ढीली हुई पाक की अकड़
अब पाकिस्तान को समझ में आया है कि पड़ोसी देशों के साथ व्यापार करना चाहिए!
सवाल है- पाकिस्तान व्यापार करना चाहेगा तो किस चीज का और किससे?
पाकिस्तान के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब का यह बयान इस मुल्क की अकड़ कुछ ढीली होने का संकेत देता है कि अपने पड़ोसी देशों के साथ व्यापार न करना 'अतार्किक' है। आखिर, पाकिस्तान के किसी मंत्री को होश तो आया! औरंगजेब आज यह बात कह रहे हैं, जबकि भारत की हर सरकार ने इस बात की कोशिशें की थीं कि दोनों देशों के संबंध मधुर हों तथा व्यापार बढ़े।
निश्चित रूप से यह दोनों तरफ की जनता के हित में होता। व्यापार बढ़ेगा तो रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा होंगे, लोगों की क्रय क्षमता बढ़ेगी, गरीबी दूर होगी और खुशहाली आएगी। भारत सरकार ने पाकिस्तान को बहुत पहले एमएफएन का दर्जा दे दिया था, लेकिन इस पड़ोसी देश का रवैया हमेशा नकारात्मक ही रहा है। इसने व्यापार बढ़ाने के बजाय आतंकवाद को बढ़ावा दिया।भारत ने इसके बावजूद बहुत धैर्य से काम लिया। उसने पाक का एमएफएन दर्जा तब हटाया, जब फरवरी 2019 में पुलवामा में बहुत बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था। उसमें स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का हाथ था, जिसके बाद भारत सरकार का कड़ा रुख होना स्वाभाविक था। पाकिस्तान ने भी 'खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे' की तर्ज पर घोषणा कर दी थी कि हम भारत से व्यापार बंद करेंगे। वास्तव में वही क्षण था, जिसके बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का पहिया धीमा पड़ने लगा।
हालांकि उससे पहले भी उसके हालात बहुत अच्छे नहीं थे, लेकिन इतने बुरे भी नहीं थे कि लोगों को आटा लेने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगानी पड़ें। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का बंटाधार होना तब से शुरू हुआ था, जिसका 'श्रेय' तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को जरूर दिया जाना चाहिए। रही-सही कसर शहबाज शरीफ ने पूरी कर दी।
अब पाकिस्तान को समझ में आया है कि पड़ोसी देशों के साथ व्यापार करना चाहिए! सवाल है- पाकिस्तान व्यापार करना चाहेगा तो किस चीज का और किससे? उसने अपनी पूरी ऊर्जा आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा दी। उसके यहां उद्योगों की हालत पहले ही खस्ता है। वहां व्यापार के अनुकूल माहौल नहीं है।
पाक में नौजवानों से लेकर बुजुर्गों तक का ख़्वाब यह है कि किसी तरह यूरोप का वीजा लग जाए। पाकिस्तान ने अपने उद्योगों को विकसित कर उस स्तर तक पहुंचाया ही नहीं कि वे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मजबूती से टिक पाते। अगर वह भारत के साथ संबंधों को मधुर रखता तो उसकी अर्थव्यवस्था बहुत बेहतर स्थिति में होती। उसे भारत से काफी सहयोग मिलता।
अब पाकिस्तान के मंत्री इस बात को लेकर अफसोस ही कर सकते हैं कि उनकी सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा नहीं दिया। व्यापार करेंगे भी किससे? अफगानिस्तान में तालिबान का राज है, जिसकी रुचि व्यापार में कम और लोगों को कोड़े लगाने में ज्यादा है। चीन के साथ पाकिस्तान एक तरह से घाटे का सौदा कर रहा है, क्योंकि उसके बाजारों में चीनी माल की खपत तो खूब हो रही है, लेकिन ऐसा कोई सामान चीन को निर्यात नहीं किया जाता, जिसकी वहां सख्त जरूरत हो।
हां, हाल में इस बात की चर्चा जरूर हुई थी कि पाकिस्तान हर साल लाखों की तादाद में गधों का निर्यात करने की योजना बना रहा है, जिनकी चीन में मांग बढ़ गई है। पुलवामा हमले से पहले पाकिस्तान में सब्जी, मसालों, दवाइयों और रोजमर्रा के सामान की कीमतें बहुत कम थीं, क्योंकि ये चीजें भारत से जाती थीं। उसके बाद व्यापार बंद होने से वहां कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गईं। पाक में हालात बिगड़ने लगे तो दवाइयों समेत कुछ सामान जरूर मंगवाया गया, लेकिन किसी अन्य देश के रास्ते! इससे परिवहन की लागत बढ़ गई।
रह गया ईरान ... तो उसकी अर्थव्यवस्था अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण पहले ही काफी दबाव में है। उसके पास तेल और गैस के भंडार जरूर हैं, जिनका समुचित लाभ उसे नहीं मिल पा रहा है। पाकिस्तान में ईरानी तेल की तस्करी खूब होती है। उससे फौजी अफसर अपनी जेबें भरते हैं। सरकारी खजाने को कोई लाभ नहीं मिलता।
अब मुहम्मद औरंगजेब हों या शहबाज शरीफ या जनरल आसिम मुनीर ... वे चाहें तो विदेशी राष्ट्राध्यक्षों की चौखटों पर हाथ फैलाएं और उनकी शर्तों पर कर्ज लेकर ज़लील हों ... या आतंकवाद फैलाना बंद करें, वांछित आतंकवादियों को भारत के हवाले करें, कश्मीर राग अलापना बंद करें और अपने मुल्क को बदहाली से बचाएं। फैसला आपका है।