इमरान का 'वादा'

इमरान ने कुछ इसी तरह के वादे उस समय किए थे, जब वे प्रधानमंत्री बने थे

इमरान का 'वादा'

आज इमरान ख़ान अपनी सेना के आंखों की किरकिरी बने हुए हैं

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का यह 'वादा' हास्यास्पद है कि जब वे फिर से देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो अमेरिका के साथ संबंध सुधारना चाहेंगे। अमेरिका पर साजिश और खुद की सरकार गिराने का दोषारोपण और विभिन्न रैलियों में उसे आड़े हाथों लेने वाले इमरान यह भूल गए हैं कि विदेश नीति इस किस्म के वादों से नहीं चलती। दो देशों के परस्पर हित होते हैं, जिनके लिए उन्हें तमाम संभावनाओं, पहलुओं को देखकर संबंधों को आगे बढ़ाना होता है। 

Dakshin Bharat at Google News
इमरान ने कुछ इसी तरह के वादे उस समय किए थे, जब वे प्रधानमंत्री बने थे। वास्तव में तब भारत में बहुत लोग आशान्वित थे कि क्रिकेट से राजनीति में आए और तब्दीली का वादा कर सुनहरे सपने दिखाने वाले इमरान आतंकवाद को खत्म नहीं कर सके तो कुछ काबू कर लेंगे और भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाएंगे, लेकिन वे इस दृष्टि से सबसे विफल प्रधानमंत्री साबित हुए। 

उनके कार्यकाल में ही पुलवामा हमला हुआ, जिसके बाद भारतीय वायुसेना ने जोरदार जवाबी कार्रवाई की। इमरान को भारतीय प्रधानमंत्री का सख्त रवैया देखकर विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करना पड़ा, वरना बात इससे कहीं आगे निकल जाती। 'शांति' स्थापना की दिशा में इमरान ने पूर्व सैन्य तानाशाह ज़िया-उल हक़ को भी मात दे दी। अब वे कह रहे हैं कि अमेरिका के साथ संबंध सुधारेंगे!

आज इमरान ख़ान अपनी सेना के आंखों की किरकिरी बने हुए हैं, लेकिन उन्हें सत्ता में लाने वाली सेना ही थी। उसे भ्रम हुआ कि सेलिब्रिटी होने के कारण इमरान का जादू अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चल जाएगा, जिसके बाद वे खूब डॉलर मांगेंगे और सैन्य अधिकारी दुबई, लंदन, न्यूयॉर्क आदि में महंगे बंगले खरीदेंगे। सेना का यह दांव उलटा पड़ गया। इमरान आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह विफल हुए। अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। डॉलर के मुकाबले रुपए में ऐतिहासिक गिरावट आई। जनता में भयंकर आक्रोश पैदा हो गया। 

अब तक इमरान को भी लगने लगा था कि यह दाल नहीं गलने वाली। यहां एक बार फिर उनकी किस्मत ने जोर मारा तो कुर्सी चली गई। अब पूरी मुसीबत शहबाज शरीफ के सिर आ पड़ी है। भारी बारिश और बाढ़ से लाखों परिवार प्रभावित हुए हैं, जिनकी मदद के दूर-दूर तक कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। खजाना खाली है। इधर इमरान हालिया गोलीकांड के बाद खुद को 'सियासी शहीद' की तरह पेश कर दोबारा ताल ठोक रहे हैं। 

हालांकि उनके सुर कुछ बदले-बदले से हैं। वे कभी भारत की तारीफ कर देते हैं तो कभी अमेरिका से अच्छे संबंधों का वादा कर देते हैं। बदले में उनके प्रशंसकों से खूब तालियां मिलती हैं। हो सकता है कि आगामी चुनावों तक सेना और इमरान के बीच कोई 'समझौता' हो जाए और वे फिर कुर्सी पा जाएं। इस सूरत में भी भारतीयों को नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के हर शासक की ओर से हमें धोखा ही मिला है। 

पाक के अगले प्रधानमंत्री इमरान बनें या कोई और, भारत को लेकर नीति में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आने वाला है। अमेरिका पाक की फितरत जानता है, इसलिए जहां उसे कोई काम लेना होगा, सुविधानुसार पैंतरे आजमाएगा।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download