चर्चा करें, राय लें

कर्नाटक सरकार ऐसी कई योजनाएं चला रही है, जिनसे लोगों को लाभ मिल रहा है

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स्थानीय होना अपनेआप में एक खूबी है, जिसका लाभ संबंधित प्रतिष्ठान और व्यक्ति, दोनों को मिलता है

कर्नाटक सरकार द्वारा कन्नड़ भाषियों को निजी क्षेत्र में आरक्षण देने संबंधी जो विधेयक लाया गया, अगर उस पर पहले विस्तार से चर्चा की होती, उद्योग जगत से राय ली जाती, विभिन्न पहलुओं से जुड़े कुछ बिंदुओं पर सहमति बनाने की कोशिश होती, तो उसे यूं 'ठंडे बस्ते' में नहीं डालना पड़ता। कर्नाटक सरकार पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वह कन्नड़ भाषियों के कल्याण के लिए विभिन्न कदम उठाए। कर्नाटक के लोग चाहते हैं कि उनके लिए शिक्षा की उत्तम व्यवस्था हो, रोजगार के पर्याप्त मौके हों, उनके हितों की दृढ़ता से रक्षा हो। हर कन्नड़ भाषी को कर्नाटक में इतनी सुविधाएं जरूर सुलभ हों, जिससे वह सम्मानजनक ढंग से जीवन-यापन कर सके। कर्नाटक सरकार ऐसी कई योजनाएं चला रही है, जिनसे लोगों को लाभ मिल रहा है। कन्नड़ भाषा एवं संस्कृति के गौरव का जरूर ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही सरकार को यह जानना भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वह लोगों के कल्याण के लिए जो कदम उठा रही है, उनको लेकर कितनी तैयारी है, वे कदम कितने दृढ़ हैं, क्या सर्वसमाज उनके लिए तैयार है और सबसे ज्यादा जरूरी यह कि नतीजे क्या होंगे? कर्नाटक सरकार द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण दिए जाने के फैसले के पीछे मंशा सही हो सकती है, लेकिन उसे धरातल पर उतारना टेढ़ी खीर है। जब कोई व्यक्ति किसी राज्य में उद्योग लगाता है तो उसकी भी कोशिश होती है कि वह संबंधित कार्य में कुशल स्थानीय लोगों को नियुक्त करे, क्योंकि उन्हें सामाजिक व सांस्कृतिक स्तर पर तालमेल बैठाने में कोई समस्या नहीं होती। वे कई जिम्मेदारियों में उन लोगों से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जो अन्य राज्यों से आए हैं।
 
स्थानीय होना अपनेआप में एक खूबी है, जिसका लाभ संबंधित प्रतिष्ठान और व्यक्ति, दोनों को मिलता है। वहीं, योग्यता को भी नहीं नकारा जा सकता। कर्नाटक में बेंगलूरु शहर, जो आईटी हब है, जहां बड़ी तादाद में स्टार्टअप हैं, जिसकी तकनीकी महारत से देश-विदेश के बड़े-बड़े धुरंधर अचंभित हैं, वहां आरक्षण के नियमों को कैसे लागू करेंगे, जबकि अन्य राज्यों से आए प्रतिभाशाली लोग पहले से ही बहुत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे हैं? बेशक उनका जन्म कर्नाटक में नहीं हुआ, शायद उनका कन्नड़ भाषाज्ञान भी उत्कृष्ट न हो, लेकिन वे इस राज्य से प्रेम करते हैं, खुद को कन्नड़ भाषा एवं संस्कृति के गौरव से जोड़कर देखते हैं। इस राज्य ने उनकी काबिलियत की कद्र की, उन्होंने भी इसे समृद्ध बनाने के लिए भरपूर मेहनत की। उनमें से कई तो ऐसे हैं, जिन्होंने अन्यत्र नौकरी छोड़कर बेंगलूरु को अपनी कर्मभूमि बनाया। उनकी मेहनत का लाभ किसी-न-किसी रूप में कर्नाटक के लोगों को मिल रहा है। जब राज्य में उद्योग फल-फूल रहे हों तो सरकार को चाहिए कि वह स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा जरूर करे, उसके साथ ही ऐसी नीतियां बनाए, जिससे राज्य में और ज्यादा निवेश आए, अन्य राज्यों के प्रतिभाशाली लोग यहां आकर अपना योगदान दें। सरकार को आनन-फानन में ऐसे नियम नहीं बनाने चाहिएं, जो उद्योग जगत में अनिश्चितता और आशंकाओं के वातावरण की वजह बनें। भारत में सरकारी नौकरियों में आरक्षण पहले ही बहुत संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। इसके पीछे सरकारों, राजनीतिक दलों के अपने तर्क हैं। वहीं, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि कुछ वर्गों में असंतोष भी पैदा हो रहा है। आरक्षण पाने के लिए कितने ही हिंसक प्रदर्शन हो चुके हैं, जिनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। इन दिनों बांग्लादेश इसी आग से झुलस रहा है। ऐसे में निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के फैसले से आशंकाएं तो पैदा होंगी ही, अन्य राज्यों की सरकारें भी यह कोशिश करेंगी कि बदलते हालात में कंपनियां उनके शहरों का रुख करें! कर्नाटक सरकार उन तमाम बिंदुओं पर अध्ययन, मनन और चिंतन करे, उद्योग जगत से चर्चा करे। उसके बाद ही कोई कदम उठाए।

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