नायब सिंह के सामने अब 'नायाब’ होने की चुनौती
हरियाणा के जाट और किसान भाजपा से नाराज रहे हैं
Photo: NayabSainiOfficial FB Page
सुशील कुमार 'नवीन’
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चुनावों के समय भाजपा का खुले रूप में सबसे ज्यादा विरोध करने वाला वर्ग कर्मचारियों का हैं| प्रदेश में करीबन पौने तीन लाख सेवारत कर्मचारी हैं| इसमें यदि डेढ़ लाख पेंशनर और मिला दिए जाएं तो संख्या पांच लाख पार हो जाती है| कर्मचारी वर्ग विशेषकर पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाता रहा है| लोक सभा चुनाव में भी कर्मचारी संगठनों ने इसे खूब भुनाया| विधानसभा चुनाव में भी कर्मचारी वर्ग भाजपा से नाखुश दिखा| लोहारू, आदमपुर, रोहतक जैसी सीट बहुत कम अंतर से रही है| इनमें भी कर्मचारी वर्ग का बड़ा रोल है| बैलेट पेपर में भी भाजपा की मत प्रतिशतता पचास फीसदी ही रही है| इस वर्ग को भी अपने साथ जोड़ना आने वाले समय के लिए नायब सरकार के लिए जरूरी है| २०२०-२०२१ में दिल्ली की सीमाओं पर चले किसान आंदोलन का असर भी इस चुनाव में खूब दिखा| उस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज, मुकदमे और आंदोलनकारी किसानों की मौत से एक बड़ा वर्ग सत्ताधारी भाजपा से नाराज दिखा| इसका असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला| २०१९ के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी १० लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा ५ सीटों पर सिमटकर रह गई| किसान आंदोलन का असर हरियाणा के कई विधानसभा सीटों पर देखने को मिला| भाजपा नेताओं को किसान वर्ग के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा| किसानों को भी अपने साथ जोड़ने के लिए नायब सरकार को सकारात्मक होना पड़ेगा|
चुनाव में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा था है| कांग्रेस के संकल्प पत्र में पार्टी ने सरकार बनने पर २ लाख पक्की नौकरी का वायदा किया था| वहीं भाजपा ने भी दो लाख युवाओं को पक्की सरकारी नौकरी और पांच लाख युवाओं को अन्य रोजगार के अवसर एवं नेशनल अप्रेंटिशिप प्रमोशन योजना से मासिक स्टाइपेंड देने की घोषणा की हुई है| कांग्रेस नेताओं के पर्ची खर्ची बयानों पर भाजपा बिना पर्ची बिना खर्ची का नारा देकर युवा गर्ग को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही है| शपथ से पूर्व २४ हजार पदों का रिजल्ट निकालकर नायब सरकार ने जबरदस्त सिक्सर मारा है| युवा वर्ग में योग्यता पर नौकरी के विश्वास को नायब सरकार को बनाए रखना होगा| नायब सरकार से पूर्व दो बार की मनोहर सरकार के समय कुछ बड़े घटनाक्रमों ने पूरे हरियाणा को हिलाया था| नवंबर २०१४ में संत रामपाल गिरफ्तारी प्रकरण, फरवरी २०१४ में जाट आंदोलन प्रकरण, अगस्त २०१७ में डेरामुखी की गिरफ्तारी से उपजी हिंसा और जुलाई २०२३ में नूंह हिंसा और तोड़फोड़ की बड़ी घटनाएं कभी भूली जाने वाली नहीं है| ये तो मनोहर लाल की पार्टी कैडर में अच्छी मजबूती रही, अन्यथा इस तरह की एक ही घटना मुख्यमंत्री बदलवा देती| इस तरह को कोई घटना क्रिएट न हो, इसके लिए प्रशासनिक मजबूती पर विशेष ध्यान रखना होगा| क्योंकि सरकार तो अफसर चलाते हैं| अफसरों की ढिलाई बने बनाए काम को बिगाड़ते देर नहीं लगाएगी| ऐसे में नायब सिंह को सबसे पहले अपनी टीम को मजबूत बनाना होगा| पिछली टीम मनोहर टीम थी, अब उसकी जगह नायब टीम बनानी होगी|
हरियाणा के जाट और किसान भाजपा से नाराज रहे हैं| इस फैक्ट से भाजपा पूर्ण रूप से वाकिफ है| ये दोनों वर्ग प्रदेश के बड़े वर्ग हैं| इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती| जाट, गैर जाट का ध्रुवीकरण हमेशा फायदा नहीं दे सकता| परिवार पहचान पत्र, प्रॉपर्टी आई डी की त्रुटियों को भी विपक्ष ने खूब भुनाया है| इन्हें सुधारने में हालांकि भाजपा सरकार ने काफी प्रयास भी किए हैं, पर अभी भी ये नाकाफी है| सबसे आखिरी और प्रमुख ध्यान अपने विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल पर रखना होगा| इसे लेकर भी लोगों में काफी नाराजगी रही| अपने ९ वर्ष से अधिक के कार्यकाल में मनोहरलाल केंद्र के समक्ष ’मनोहर’ रहने में कामयाब रहे| अब नायब की बारी है, उन्हें मनोहर काल से अलग काम करके दिखाना होगा तभी वो नायब से ’नायाब’ (उत्कृष्ट) बन पाएंगे|