बलूचों की सिसकियां

बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों से मालामाल है

बलूचों की सिसकियां

जिस दिन बलूचिस्तान 'आज़ाद' होगा, इस दर्द पर मलहम लगेगा

पाकिस्तान में बलूचों के मन में विद्रोह की ज्वाला भड़कती जा रही है। अगर इस पड़ोसी देश की सरकार और फौज ने अब भी उनके मुद्दों की ओर ध्यान नहीं दिया तो यह स्थिति आर या पार की लड़ाई में तब्दील हो सकती है। पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के साथ ही सरकारी स्तर पर बलूचों से विश्वासघात शुरू हो गया था, जो आज तक जारी है। अब उनके सब्र का बांध टूटता जा रहा है। ये बलूच कार्यकर्ता सैकड़ों किमी की यात्रा कर इस्लामाबाद में विरोध प्रदर्शन की कोशिशें कर रहे थे, लेकिन उन पर बल प्रयोग कर गिरफ्तार कर लिया गया था। 

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आश्चर्य की बात है कि जो पश्चिमी 'थिंक टैंक' मामूली-सी घटना में 'तिल का ताड़ बनाकर' भारत की आलोचना करने का मौका नहीं छोड़ते, उन्हें बलूचों की सिसकियां सुनाई नहीं देतीं! ये बलूच कार्यकर्ता क्या चाहते हैं? यही कि उनके साथ इन्साफ किया जाए! वे यह जानना चाहते हैं कि उनके (वे) लोग कहां हैं, जो महीनों/वर्षों से गायब हैं? 

इस बार तो पाकिस्तान सरकार ने किसी तरह उन पर काबू पा लिया, उनमें से 290 बलूच कार्यकर्ताओं को रिहा भी कर दिया, लेकिन यह ज्वाला इससे शांत नहीं होगी। ये लोग भविष्य में फिर ताकत जुटाकर आएंगे, क्योंकि अब उन्हें पाक सरकार और फौज से कोई उम्मीद नहीं है। बलूचिस्तान में ऐसे कई परिवार हैं, जिनमें लोग अचानक गायब हो गए और आज तक घर नहीं लौटे। 

एक बुजुर्ग बलूच का बेटा कई महीनों से गायब है। वे जानते हैं कि उसे पाकिस्तान फौज व आईएसआई ने उठाया है और अब वह इस दुनिया में नहीं है। उन बुजुर्ग की अपने हुक्मरानों से सिर्फ इतनी गुजारिश है कि वे अपने मुंह से कह दें कि अब आपका बेटा जिंदा नहीं है। वे उसकी लाश भी नहीं चाहते। बस यह तसल्ली करना चाहते हैं कि उन्हें अपने बेटे के बारे में सही जानकारी मिल जाए। वे कहते हैं कि सरकार की ओर से उन्हें इतना कह दिया जाए तो वे जिंदगीभर अपने घर की छत पर पाकिस्तान का झंडा लगाएंगे। मगर अफसोस! उन बुजुर्ग को भी पीट-पीटकर जेल में डाल दिया गया।

बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों से मालामाल है। इसके बावजूद वहां घोर गरीबी है। वहां गैस के भंडार हैं। उसका इस्तेमाल इस्लामाबाद, रावलपिंडी, लाहौर, कराची जैसे बड़े शहरों में होता है। आम बलूच आज भी लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाने को मजबूर है। बलूचिस्तान के रास्ते ईरान से तेल की तस्करी होती है, जिससे सैन्य अधिकारी खूब चांदी कूटते हैं। वहीं, आम बलूच ऊंची कीमत पर तेल खरीदने को मजबूर है। 

आज बलूचिस्तान के हालात लगभग वैसे ही हैं, जैसे साल 1971 से पहले पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) के थे। एक चर्चित घटना के अनुसार, पूर्वी पाकिस्तान से एक व्यक्ति पश्चिमी पाकिस्तान आया। वहां उसने मंत्रियों, सरकारी अफसरों और सैन्य अधिकारियों के ठाठ देखे तो कहा कि इस्लामाबाद की सड़कों से पटसन की गंध आती है। इसका यह आशय था कि पूर्वी पाकिस्तान के संसाधनों को लूटकर पश्चिमी पाकिस्तान में ताकतवर तबका गुलछर्रे उड़ा रहा था। आज उसी तर्ज पर बलूचिस्तान के संसाधनों की लूट-मार जारी है। बलूचों का उनकी जमीन से खात्मा करने के लिए बड़े स्तर पर कोशिशें हो रही हैं। 

आम बलूच को लेकर अदालतों का रुख भेदभाव पर आधारित है। वे गुमशुदा लोगों के मामलों में फौज की हां में हां मिलाती नजर आती हैं। बलूच कार्यकर्ताओं में से ऐसी कई महिलाएं हैं, जिनके पति वर्षों से गायब हैं। वे जब कभी विरोध प्रदर्शन करती हैं तो मुख्य धारा का मीडिया उनकी खबरें नहीं छापता। 

स्थानीय कार्यकर्ता बताते हैं कि उनके कई साथियों का पाक फौज ने 'अपहरण' कर लिया था। इसके बाद उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर उन्हें उड़ते हेलीकॉप्टर से नीचे फेंक दिया। यह जुल्म कम होने का नाम नहीं ले रहा। जिस दिन बलूचिस्तान 'आज़ाद' होगा, इस दर्द पर मलहम लगेगा।

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