गाढ़ी कमाई, मिनटों में गंवाई
साइबर ठग नए-नए पैंतरे आजमाकर अपना जाल फैला रहे हैं
सही जानकारी प्राप्त करें, जागरूक रहें और जागरूकता का प्रसार करें
‘डिजिटल अरेस्ट' के नाम पर हो रहीं साइबर धोखाधड़ी की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार द्वारा काफी कोशिशों के बावजूद ऑनलाइन ठगों की पौ-बारह जारी है। वे रोजाना ही शिकार ढूंढ़ लेते हैं। बेंगलूरु में तो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को ‘डिजिटल अरेस्ट' कर उससे 11.8 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी कर ली। जब इतने उच्च शिक्षित और तकनीक के जानकार से रुपए ऐंठे जा सकते हैं तो आम आदमी कितना सुरक्षित है? देश में डिजिटल अरेस्ट की इतनी घटनाएं हो चुकी हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में इसका उल्लेख किया और लोगों से अपील की कि वे जागरूक रहें। इसके बावजूद रोजाना ही ठगी की घटनाएं हो रही हैं। हालांकि टेलीकॉम कंपनियां फर्जी कॉल को रोकने के लिए खूब कोशिशें कर रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी ऐसे अकाउंट्स को ब्लॉक कर रहे हैं, जिनका इस्तेमाल ठगी की घटनाओं को अंजाम देने में हुआ है। फिर भी लोगों के बैंक खातों में सेंध लग रही है। उनकी मेहनत की कमाई पर साइबर अपराधी डाका डाल रहे हैं। अगर पिछले कुछ महीनों में डिजिटल अरेस्ट की चर्चित घटनाओं पर गौर करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि साइबर ठगों ने उच्च शिक्षित और संपन्न लोगों को खूब लूटा। उन्होंने सामान्य लोगों को भी निशाना बनाया। ऐसे लोगों के पास भी साइबर ठगों के फोन कॉल आए, जिन्हें इंटरनेट, डिजिटल बैंकिंग आदि की अधिक जानकारी नहीं थी और न उनके पास ज्यादा रुपए थे। इस तरह वे साइबर अपराधियों से काफी सुरक्षित रहे। वहीं, जिन्हें तकनीक की पर्याप्त जानकारी है, जिनके बैंक खातों में लाखों-करोड़ों रुपए हैं, वे अपनी जमा-पूंजी लुटा बैठे। यह देखकर आश्चर्य होता है कि सेना, पुलिस और बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी भी इनके झांसे में आ गए। उत्तर प्रदेश में एक महिला डॉक्टर से करोड़ों रुपए की ठगी हुई। जोधपुर में एक प्रोफेसर के लाखों रुपए इसी तरह ठगों के पास चले गए।
क्या उच्च शिक्षित वर्ग को यह पता नहीं कि साइबर ठग कितने शातिर हो गए हैं और नए-नए पैंतरे आजमाकर अपना जाल फैला रहे हैं? वास्तव में मामला सामान्य शिक्षित और उच्च शिक्षित वर्ग का नहीं है। अब डिजिटल अरेस्ट के नाम पर वही लोग धोखा खा रहे हैं, जो रोजाना खबरें नहीं पढ़ते हैं। यह हकीकत है। ऐसे लोगों की तादाद बहुत बड़ी है, जिनकी देश-दुनिया की खबरों में कोई रुचि नहीं है। इसकी एक वजह उनके दैनिक जीवन की व्यस्तता हो सकती है। ऐसे में वे खबरें पढ़ने के लिए पंद्रह मिनट भी नहीं निकालते। हालांकि यह कोई असंभव काम नहीं है। अगर ये लोग रोजाना कुछ मिनट खबरें पढ़ने में लगाते तो इनकी वर्षों की कमाई सुरक्षित रहती। हमने अनेक बार लिखा है कि डिजिटल अरेस्ट एक धोखा है। हमारे देश के कानून में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए जो कोई फोन पर इस तरह की धमकी दे, उससे न डरें, न कोई निजी जानकारी साझा करें और न ही कोई रकम भेजें। अब तो सरकार ऑनलाइन हेल्पलाइन चला रही है, जहां आप इन ठगों की तुरंत शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके बावजूद लोगों को पता नहीं है और वे शिकार हो रहे हैं तो इसका मतलब यही है कि वे खबरों पर नजर नहीं रखते। भारत में डिजिटल अरेस्ट संबंधी कपट धंधे के तार पाकिस्तान और कंबोडिया से जुड़े हुए हैं। हम पूर्व में इसका खुलासा कर चुके हैं। पाकिस्तानी ठगों की शब्दावली क्या होती है, इसका उल्लेख 4 नवंबर को यहीं ('लाहौरी गैंग के डिजिटल पैंतरे' शीर्षक से) किया गया था। जिन्होंने वह शब्दावली ध्यान से पढ़ी होगी, उनकी जानकारी में निश्चित रूप से बहुत बढ़ोतरी हुई होगी। डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी की अन्य घटनाओं से सुरक्षित रहने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि सही जानकारी प्राप्त करें, जागरूक रहें और जागरूकता का प्रसार करें।