भूमि अतिक्रमण रोधि कानून की वैधता की होगी जांच
भूमि अतिक्रमण रोधि कानून की वैधता की होगी जांच
बेंगलूरु। राज्य में भूमि अतिक्रमण संबंधी गतिविधियों को रोकने के लिए सरकार ने कर्नाटक भूमि अतिक्रमण रोधि अधिनियम २०११ प्रभावी है लेकिन इस कानून की वैधानिकता पर प्रश्न उठाते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अब इस कानून की वैधानिकता की जांच करने का आदेश दिया है। उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर भूमि अतिक्रमण रोधि कानून को सख्त तथा असंवैधानिक बताया गया है। इस याचिका में उपरोक्त कानून को मूलभूत मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला भी बताया गया है। मुख्य न्यायाधीश सुब्रो कमल मुखर्जी और न्यायाधीश पीएस दिनेश कुमार की सदस्यता वाली पीठ ने उमा बलगावी और बीएन जयराम की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने बेंगलूरु पूर्व तालुक स्थित बैयराती गांव में ६ एक़ड जमीन खरीदी थी और उसकी बिक्री की थी। याचिकाकर्ताओं ने याचिका में कहा है कि भूमि अतिक्रमण रोधि कानून में आरोपी पर निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से मामला चलने की प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है विशेषकर जब जमीन के टाइटल से संबंधित मामला हो तब।याचिका मंे इस कानून को आवेदन देने में काफी कठोर बताया गया है। इसके साथ ही अदालत का ध्यान इस ओर भी आकृष्ट किया गया है कि इस कानून में पुनिरीक्षण और अपील का प्रावधान भी नहीं है। इसके साथ ही इस कानून में स्वत: संज्ञान या इसके समान अन्य प्रक्रिया शुरु करने का प्रावधान भी नहीं है। याचिका में कहा गया है कि सिविल कोर्ट द्वारा जब पूर्णतया निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से राज्य में अवैध अतिक्रमण संबंधी कानून का निपटारा किया जा रहा है ऐसे में कर्नाटक भूमि अतिक्रमण रोधि कानून के तहत इसी प्रकार के मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालत का गठन करना संविधान की धारा १४ के तहत कानून के समक्ष समान, धारा २० के तहत किसी अपराध मंे दोषी होने के बाद सुरक्षा, धारा २१ के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा और धारा ३००-ए के तहत कानूनी प्राधिकरण द्वारा बचाए गए संपत्ति से किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं रखने का उल्लंघन है।जिस जमीन की खरीद बिक्री को लेकर इस कानून की वैधानिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं उसे सरकार ने वर्ष १९४५ में एक नीलामी के तहत चिक्का अन्नेप्पा नामक व्यक्ति को बेचा था और उसके निधन के बाद यह उनके वारिस जयराम और उनके परिवार के सदस्यों की हो गई। हालांकि जब वर्ष २००७ में बलगावी ने भूमि रिकार्ड स्थानांतरित करने के लिए आवेदन दिया तो सरकारी अधिकारियों द्वारा यह कहा गया कि यह जमीन सरकार की है। याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय को बताया कि इस मामले में कर्नाटक अपील प्राधिकरण द्वारा उसके पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद उनके खिलाफ जमीन ह़डपने की शिकायत दर्ज करा दी गई। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कर्नाटक भूमि अतिक्रमण रोधि विशेष न्यायालय में दायर किए गए आपराधिक मुकदमे पर भी रोक लगा दी।