भारत-चीन टकराव का राष्ट्रवादी “बयानबाजी’ क्या है?

भारत-चीन टकराव का राष्ट्रवादी “बयानबाजी’ क्या है?

भारत-चीन टकराव का राष्ट्रवादी “बयानबाजी’ क्या है?

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने गलवान घाटी में चीन के साथ हुई झड़प में भारत के 20 सैनिकों के शहीद होने के मद्देनजर शुक्रवार को सलाह दी कि मुद्दे पर राष्ट्रवादी बयानबाजी’ को कम किया जाना चाहिए। उन्होंने इसके साथ ही सरकार को चीन के उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान को बढ़ावा देने को लेकर भी आगाह किया। उन्होंने यह भी कहा कि सर्वदलीय बैठक में विपक्षी नेताओं के लिए विचारों के सार्थक आदान-प्रदान के वास्ते सेना के किसी वरिष्ठ अधिकारी और राजनयिक को जमीनी स्थिति के बारे में विस्तृत प्रस्तुति देनी चाहिए। इस मुद्दे पर शुक्रवार शाम सर्वदलीय बैठक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल का स्वागत करते हुए जनता दल (एस) के संरक्षक ने विपक्ष के अपने साथियों से भी आग्रह किया कि वे असंयमित “भाषा’ का इस्तेमाल न करें। उन्होंने कहा कि सरकार को आर्थिक बहिष्कार की “प्रतिक्रियावादी’ भाषा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे गंभीर जटिलताएं पैदा होंगी।’

  • देवेगौड़ा को रास नहीं, दी परहेज की सलाह

  • कहा, प्रधानमंत्री तथ्य बताएं

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देवेगौड़ा ने एक बयान में कहा, हमें व्यावहारिकता से दिशा-निर्देशित होना चाहिए।’ पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सुनिश्र्चित करने के क्रम में कि हम मुद्दों को तूल नहीं देते’, राष्ट्रवादी बयानबाजी’ को कम किया जाना चाहिए और यह समय भड़काऊ भाषा देने और बदला लेने का नहीं है।’ उन्होंने कहा कि मीडिया प्रतिष्ठानों के “फर्जी सूचना फैलाने’ और “अनुचित बयानबाजी’ से भारतीय सैनिकों तथा राजनयिक स्टाफ के जीवन के लिए जोखिम पैदा होगा। देवेगौड़ा जब प्रधानमंत्री थे तो उनके कार्यकाल में वर्ष 1996 में चीन के साथ एक समझौता हुआ था जिसमें टकराव की स्थिति में सैनिकों के लिए संयम बरतना और तत्काल वार्ता करना बाध्यकारी हो गया था। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर भी जिस तरह की बातें चल रही हैं, सरकार को उसे रोकना चाहिए।

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि वह मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय की प्रशंसा करते हैं। उनके कार्यालय ने कहा कि देवेगौड़ा को बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। बहरहाल, देवेगौड़ा ने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि गलवान घाटी में सैनिकों की जान जाने के मामले में जांच की जाए और यह पता लगाया जाए कि दुखद घटना का असल कारण क्या था।’

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