कथाकार मोरवाल और शिक्षाविद डॉ. घनश्याम ‘शब्द’ पुरस्कारों से सम्मानित

नाट्य संस्था ‘कलायन’  द्वारा मार्मिक नाटक  ‘जो पीछे रह जाते हैं’  का यादगार मंचन हुआ

कथाकार मोरवाल और शिक्षाविद डॉ. घनश्याम ‘शब्द’ पुरस्कारों से सम्मानित

शिक्षाविद प्रो. घनश्याम एस को दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। दक्षिण की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था ‘शब्द’ ने गत रविवार को अपने 27वें वार्षिकोत्सव-सह-पुरस्कार अर्पण समारोह में एक लाख रुपए के ‘अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान’ से मूर्धन्य कथाकार भगवानदास मोरवाल को नवाजा तथा इक्कीस हजार रुपए का  ‘दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान’ प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं नलगोंडा गवर्नमेंट कॉलेज के प्राचार्य डॉ घनश्याम एस को प्रदान किया। सम्मानित विभूतियों को नकद राशि के अलावा अंगवस्त्रम, स्मृति चिह्न, प्रशस्ति फलक एवं श्रीफल भी भेंट किए गए। 
      
‘अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान’ ग्रहण करते हुए कथाकार भगवानदास मोरवाल  ने कहा कि एक सर्जक में ऐतिहासिक निरपेक्षता और अपने लोक जीवन की समझ का होना निहायत जरूरी होता है। ‘शब्द’ संस्था ने अपना प्रतिष्ठित ‘अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान’ देकर मेरी ऐतिहासिक निरपेक्षता और समझ पर मुहर लगाई है।  शिक्षाविद डॉ घनश्याम एस ने ‘दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान’ ग्रहण करते हुए कहा कि मूल्यों के क्षरण के आज के समय में पारदर्शिता, प्रेम, परिश्रम और पवित्रता से काम लेना होगा। उन्होंने  ‘’शब्द ‘ के कार्यों की प्रशंसा करते हुए सम्मान तो सहर्ष स्वीकार किया परंतु पुरस्कार राशि संस्था को लौटा दी और राशि को ‘शब्द’ के भावी कार्यक्रमों में उपयोग करने का आग्रह किया ।

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इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात कन्नड़ कथाकार हम्पा नागराजय्या ने कहा कि साहित्य की संगति के लिए सहृदय होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा, शब्द प्रकाश भी है और ज्योति भी। किंतु शब्द सबसे अधिक अर्थयुक्त तब होता है, जब निःशब्द होता है। यही शब्द व्यंजित होता है।साहित्यकार इसी शब्द की साधना करता है । 

समारोह की शुरुआत में ‘शब्द’ के अध्यक्ष डॉ श्रीनारायण समीर ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि ‘शब्द’ के पुरस्कारों का ध्येय साहित्य और साहित्यकार को समाज के विचार-केंद्र में लाने और समादृत करने का प्रयास है। दक्षिण की संस्था का यह प्रयास उत्तर में यदि कोई हलचल ला सका तो हम भारत भाव को सशक्त करने का अपना  प्रयास सफल समझेंगे। इस अवसर पर ‘शब्द’ के सदस्य श्रीप्रकाश यादव की काव्य पुस्तक ‘भरत चरित’ का लोकार्पण भी हुआ। मालूम हो कि ‘अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान’ समाजसेवी और अज्ञेय साहित्य के मर्मज्ञ  बाबूलाल गुप्ता के फाउंडेशन के सौजन्य से तथा ‘दक्षिण भारत शब्द हिंदीसेवी सम्मान’ बेंगलूरु एवं चेन्नई से प्रकाशित अखबार समूह ‘दक्षिण भारत राष्ट्रमत’ के सौजन्य से प्रदान किए जाते हैं। कार्यक्रम का कुशल संचालन ‘शब्द’ की सचिव डॉ उषारानी राव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक श्रीकान्त शर्मा ने किया।

समारोह के प्रथम सत्र में प्रसिद्ध नाटककार एवं रंग निर्देशक मथुरा कलौनी की नाट्य संस्था ‘कलायन’  द्वारा मार्मिक नाटक  ‘जो पीछे रह जाते हैं’  का यादगार मंचन हुआ। नाटक के सभी रंगकर्मी आईटी प्रोफेशनल हैं, जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से दर्शकों को देर तक अभिभूत किए रखा।

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