डिजिटल अरेस्ट: कंगाल करता ठगी का जाल

साइबर ठग चुटकियों में बैंक खाता खाली कर देते हैं

डिजिटल अरेस्ट: कंगाल करता ठगी का जाल

ठगी के कई मामलों में पुलिस ने कार्रवाइयां की हैं, पीड़ितों को उनका हक दिलाया है

'डिजिटल अरेस्ट' के नाम पर लोगों से लाखों-करोड़ों रुपए की ठगी के मामले इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में इसका जिक्र किया और बचने के तरीके भी बताए। निश्चित रूप से यह बहुत गंभीर विषय है और प्रधानमंत्री का इस पर चिंता जताना स्वाभाविक है। 

Dakshin Bharat at Google News
लोग इतनी मेहनत से रुपए कमाते हैं, उन पर घर-परिवार की जिम्मेदारियां होती हैं, लेकिन साइबर ठग चुटकियों में उनका बैंक खाता खाली कर देते हैं। आश्चर्य होता है कि आम लोगों से लेकर बहुत उच्च शिक्षित तथा उच्च पदों पर कार्यरत / सेवानिवृत्त लोग भी 'डिजिटल अरेस्ट' के झांसे में आ गए! ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब लोग साइबर ठगों के बिछाए इस जाल में न फंसते हों। हालांकि अब जागरूकता बढ़ने से लोग बच भी रहे हैं। 

सवाल है- जब 'डिजिटल अरेस्ट' जैसी कोई प्रक्रिया कानून में है ही नहीं, तो लोग इसके नाम पर क्यों ठगे जा रहे हैं? इसकी बड़ी वजह 'जानकारी का अभाव' तो है ही, लोगों के मन में व्याप्त 'डर' भी है। इसे स्वीकार करना पड़ेगा कि शरीफ लोगों के मन में पुलिस का इतना ज्यादा डर होता है कि जब उन पर कोई मुसीबत आती है (चाहे वह पुलिस के वेश में साइबर ठगों द्वारा किया गया झूठा नाटक ही क्यों न हो) तो वे 'कुछ-न-कुछ' देकर अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं। यह हकीकत है। 

पुलिस और आम जनता के संबंधों में कितना भरोसा है, यह जानने के लिए राह चलते किन्हीं 10 लोगों के साथ कोई सर्वेक्षण कर सकते हैं। ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि उन्हें पुलिस के पास जाने से डर लगता है। जब कानून के रखवालों और आम जनता के संबंधों में इतनी खाई होती है तो उसका फायदा साइबर ठग उठाते हैं।

ठगों ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ का डर दिखाकर जिन लोगों को लूटा, उन्हें पुलिस, सीबीआई, सीआईडी, ईडी, आरबीआई, उच्चतम न्यायालय आदि के नकली नोटिस भी भेजे थे। इतने सारे 'नोटिसों' की बौछार होगी तो आम आदमी पर क्या बीतेगी? उस समय उसकी स्थिति का अंदाजा लगाने की कोशिश तो करें। वह यही चाहेगा कि किसी भी तरह से जान बचाई जाए, इस 'झमेले' से निकला जाए। 

साइबर ठग जो झूठे आरोप लगाकर लोगों को डराते हैं, वे कुछ ऐसे होते हैं- 'आपके नाम से पार्सल आया था, जिसमें ड्रग्स हैं ... फर्जी पासपोर्ट निकले हैं ... आपके आधार कार्ड से फर्जी सिम लेकर अपराध किया गया है ... आपके नाम पर फर्जी बैंक खाता खुलवाकर मनी लॉन्ड्रिंग की गई है ...।' 

जब कोई व्यक्ति कानून का पालन करते हुए ज़िंदगी जी रहा है, उसने ऐसा कोई अपराध किया ही नहीं है तो उसे पुलिस, सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी से क्यों डरना चाहिए? इस सवाल पर बात करने का समय आ गया है। पुलिस और एजेंसियों का डर तो अपराधियों के मन में होना चाहिए। जब शरीफ आदमी पुलिस या एजेंसी के किसी अधिकारी को देखे तो उसके मन में निर्भयता की भावना पैदा होनी चाहिए। 

दुर्भाग्य से आज इसका उलटा हो रहा है। जब (फोन पर) साइबर ठगों की पोल खुल जाती है तो वे बहुत दुस्साहस दिखाते हुए कहते हैं कि 'जिससे शिकायत करना चाहते हैं, कर लें, कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।' वहीं, आम आदमी अपनी शिकायत दर्ज कराने से भी बहुत झिझकता है। प्राय: वह नजदीकी पुलिस थाने में जाने से पहले ऐसे व्यक्ति को साथ लेना चाहता है, जिसकी वहां कुछ जान-पहचान हो। 

बेशक ठगी के कई मामलों में पुलिस ने कार्रवाइयां की हैं, पीड़ितों को उनका हक दिलाया है। इसके साथ यह सवाल पूछना जरूरी है कि कितने पीड़ितों को उनका हक मिलना बाकी है? चूंकि जो रकम साइबर ठग किसी के बैंक खाते से उड़ाते हैं, वह कुछ समय तक रहती तो उसी तंत्र में है।

अगर बैंकों का डिजिटल सुरक्षा तंत्र मजबूत किया जाए, नए खाते से आई रकम की निकासी के नियम कुछ सख्त कर दिए जाएं और पुलिस भी फुर्ती दिखाए तो साइबर ठगी पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है। बैंकों और डिजिटल पेमेंट मंचों को ग्राहकों का भरोसा बरकरार रखने के लिए 'सुरक्षा एवं निजता' से जुड़े नियमों में कुछ जरूरी बदलाव करने होंगे।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download