क्या अयोध्या के रास्ते सियासी जमीन तलाशने में जुटी है शिवसेना?
क्या अयोध्या के रास्ते सियासी जमीन तलाशने में जुटी है शिवसेना?
नई दिल्ली। राम मंदिर का मामला एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार के कुछ किरदार अलग हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इससे पहले राम मंदिर मामले पर इतनी सक्रियता नहीं दिखाई थी, जितनी कि वे इस बार दिखा रहे हैं। शिवसेना के कार्यकर्ता महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों से अयोध्या में डेरा डाले हुए हैं। खुद उद्धव ठाकरे अयोध्या आकर बयान दे चुके हैं कि केंद्र सरकार चाहे अध्यादेश लाए या कानून बनाए, राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। मंदिर मामले पर यकायक उद्धव की यह सक्रियता चौंकाती है। ऐसे में चर्चा है कि शिवसेना ने यह मुद्दा इतनी बुलंद आवाज में क्यों उठाया। चूंकि अब तक राजनीतिक दलों में भाजपा इसे सबसे ज्यादा तवज्जो देती रही है।
उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे के जमाने में शिवसेना का महाराष्ट्र की राजनीति में जबरदस्त प्रभाव था, जो उनके बाद कम होता गया। राजग की घटक दल शिवसेना महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहती थी लेकिन बाद में बाजी पलटती गई। अब महाराष्ट्र में भले ही भाजपा के साथ उसका गठबंधन है और सरकार चल रही है। केंद्र में भी वह सहयोगी है, लेकिन प्रदेश में भाजपा की मजबूत जड़ों ने कहीं न कहीं शिवसेना के जनाधार को कम भी किया है। मंदिर मामला उठाकर शिवसेना दोबारा खुद को बड़े स्तर पर स्थापित करना चाहती है।हालांकि शिवसेना और भाजपा की विचारधारा में काफी समानताएं हैं लेकिन वर्ष 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान काफी तल्खी भी रही, जो अब तक दिखाई देती रही है। अब शिवसेना अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन कर न केवल खुद को ज्यादा प्रासंगिक बनाने की कोशिश में जुटी है। साथ ही उत्तर प्रदेश में राम नाम के झंडे लहराकर वह महाराष्ट्र में अपनी सियासी जमीन वापस पाना चाहती है। खासतौर पर उद्धव ठाकरे बतौर पार्टी प्रमुख जरूर चाहेंगे कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का चेहरा शिवसेना तय करे।
अगर आंकड़ों पर गौर करें तो राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना ने जो सुनहरा दौर देखा था, वह बाद में बरकरार नहीं रहा। वर्ष 1995 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद शिवेसना को 73 और भाजपा को 65 सीटें मिली थीं। वर्ष 2004 में शिवसेना को 62 और भाजपा को 54 सीटें, वर्ष 2009 में शिवसेना को 45 और भाजपा को 46 सीटें मिली थीं। हालांकि 2014 में दोनों की सीटों में इजाफा हुआ लेकिन भाजपा बाजी मार गई। तब तक दोनों दलों के रिश्तों में काफी तल्खी आ गई और दोनों ने अलग-अलग ही मैदान में उतरना तय किया था। उस समय शिवसेना को 63 और भाजपा को 122 सीटें मिलीं।
इस तरह महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना की जमीन पर बढ़त बना ली। ऐसे में शिवसेना के सामने चुनौती है कि वह दोबारा खुद को मजबूती से पेश करे। कम से कम कार्यकर्ताओं में उत्साह तो जरूर भरे। राम मंदिर आंदोलन के बाद बाल ठाकरे की पहचान देश के अन्य राज्यों में हिंदूवादी नेता के तौर पर कायम हुई थी। उद्धव भी इसी उम्मीद में हैं कि राम मंदिर का मुद्दा उठाकर वे शिवसेना को ज्यादा प्रासंगिक बना लेंगे। साथ ही महाराष्ट्र में शिवसेना को किसी भी गठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में ले आएंगे।