शिक्षा प्रणाली और विद्यार्थी
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो अच्छे व जिम्मेदार नागरिक तैयार करे
सरकारी नौकरियां ज्यादा नहीं हैं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने यह कहकर मौजूदा दौर की बहुत बड़ी जरूरत की ओर ध्यान दिलाया है कि 'शिक्षा प्रणाली को सीखने में बाधा नहीं, बल्कि सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करना चाहिए ... शिक्षा कोई व्यवसाय नहीं है, बल्कि अच्छे इंसान बनाने का एक व्रत है।' इससे यह सवाल भी पैदा होता है कि आज की शिक्षा कैसी होनी चाहिए? जो शिक्षा आज स्कूलों-कॉलेजों में दी जा रही है, उसका नतीजा सब जगह देखा जा सकता है। यह बहुत कम लोगों की आकांक्षाएं पूरी कर सकती है। शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नौकरी हासिल करना (वह भी सरकारी), पेट भरना और सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जीना हो गया है। इसके बावजूद ये चीजें सबको नहीं मिल रही हैं। यह आज कई घरों की कहानी बन चुकी है। किसी परिवार में दो या तीन बच्चे हैं, सबने कॉलेज की डिग्रियां ले लीं, हर साल सरकारी नौकरियों के फॉर्म भर रहे हैं, कोचिंग ले रहे हैं, लेकिन चयन किसी का नहीं हो रहा है। माता-पिता उनकी शिक्षा पर लाखों रुपए खर्च कर चुके हैं। इसके बावजूद बच्चों के लिए नौकरियां नहीं हैं। एक के बाद एक परीक्षाओं में असफलता मिलने से घर में तनाव का माहौल रहता है। क्या किया जाए? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। बच्चे सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटीज को फॉलो करते हैं, जो महंगी कारों में घूमते हैं, विदेशों में मौज-मस्ती करते हैं, हमेशा खुश नजर आते हैं। उन्हें देखकर डिप्रेशन होने लगता है। वास्तव में हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत बड़े सुधारों की जरूरत है। अगर चालीस साल पहले कुछ बड़े सुधार कर दिए जाते तो आज ऐसी नौबत नहीं आती।
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो अच्छे व जिम्मेदार नागरिक तैयार करे, वे खुशहाल माहौल में जीवन यापन करने में भी सक्षम हों। कोरी किताबी पढ़ाई और ज्यादा से ज्यादा अंक लाने की होड़ का नाम शिक्षा नहीं है। हमें बच्चों को यह भी सिखाना होगा कि जरूरतमंद की मदद करना, ईमानदार रहना, विनम्र व्यवहार करना, दूसरों की सुविधाओं का ध्यान रखना, स्वच्छता को बढ़ावा देना ... जैसे कार्य शिक्षा का हिस्सा हैं। अगर कोई विद्यार्थी बहुत अच्छे अंक लेकर आए, लेकिन उसके मन में दया व करुणा का भाव न हो तो उसे शिक्षित नहीं कहा जा सकता। 'सिर्फ सरकारी नौकरी' को रोजगार समझने की धारणा को अब बदलना ही चाहिए। इसकी शुरुआत स्कूली शिक्षा से होनी चाहिए। बच्चों को गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, हिंदी, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों के साथ रोजगार पर आधारित शिक्षा देनी होगी। एक ओर जहां हमारे देश की आबादी 142 करोड़ से ज्यादा बताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर हमारे ही नौजवान बेरोजगार हैं! ऐसा कैसे संभव है? क्या बाजारों में मांग नहीं है? हर साल हमारे बाजारों से विदेशी कंपनियां अरबों रुपए कमा लेती हैं। क्या कारण है कि हमारे नौजवान इस अवसर का लाभ नहीं उठा पाते? इसका प्रमुख कारण है- हुनर न होना। आज के ज्यादातर नौजवान डिग्री लेकर कॉलेज से निकलते हैं तो उन्हें पता चलता है कि रोजगार हासिल करने के लिए यही पर्याप्त नहीं है। उसके बाद वे सरकारी नौकरियों की दौड़ में लग जाते हैं, कोचिंग करते हैं। इसमें कुछ ही लोगों को सफलता मिलती है, क्योंकि सरकारी नौकरियां ज्यादा नहीं हैं। इन परीक्षाओं में बार-बार फेल होने से मनोबल पर गहरा असर पड़ता है। अगर ये बच्चे स्कूली दिनों से ही इसके लिए तैयार किए जाएं कि हमें पढ़ाई के साथ कोई हुनर सीखना है, उसे आधुनिक विज्ञान के तौर-तरीकों के साथ आगे लेकर जाना है, तो बेरोजगारी कोई बड़ी समस्या ही न रहे। सरकार को इसके लिए कुछ करना चाहिए। अगर नौजवानों को उनके हुनर और योग्यता के अनुसार काम मिल जाएगा, तो कई समस्याएं अपनेआप दूर हो जाएंगी।