अनुभवों से सबक लें
भारत अवैध बांग्लादेशियों की समस्या का सामना कर रहा है
कई बांग्लादेशी चोरी-छिपे भारत आ जाते हैं
बांग्लादेश में आरक्षण-विरोधी आंदोलन के दौरान मची उथल-पुथल के बीच भारत में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा की गई 'लोगों को शरण देने' संबंधी टिप्पणी की कोई ज़रूरत नहीं थी। उक्त आंदोलन से बांग्लादेश में खूब तोड़फोड़ हुई, जिसके मद्देनजर इस पड़ोसी देश की सरकार को वहां की जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अगर भारत की ओर से किसी तरह की मदद पहुंचाने संबंधी बयान देना ही होता तो विदेश मंत्री या उनके कार्यालय द्वारा दिया जा सकता था। ऐसे मामलों में संतुलित बयान दिया जाता है, ताकि न तो संबंधित देश की सरकार के साथ संबंध बिगड़ें और न ही वहां की आम जनता में किसी तरह की ग़लतफ़हमी पैदा हो। बेशक बांग्लादेश में आरक्षण-विरोधी आंदोलन से जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ, सार्वजनिक व निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा, लेकिन 'परेशान लोगों के लिए अपने राज्य के दरवाजे खुले रखने और उन्हें शरण देने' जैसा बयान न केवल गैर-जरूरी था, बल्कि इससे भ्रम भी फैल सकता था। यह तो बांग्लादेशी उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण घटाकर 93 प्रतिशत नौकरियां मेरिट पर देने का आदेश दे दिया, जिससे लोगों का आक्रोश शांत हुआ। अगर मामला लंबा खिंचता और बड़ी तादाद में बांग्लादेशियों के झुंड के झुंड हमारी सरहद पर आ जाते तो हम क्या करते? निहत्थे आम लोगों पर बलप्रयोग भी नहीं कर सकते। क्या हमारे पास इतने संसाधन हैं कि 141 करोड़ से ज्यादा अपनी जनसंख्या के साथ उन बांग्लादेशियों का भी खर्च बर्दाश्त कर पाते? इस पड़ोसी देश में युवा सरकारी नौकरियों में अवसर देने के लिए आंदोलन कर रहे थे, जो हिंसक हो गया। भारत में भी करोड़ों युवा सरकारी नौकरियां पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। क्या हमारे पास रोजगार के इतने अवसर हैं कि अपने युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार काम देते हुए बांग्लादेशी युवाओं की भी मदद कर सकें?
जाहिर-सी बात है कि हम ऐसा नहीं कर सकते। देश के पास जितने संसाधन हैं, रोजगार के जितने अवसर हैं, उनसे भारतीय युवाओं के जीवन स्तर को तो बेहतर बना लें! भारत वर्षों से अवैध बांग्लादेशियों की समस्या का सामना कर रहा है। कई शहरों में ऐसे लोग पकड़े जा चुके हैं, जो ट्रेन से या घुसपैठ करके बांग्लादेश से भारत आए, यहां फर्जी दस्तावेज बना लिए। उसके बाद घुल-मिलकर यहीं के होकर रह गए। कई बांग्लादेशी तो यहां चोरी, डकैती, हत्या, दुष्कर्म समेत गंभीर अपराधों में लिप्त पाए गए हैं। बेशक बांग्लादेश की सरकार के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। भारत सरकार समय-समय पर इसे मदद पहुंचाती रही है। बांग्लादेश के विकास में भारत के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। आज वहां के आम नागरिकों को कम कीमत पर खाद्यान्न, ईंधन, मशीनरी, मेडिकल उपकरण और अन्य सुविधाएं मिल रही हैं तो उसके पीछे भारत सरकार का सहयोग है। हमें इस देश में शांति व खुशहाली के लिए अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार सहयोग जरूर देना चाहिए, लेकिन 'शरण देने संबंधी' बयानों से परहेज करना चाहिए। इससे हमारे देश के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। बांग्लादेश में सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों की काफी कोशिशों के बाद प्रजनन दर में कमी जरूर आई है। वहीं, पहले से मौजूद बड़ी आबादी के कारण जनघनत्व काफी ज्यादा है। राजधानी ढाका में तो हालात बहुत मुश्किल हैं। वहां सड़कों पर वाहन चलाते हुए उस पर बिना कोई खरोंच लगे घर पहुंच गए तो गनीमत समझें। बांग्लादेश के पास इतनी जनसंख्या के लिए सरकारी नौकरियों का इंतजाम करने के वास्ते संसाधन नहीं हैं। दुनिया की कोई भी सरकार इतने लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती। वहां निजी क्षेत्र में काम तो है, लेकिन वेतन कम है, इसलिए कई बांग्लादेशी चोरी-छिपे भारत आ जाते हैं। कई लोग अवैध तरीकों से यूरोप चले जाते हैं। वहां स्थानीय लोगों के साथ उनके टकराव की खबरें आती रहती हैं। यूरोप के जिन देशों ने दरियादिली दिखाते हुए 'अपने दरवाजे' खोले, वे आज उसका खामियाजा भुगत रहे हैं। एक दशक पहले तक यूरोप के जिन देशों के शांत व सुरक्षित माहौल की मिसालें दी जाती थीं, अब वहां से हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी की खबरें आती हैं। क्या इतने अनुभव सबक लेने के लिए काफी नहीं हैं?