बाल यौन शोषण रोकथाम संबंधी कानून प्रभावी ढंग से लागू नहीं

बाल यौन शोषण रोकथाम संबंधी कानून प्रभावी ढंग से लागू नहीं

चेन्नई। बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून (पॉस्को)-२०१२ की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग द्वारा राज्य में यौन शोषण पीि़डत बच्चों के बारे में पेश की गई समीक्षा रिपोर्ट में यह कहा गया है कि बच्चों के यौन अपराधों से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया कानून राज्य में प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग ने अपनी समीक्षा रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष २०१६ में बाल यौन शोषण से संबंधित ८० मामलों को बाल कल्याण समिति(सीडब्ल्यूसी) को सौंपा गया है।तमिलनाडु बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के अनुसार आयोग के समक्ष दायर की गई याचिकाओं और मीडिया में आई खबरों के आधार पर जिन मामलों में मुआवजा देने की जरुरत होती है आयोग उन मामलों की सिफारिश मुख्यमंत्री के पास करता है। आयोग द्वारा मुआवजा देने की सिफारिश किए जाने के आधार पर वर्ष २०१५-१६ के दौरान मात्र ७ यौन शोषण पीि़डत बच्चों को सरकार द्वारा मुआवजा दिया गया है। तमिलनाडु बाल सुरक्षा अधिकार सुरक्षा आयोग के पास जो भी मामले पहुंचते है वह या तो मीडिया के माध्यम से पहुंचते हैं या फिर बाल कल्याण समिति उन मामलों को आयोग के समक्ष रखती है।पॉस्को कानून के तहत यौन शोषण का शिकार हुए बच्चों के अभिभावकों को सरकार की ओर से मिलने वाले मुआवजे के बारे में जागरुक करना पुलिस का काम है। लेकिन पुलिस बिरले ही यह काम करती है। मुजरिमों की गिरफ्तारी और बाल कल्याण समिति को मामले सौंपे जाने के बाद पुलिस ऐसे मामलों में नि्क्रिरय हो जाती है। जबकि इस तरह की शिकायतें सबसे पहले पुलिस के पास आती है। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर मामलों में पुलिस ऐसे मामलों को बाल कल्याण समिति को सौंपने में भी कोताही बरतती है। पुलिस द्वारा जांच के दौरान समुचित तथ्य प्राप्त न करने के कारण मामलों के कमजोर होने का खुलासा भी हुआ है। उल्लेखनीय है कि वर्ष २०११ में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को अपने यहां बाल यौन शोषण पीि़डतों को मुआवजा देने के लिए कोष बनाने का निर्देश दिया था। इस कोष से यौन शोषण, बलात्कार, एसिड हमले आदि जैसे अपराध के शिकार हुए पीि़डतों को मुआवजा देने का प्रावधान है। लेकिन राज्य में इस तरह की योजना वर्ष १९९५ से ही चल रही है। इस योजना के तहत सालाना २ करो़ड रूपए की राशि आवंटित की जाती है लेकिन इस योजना से पिछले एक वर्ष में कितने लोग लाभान्वित हुए हैं इस संबंध में विभाग के पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय के सूत्रों के अनुसार इस योजना के बारे में राज्य के पुलिस स्टेशनों में कोई आधिकारिक नोटिस नहीं भेजा गया है। इस संबध में सरकारी आदेश आखिरी बार चार वर्ष पहले जारी किया गया था। ज्ञातव्य है कि यौन शोषण का शिकार बने बच्चों को चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है लेकिन मुआवजा की राशि पीि़डत बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है।इस संबंध में चाइल्ड लाइन के अधिकारियों का कहना है कि जो मामले बाल कल्याण समिति को सौंपे जाते हैं उनमें पीि़डत बच्चों को मुआवजा दिलाने के लिए समिति न्यायालय के आदेश आने का इंतजार करती है। समिति द्वारा पीि़डत बच्चों को मुआवजा दिलाने के लिए न्यायालय का आदेश आने तक इंतजार करने के कारण ही बच्चों को समय से मुआवजे की राशि नहीं मिल पाती है।

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