत नहीं रखने के लिए जाने जानेवाले अमित शाह का यह नया ही रूप था। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए मणिपुर पर शाह के बयान की कई बार तारीफ की।  

अमित शाह को संसद में एक प्रखर वक्ता के रूप में इससे पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दौरान देखा गया था, लेकिन उस समय उनके रुख में आक्रमता ज्यादा थी। तब शाह को सिर्फ दो महीने गृहमंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में आए हुए थे। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अमित शाह के शब्दों के चयन और हाव-भाव में पुरानी आक्रामता की जगह सौम्यता और गंभीरता थी। मणिपुर के हालात की जानकारी देते हुए शाह ने पुरानी हिंसा के आंकड़े भी दिए, लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया कि इसका उद्देश्य पूर्ववर्ती सरकारों को दोषी ठहराना नहीं है, बल्कि मणिपुर में पुराने नस्लीय विभाजन की स्थिति से सदन को अवगत कराना है। हिंसा के लिए भी शाह ने मैतई और कुकी, किसी भी समुदाय को दोषी नहीं ठहराया, बल्कि इसे परिस्थितिजन्य हिंसा बताया। उन्होंने कहा कि दोनों समुदाय के नेताओं के साथ वे खुद लगातार बैठक कर रहे हैं। अलग-अलग मुलाकातों के बजाय उनसे एक साथ आने और मिल-बैठकर समस्या के समाधान निकालने की संसद के भीतर से शाह की अपील भविष्य में मणिपुर में शांति का रास्ता बना सकती है।

घुसपैठियों के लिए कड़े बयान के लिए जाने जानेवाले अमित शाह ने म्यांमार से आने वाले कुकियों के लिए भी सम्मानजनक शब्द का प्रयोग किया और उन्हें ‘कुकी भाई’ कहकर संबोधित किया। उन्होंने बताया कि म्यांमार की विषम परिस्थिति के कारण उन्हें मणिपुर और मिजोरम में आना पड़ा है। जबकि मैतई समुदाय के लिए सबसे बड़ा मुद्दा म्यांमार से आने वाले कुकी ही है। मैतई को डर है कि म्यांमार से कुकियों के बसने से वे मणिपुर में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। अमित शाह ने मैतई की शंकाओं का समाधान का भरोसा भी दिया। उन्होंने बताया कि म्यांमार से आने वाले कुकियों के बायोमैट्रिक लेकर उन्हें वोटर लिस्ट और आधार डाटाबेस में निगेटिव लिस्ट में शामिल करने का काम तेजी से चल रहा है। कुकियों के 16 किलोमीटर के दायरे में आने-जाने की छूट देने वाले 1968 के समझौते को छेड़े बिना ही शाह ने सीमा पर बाड़ के सहारे आवाजाही को नियंत्रित और पारदर्शी बनाने की जरूरत बताई और कहा कि सरकार इस पर वर्ष 2021 से ही काम शुरू कर चुकी है और इसे तेजी से पूरा किया जाएगा। शाह ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि उनके वक्तव्य से किसी भी समुदाय की भावना को ठेस नहीं पहुंचे। 

अविश्वास प्रस्ताव के अलावा दिल्ली की सेवाओं से संबंधित विधेयक के दौरान भी अमित शाह ने दिल्ली की ऐतिहासिक व मौलिक परिस्थिति को देखते हुए विधेयक लाने की मजबूरी को स्पष्ट किया। लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया कि विधेयक के पास होने के बाद दिल्ली में सेवाओं पर अधिकार को लेकर जो स्थिति वर्ष 1993 से 2015 के बीच में थी, उसमें रत्ती मात्र का भी परिवर्तन नहीं होगा। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में शाह ने एकजुट विपक्ष के हमलों का बिंदुवार जवाब भी दिया। 

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