भारतीय राजनीति के एक लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी
मोदी और शाह भी कभी आडवाणी के करीबी सहयोगियों में हुआ करते थे
Photo: narendramodi FB Page
बाल मुकुंद ओझा
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अटल-आडवाणी के जोड़ीदार आडवाणी को पहले जनसंघ और फिर भाजपा को सशक्त और ऊंचाइयों पर पहुँचाने का श्रेय दिया जाता है| भले ही जीवन के वानप्रस्थ में पहुंचे आडवाणी आज भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में है मगर देशभर में उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है| आडवाणी की कभी पूरे देश में तूती बोला करती थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता था| आडवाणी के प्रशंसक उनकी तुलना सरदार पटेल से करते हैं| इस दौरान देशभर में अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता और लालकृष्ण आडवाणी की कुशल संगठनकर्ता के रूप में पहचान कायम हुई| १९९० में रामरथ यात्रा के जरिये भाजपा की विचारधारा और संगठन को विस्तारित करने की नीति जन-जन तक पहुंचाने में आडवाणी की अहम् भूमिका रही थी|
१९७० में वह राज्यसभा के सदस्य बने और १९८९ तक इस पद पर बने रहे| १९७३ में उन्हे भारतीय जनसंघ को अध्यक्ष चुना गया और १९७७ तक उन्होंने पार्टी का संचालन किया| जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मोरारजी देसाई की गठबंधन सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बने| वर्ष १९८४ के आम चुनाव ऐसे वक्त में हुए जब कांग्रेस इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा सहानुभूति की लहर पर सवार थी| इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को महज दो सीटें मिली थीं| ये आडवाणी ही थे जिन्होंने अपनी अद्भुत सांगठनिक योग्यता के बल पर भाजपा को सत्ता के नज़दीक पहुंचा दिया| १९८० में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से ही आडवाणी वह शख्स हैं जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष पद पर बने रहे हैं| आडवाणी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपना पूरा समय दिया और इसका परिणाम तब सामने आया, जब १९८४ में महज २ सीटें हासिल करने वाली पार्टी को लोकसभा चुनावों में ८६ सीटें मिली जो उस समय के लिहाज से काफी बेहतर प्रदर्शन था| १९८६ में लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के नए अध्यक्ष बन गए| बीजेपी की कमान लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में थी| बीजेपी को हिंदुत्व के रास्ते पर ले जाने वाले आडवाणी ही थे| आडवाणी ने आक्रामक हिंदुत्व नीति अपनाकर बीजेपी को नयी दिशा दी और बीजेपी धीरे-धीरे लोगों के बीच जगह बनाने में कामयाब हुई| पार्टी १९९२ में १२१ सीटों और १९९६ में १६१ पर पहुंच गई| राम मंदिर आंदोलन से अपने राजनीतिक करियर शुरू करने वाले आडवाणी को १९९८ में पहली बार भाजपा को सत्ता का स्वाद चखाने का श्रेय दिया जाता है|
आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और बीजेपी सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी थी| आडवाणी तीन बार बीजेपी के अध्यक्ष रहे, पहली बार १९८६ से १९९१ तक तो दूसरी बार साल १९९३ में आडवाणी एक बार फिर बीजेपी के अध्यक्ष बने और १९९८ तक इस पद पर रहे| जिन्ना प्रकरण के चलते उन्हें २००६ में पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा| भाजपा के कर्णधार कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा बताया गया|
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी कभी आडवाणी के करीबी सहयोगियों में हुआ करते थे| साल २००९ में बीजेपी आडवाणी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ी, लेकिन सत्ता में नहीं आ सकी| ऐसे में २०१३ में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे कर दिया, तो आडवाणी एक बारगी नाराज हुए लेकिन जब प्रचंड बहुमत से भाजपा सत्ता में आईं तो आडवाणी ने नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में कोई कसर नहीं छोड़ी|