'ऊंची उड़ान' के सपने
क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि इंडिया गठबंधन में खींचतान शुरू हो गई है?
'आप' तो कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन से पैदा हुई थी
विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ अभी पूरी तरह आकार लेकर मैदान में नहीं उतरा कि इससे पहले ही 'प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार' बनने की दावेदारी शुरू हो गई है। कौनसा दल नहीं चाहता कि उसका नेता प्रधानमंत्री बने? लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) अभी से ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम आगे करने लगी है!
क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि गठबंधन में खींचतान शुरू हो गई है? इससे अन्य घटक दलों में यह संदेश जाएगा कि वे भी गाहे-बगाहे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर अपने नेता का नाम आगे बढ़ा दें। उम्मीदवार घोषित होना या न होना बाद की बात है, इससे घटक दलों पर दबाव तो आ ही जाएगा।केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की इच्छा संबंधी बयान 'आप' के किसी आम कार्यकर्ता ने नहीं दिया। इसकी मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा कि वे बतौर प्रवक्ता, राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के नाम का प्रस्ताव रखना चाहेंगी! उन्होंने यह टिप्पणी 'इंडिया' गठबंधन की मुंबई में बैठक होने से पहले की, जिसमें विपक्षी नेता वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का मुकाबला करने के लिए संयुक्त प्रचार रणनीति और अपने सदस्यों के बीच 'मतभेदों' को दूर करने पर चर्चा करेंगे।
इस बैठक में 'मतभेद' कितने दूर होंगे, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन प्रियंका कक्कड़ के बयान से घटक दलों के नेताओं की चिंता जरूर बढ़ सकती है। हालांकि इस बयान के कुछ घंटे बाद ही दिल्ली की कैबिनेट मंत्री आतिशी ने यह कहकर मामले को संभालने की कोशिश की कि मैं आधिकारिक रूप से कह रही हूं, अरविंद केजरीवाल देश का प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में नहीं हैं। सवाल है- तो पार्टी की मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता के बयान के क्या मायने हैं?
'आप' के दिल्ली संयोजक और पर्यावरण मंत्री गोपाल राय भी कमोबेश यही कह रहे हैं, ‘हर पार्टी चाहती है कि उसका नेता प्रधानमंत्री बने। आप सदस्य भी चाहते हैं कि उनके राष्ट्रीय संयोजक प्रधानमंत्री बनें।' हालांकि उन्होंने भी 'संतुलन' साधने की कोशिश करते हुए कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी सदस्य बैठक करेंगे और जो फैसला होगा, हम उसके अनुसार आगे बढ़ेंगे।’
‘इंडिया’ गठबंधन को लेकर जनमानस में धारणा है कि यह मुख्यत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'विजयरथ' रोकने के लिए बनाया गया है, जिसमें कांग्रेस 'नेतृत्व' की भूमिका में रहना चाहती है। अगर 'आप' की ओर से भविष्य में भी इसी तरह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर केजरीवाल का नाम उछाला गया तो यह कांग्रेस समेत अन्य घटक दलों को असहज कर सकता है।
चूंकि 'आप' तो कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन से पैदा हुई थी। इस पार्टी ने अपने अस्तित्व में आने के बाद सबसे ज्यादा सियासी नुकसान कांग्रेस को पहुंचाया है। राष्ट्रीय राजधानी में 15 वर्षों से शीला दीक्षित के नेतृत्व में चली आ रही तत्कालीन कांग्रेस सरकार को 'आप' ने सत्ता से बाहर किया था। इसने पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से सत्ता छीनकर सरकार बना ली। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोटबैंक में खूब सेंध लगाई। इससे कांग्रेस को सीटों का भारी घाटा हुआ।
चूंकि 'आप' की केंद्र की राजनीति में आकर सत्तासीन होने की महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं हैं। इस पार्टी के निर्माण के बाद वर्ष 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसे 'पूर्ण सफलता' नहीं मिली, लेकिन इसने सरकार बना ली थी। इस 'जीत' से उत्साहित होकर केजरीवाल ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बनारस जाकर मोदी को चुनौती दे डाली थी।
हालांकि केजरीवाल हारे और अन्य सीटों पर भी 'आप' का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा था। इतने वर्षों में 'आप' ने दिल्ली में जड़ें मजबूत कीं, वहीं कांग्रेस सिमटती गई। अब तो 'आप' को राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा मिल गया है। ऐसे में यह पार्टी 'ऊंची उड़ान' के सपने क्यों न देखे! क्या 'इंडिया' गठबंधन में रहते यह संभव है? क्या कांग्रेस और घटक दल उसके मार्ग में अवरोध नहीं डालेंगे?
अगर लोकसभा चुनाव नजदीक आते-आते अन्य दलों की ओर से भी अपने नेताओं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के स्वर उठने लगे तो इंडिया' गठबंधन का भविष्य क्या होगा? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब इस गठबंधन को अभी तलाशने की जरूरत है।