ठगों के मंसूबे नाकाम करें

आखिर, ये ठग नए-नए हथकंडे कैसे आजमाते हैं?

ठगों के मंसूबे नाकाम करें

पाकिस्तान, कंबोडिया, नाइजीरिया जैसे देशों में बैठे साइबर ठग भी भारतवासियों को खूब लूट रहे हैं

केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा दी गई जानकारी कि 'सरकार ने धोखाधड़ी वाली कॉल रोकने के लिए जो तकनीकी प्रणाली तैनात की है, उससे रोजाना ऐसी 1.35 करोड़ कॉल रोकी जा रही हैं', से पता चलता है कि साइबर लुटेरे भारतवासियों की मेहनत की कमाई पर डाका डालने के लिए बहुत बड़े स्तर पर कोशिशें कर रहे हैं। 

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1.35 करोड़ कॉल काफी बड़ा आंकड़ा है। जब यह प्रणाली अस्तित्व में नहीं आई थी, तब इतने लोग तो साइबर अपराधियों के सीधे निशाने पर थे। इस प्रणाली ने अब तक लोगों की 2,500 करोड़ रुपए की संपत्ति बचाने में मदद कर ठगों के मंसूबों को नाकाम किया है। इन्हें पूरी तरह नाकाम करने की जरूरत है।

हालांकि इससे यह नहीं समझना चाहिए कि साइबर ठग भविष्य में लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाने की कोशिशें नहीं करेंगे। वे इस प्रणाली का तोड़ ढूंढ़ने के लिए पूरा जोर लगाएंगे, इसलिए भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इसे उन्नत करने पर खास जोर देना होगा। 

पिछले डेढ़ दशक में साइबर ठगी के तौर-तरीकों पर नजर डालें तो उसका सीधा-सा निष्कर्ष यह निकलता है कि पहले साइबर ठग कोई चुनौती खड़ी करते हैं ... उससे लोगों को भारी नुकसान होता है ... मीडिया ऐसे मामलों को प्रमुखता से उठाता है ... तब सरकार कोई कदम उठाती है। ऐसी चुनौतियों, जोखिमों का आकलन पहले करना होगा। साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसना है तो उनसे दो कदम आगे रहना होगा। 

इन दिनों साइबर अपराधी 'डिजिटल अरेस्ट' के नाम पर लोगों को खूब लूट रहे हैं। इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मन की बात' कार्यक्रम में भी जागरूकता का संदेश दे चुके हैं। इसके बावजूद लोग साइबर ठगों के जाल में फंस रहे हैं! हालांकि जिन लोगों को इस बात की जानकारी मिल चुकी है, वे ठगों के झांसे में नहीं आ रहे हैं।

अगले छह महीनों में जब काफी तादाद में लोगों को इसके बारे में पता चल जाएगा तो साइबर ठग कोई दूसरा दांव चलेंगे। याद करें, एक दशक पहले लोगों को लॉटरी लगने, भाग्यशाली नंबर चुने जाने के फोन खूब आते थे। उस दौरान भी बहुत लोगों ने रकम गंवाई थी। उसके बाद डेबिट / क्रेडिट कार्ड या बैंक खाता बंद होने का डर दिखाकर गोपनीय जानकारी लेने संबंधी मामले आने लगे थे। अब पार्सल में अवैध चीजों या किसी करीबी के मुश्किल में फंसने के नाम पर साइबर ठगी के मामलों की बाढ़-सी आई हुई है। 

आखिर, ये ठग नए-नए हथकंडे कैसे आजमाते हैं? इन्हें ये कौन सिखाता है? पूर्व में साइबर ठगी में शामिल ऐसे कई अपराधी खुलासा कर चुके हैं कि उनका गिरोह देश-दुनिया की घटनाओं पर गहरी नजर रखता है। जब एक तरीका पुराना हो जाता है तो नया तरीका ढूंढ़ा जाता है। गिरोह में शामिल ठगों को उसकी स्क्रिप्ट रटाई जाती है। आम तौर पर ठगी को अंजाम देने के लिए या तो लोगों को लालच दिया जाता है या डराया जाता है। कई ठग तो हंसते हुए कहते हैं कि जब तक दुनिया में लोग 'लालच' करेंगे या 'डरेंगे', हमारी रोजी-रोटी चलती रहेगी! 

अब तो पाकिस्तान, कंबोडिया, नाइजीरिया जैसे देशों में बैठे साइबर ठग भी भारतवासियों को खूब लूट रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह बयान इस तथ्य की पुष्टि करता है कि 'ज्यादातर फर्जी कॉल देश के बाहर के सर्वर से आती हैं।' हालांकि नई तकनीकी प्रणाली ऐसी ज्यादातर कॉल को रोकने में सक्षम है। 

जब साइबर ठगों की दाल यहां गलनी बंद हो जाएगी तो वे वॉट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए ऑडियो / वीडियो कॉल ज्यादा करने लगेंगे। इन कंपनियों को भी चाहिए कि ये साइबर ठगी में लिप्त नंबरों को ब्लॉक करने में तेजी दिखाएं। वहीं, ठगी की रकम जिन बैंक खातों में जमा हो, उनकी जल्द पहचान कर निकासी पर पाबंदी लगाने की प्रणाली को मजबूत किया जाए।

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