अस्पताल आधुनिक समाज के मंदिर, वहां तोड़फोड़ रोकें: केरल उच्च न्यायालय
जमानत शर्तों में से एक यह थी कि वह न्यायक्षेत्रीय अदालत में 10,000 रुपए की धनराशि जमा कराए
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कोच्चि/दक्षिण भारत। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि अस्पताल 'आधुनिक समाज के मंदिर' हैं, जहां लोग 'स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के देवताओं की पूजा' करने जाते हैं और इसलिए वहां किसी भी तरह की तोड़फोड़ को कानून का सख्ती से इस्तेमाल करके रोका जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने यह टिप्पणी 7 दिसंबर को तिरुवनंतपुरम जिले के मुक्कोला स्थित एक आयुर्वेद अस्पताल में तोड़फोड़ करने और 10,000 रुपए की क्षति पहुंचाने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए की।आरोपी पर लगाई गई जमानत शर्तों में से एक यह थी कि वह न्यायक्षेत्रीय अदालत में 10,000 रुपए की धनराशि जमा कराए और यदि वह मामले में बरी हो जाता है, तो उसे यह धनराशि वापस कर दी जाएगी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि वह दोषी पाया जाता है और दंडित किया जाता है, तो जमा की गई राशि का उपयोग अस्पताल को हुए नुकसान की भरपाई के लिए किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति कुन्हीकृष्णन ने कहा, 'मेरा यह भी मानना है कि विधानमंडल को केरल स्वास्थ्य सेवा व्यक्ति और स्वास्थ्य सेवा संस्थान (हिंसा और संपत्ति को नुकसान की रोकथाम) अधिनियम, 2012 में उचित संशोधन करने पर विचार करना चाहिए, ताकि इस प्रकार के मामलों में जमानत पाने के लिए ऐसी शर्त शामिल की जा सके।'
उच्च न्यायालय ने कहा कि अस्पताल की इमारत महज एक भौतिक संरचना नहीं है, बल्कि 'आशा और उपचार का प्रतीक' है और वहां किसी भी तरह की तोड़फोड़ से पुलिस को गंभीरता से निपटना चाहिए तथा न्यायपालिका को ऐसे मामलों में सतर्क रहना चाहिए। अस्पतालों में अतिक्रमण और तोड़फोड़ आजकल अस्पताल अधिकारियों के लिए एक समस्या बन गई है। इसका कारण उस अस्पताल से जुड़े डॉक्टरों, नर्सों, कर्मचारियों आदि की कथित लापरवाही या अवैध कृत्य हो सकते हैं।'
उच्च न्यायालय ने कहा, 'लेकिन, उस उद्देश्य के लिए अस्पताल की इमारत या अस्पताल की सामग्री को नष्ट नहीं किया जा सकता। अस्पताल आधुनिक समाज के मंदिर हैं, जहां लोग स्वास्थ्य और कल्याण के देवताओं की पूजा करने जाते हैं। इसलिए अस्पतालों में किसी भी तरह की तोड़फोड़ को कानून के कठोर हाथों का उपयोग करके टाला जाना चाहिए।'