अब चुनावों में स्याही के बजाय एमपीवीएल के मार्करों के प्रयोग का निर्णय
अब चुनावों में स्याही के बजाय एमपीवीएल के मार्करों के प्रयोग का निर्णय
मैसूरु। कई दशकों से देश में होने वाले हर चुनाव के दौरान मताधिकार का प्रयोग कर चुके मतदाताओं की पहचान के लिए इस्तेमाल में लाई जाती रही स्याही का स्थान अब कोई और ले सकता है। कर्नाटक सरकार के उपक्रम मैसूरु पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड की इस स्याही को तमाम कोशिशों के बावजूद एक निश्चित समय के बाद ही मतदााता अपनी उंगली से छु़डा पाते थे। वहीं, इस वर्ष राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव में एक नए मार्कर पेन का प्रयोग किया जानेवाला है, जो आगे होने वाले अन्य चुनावों में भी इस अघुलनशील स्याही का स्थान ले सकता है। माना जा रहा है कि इस मार्कर पेन के आ जाने से भविष्य में अघुलनशील स्याही की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी। बहरहाल, १७ जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव में जिस मार्कर पेन का प्रयोग प्रस्तावित है, उसे भी मैसूरु पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड ने ही तैयार किया है। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में ही इनका प्रयोग करने की तैयारी की गई थी लेकिन बाद में इस योजना को टाल दिया गया। उन चुनावों में आखिरकार पुरानी स्याही का ही प्रयोग किया गया था। गौरतलब है कि भारतीय निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मैसूरु पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड ने नेशनल फिजिकल लैब, नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन और नेशनल केमिकल लैब की मदद से नया मार्कर पेन विकसित किया हैै। कंपनी का कहना है कि इस पेन के बहुआयामी फायदे हो सकते हैं्। बहरहाल, मैसूरु पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड के अधिकारियों ने अब तक इस बात की पुष्टि नहीं की है कि क्या राष्ट्रपति चुनाव के लिए नए विकसित किए गए मार्कर पेनों की आपूर्ति चुनाव आयोग को की जा चुकी है? अभी इस बात की भी आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है कि क्या चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव में एमपीवीएल के पेनों के प्रयोग को औपचारिक तौर पर हरी झंडी दिखा दी है? सूत्रों का कहना है कि इन प्रश्नों के उत्तर आनेवाले एक या दो दिनों में मिल सकते हैं्। सूत्रों की मानें तो एमपीवीएल द्वारा विकसित एक मार्कर पेन से एक हजार मतदाताओं की उंगलियों पर निशान लगाया जा सकता है। पूर्व में प्रयोग की जानेवाली न मिटने वाली स्याही की अपेक्षा इन मार्कर पेन्स की कीमत में भी ५० प्रतिशत का फर्क है। इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना स्याही की शीशियों के परिवहन की अपेक्षा कहीं अधिक आसान होगा।
एमपीवीएल को देश में चुनावों के दौरान प्रयोग की जाने वाली अघुलनशील स्याही बनाने वाली अपनी तरह की एकमात्र कंपनी माना जाता है। पूर्ववर्ती मैसूरु राज्य के शासक रहे नलवा़डी कृष्णराज वाडियान ने वर्ष १९३७ में इस कंपनी की स्थापना की थी। हाल में कंपनी ने यूएनडीपी के साथ हुए एक समझौते के तहत दुनिया के कई देशों में चुनावों के दौरान प्रयोग के लिए इस स्याही की आपूर्ति शुरू की है। एमपीवीएल के अध्यक्ष एचए वेंकटेश ने रविवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा, ’’चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार हमने शीशियों में भरी जानेवाली स्याही के स्थान पर नया मार्कर पेन विकसित किया है। भविष्य में यह मार्कर भारतीय चुनाव प्रक्रियाओं के लिए तरल स्याही का स्थान ले लेंगे। चुनाव आयोग ने इस मार्कर पेन की प्रायोगिक जांच की है और इसके नतीजों पर आयोग ने पूर्ण संतोष भी जताया है। चुनाव आयोग की ही अनुमति से हमने न मिटनेवाली स्याही के स्थान पर मार्कर पेन्स के उत्पादन का निर्णय लिया है।’’बताया जाता है कि चुनाव आयोग काफी समय से मतदान करनेवाले योग्य वोटरों को दूसरी बार मतदान से रोकने के लिए अपनाए जानेवाले तरीके में बदलाव की जरूरत महसूस कर रहा था। मतदाताओं से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में आयोग को पता चला था कि उंगलियों पर ब्रश की मदद से स्याही लगाने का चलन अब बहुत अधिक उपयोगी नहीं रह गया है। वहीं, न मिटने वाली स्याही का भंडारण और परिवहन भी किसी चुनौती से कम नहीं है। इसके मद्देनजर चुनाव आयोग को वैकल्पिक तरीके की तलाश थी। आयोग ने कर्इ् विकल्पों पर विचार करने के बाद मार्कर पेन्स पर मुहर लगाई और इनके उत्पादन की जिम्मेदारी भी स्याही बनाने वाली कंपनी एमपीवीएल को सौंपी गई। गौरतलब है कि अफगानिस्तान सहित कई अन्य देशों में भी मताधिकार का प्रयोग कर चुके वोटरों की पहचान के लिए मार्कर पेन्स का ही प्रयोग किया जाता है।