शुक्र मनाएं इमरान!
इमरान ख़ान के 'पर' बड़ी तेजी से कतरे जा रहे हैं
पाक में आगामी आम चुनावों को लेकर जनता में उत्साह भी कम नजर आ रहा है
पाकिस्तान में फौज को 'आंखें दिखाने' वाले पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के 'पर' बड़ी तेजी से कतरे जा रहे हैं। पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी उनके साथ लपेटे में आ गए हैं। ख़ान और कुरैशी को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत स्थापित जिस विशेष अदालत ने दस-दस साल जेल की सजा सुनाई, उसकी कार्यवाही से ही साफ पता चल रहा था कि जज 'रावलपिंडी' के इशारे पर काम कर रहे हैं। फैसला भी जीएचक्यू (पाक फौज का मुख्यालय) से ही आया है। बस जज ने तो उसे पढ़ दिया। अगर इमरान को ऊपरी अदालतों से भी राहत नहीं मिली तो उनका राजनीतिक करियर खत्म ही समझें। इमरान शुक्र मनाएं कि उन्हें सिर्फ दस साल की सजा हुई है। इससे पहले, उनके परिजन और पार्टी के सदस्य तो यह चर्चा कर रहे थे कि फौज चाहती है कि इमरान ख़ान को सजा-ए-मौत मिले, जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह! हालांकि फौज यह भी नहीं चाहती कि इमरान राजनीतिक शहीद का दर्जा पा जाएं, इसलिए बहुत शातिराना ढंग से उन्हें 'खत्म' करने की कोशिश की जा रही है। पहले तो उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न 'बल्ला' छीन लिया गया। अब उन्हें दस साल के लिए जेल में रखने का इंतजाम कर दिया गया है। इस बीच दो-चार (और) झूठे-सच्चे मुकदमों में ऐसी स्थिति का निर्माण किया जा सकता है, जिससे इमरान किसी-न-किसी तरह जेल में ही रहें। करीब 71 साल के इमरान अगर पांच या दस साल तक जेल में रहते हैं तो रिहा होने के बाद उनके पास न तो संगठन बचेगा और न ही इतनी ऊर्जा, जिससे कि वे फौज के लिए कोई चुनौती बन सकें।
उनके उम्मीदवारों को पार्टी के चुनाव चिह्न 'बल्ले' से वंचित करने की कोशिशें फौज की इसी रणनीति का हिस्सा हैं। इससे एक ओर जहां पार्टी में एकता का सूत्र कमजोर होगा, वहीं मतदाता भी भ्रमित होंगे। हर निर्वाचन क्षेत्र से पीटीआई के उम्मीदवारों को अलग-अलग चुनाव चिह्न मिलने से जनता के लिए 'असल' उम्मीदवार का पता लगाना मुश्किल होगा। अभी कई जगह यह स्थिति है कि एक से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार दावा कर रहे हैं कि वे इमरान ख़ान के आदेश से चुनाव लड़ रहे हैं! यह भी आशंका जताई जा रही है कि चुनाव नतीजे आने के बाद इनमें से विजेता 'निर्दलीय' उम्मीदवार बहुत आसानी से पाला बदलकर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन की ओर जा सकते हैं। वैसे, पाक में आगामी आम चुनावों को लेकर जनता में उत्साह भी कम नजर आ रहा है। चूंकि देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है, महंगाई आसमान छू रही है, लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं और राहत की कोई किरण नजर नहीं आ रही है। दूसरी ओर, इमरान ख़ान जेल में हैं, अब उन्हें लंबी सजा हो गई है, उनके सहयोगी वरिष्ठ नेता कानूनी मुसीबतें झेल रहे हैं और जनता के सामने नवाज शरीफ के रूप में वही पुराना चेहरा है, जिसकी पिछली गठबंधन सरकार में पाक की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई थी। जनता के लिए अधिक विकल्प नहीं हैं। चारों ओर निराशा का वातावरण है। हर आम आदमी चाहता है कि अगर उसे यूरोप या अमेरिका का वीजा मिले तो वह अगली फ्लाइट पकड़कर इस 'जंजाल' से मुक्ति पा ले। रहे इमरान ख़ान, तो जिस दिन उन्होंने जीएचक्यू से हाथ मिला लिया, उनके 'सात ख़ून माफ़' हो जाएंगे!