बांग्लादेश: कैसे होगी शांति स्थापित?
भारत और भारतवासियों की ताकत का एहसास बांग्लादेश को कराना जरूरी है
भारतवासियों ने आर्थिक बहिष्कार कर दिया तो बांग्लादेश छह महीने भी नहीं चल पाएगा
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, भारतीय ध्वज के अपमान और भारतविरोधी भावनाओं में बढ़ोतरी के मद्देनज़र अब बहुत जरूरी हो गया है कि वहां 'शांति स्थापित' करने के लिए कुछ सख्त कदम उठाए जाएं। उसकी अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे मोहम्मद यूनुस तो कागजी शेर ही साबित हुए। अगर वे शांति लाने के इच्छुक होते तो उनकी कोशिशों का अब तक कुछ असर जरूर नजर आता। वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार की घटनाओं के बाद भारत सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। सरकार की ओर से ऐसे बयान आए हैं, जिनमें पड़ोसी देश के हालात पर गहरी चिंता जताई गई है। यूनुस इन बयानों की गंभीरता भलीभांति जानते हैं, लेकिन उन्हें कोई परवाह नहीं है। बांग्लादेश में 'हिंदूविरोध' के साथ ही 'भारतविरोध' जोरों पर है। वहां कट्टरपंथियों में होड़ मची है कि किसी तरह भारत के खिलाफ बयान देकर 'क्रांतिकारी' होने का तमगा हासिल किया जाए! इन हरकतों को भारत सरकार देख रही है और भारतवासी भी देख रहे हैं। दरअसल बांग्लादेशी अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर रहे हैं। क्या वे नहीं जानते कि उनके देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर करती है? अगर भारत मुंह फेर लेगा तो बांग्लादेश की वही दुर्गति होगी, जो पाकिस्तान की हो चुकी है। यह न भूलें कि कुछ महीने पहले तक मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू भी बड़े तीखे तेवर दिखा रहे थे। उसके बाद जैसे ही भारतवासियों ने 'बहिष्कार' की घोषणा की, मुइज्जू को आटे-दाल का भाव मालूम हो गया। अब उनके मिजाज में बदलाव आ चुका है। उनके शब्दों से भारत के प्रति आत्मीयता टपकने लगी है। हालांकि सब जानते हैं कि मुइज्जू अंदर से अब भी घोर भारतविरोधी हैं। उन्होंने भारत के खिलाफ बयानबाजी इसलिए बंद कर दी, क्योंकि वे समझ गए कि दिल्ली के सहयोग के बिना उनका काम नहीं चलने वाला।
भारत और भारतवासियों की ताकत का एहसास बांग्लादेश को कराना जरूरी है। हमें इस बात का और इंतजार नहीं करना चाहिए कि ढाका में यूनुस और उनकी मंडली का हृदय-परिवर्तन हो जाएगा। इस सिलसिले में 'ऑल त्रिपुरा होटल एंड रेस्टोरेंट ओनर्स एसोसिएशन' (एटीएचआरओए) द्वारा बांग्लादेशी पर्यटकों को अपनी सेवाएं उपलब्ध नहीं कराने का निर्णय लिया जाना स्वाभाविक है। भारत में कुछ डॉक्टरों की इस बात को लेकर आलोचना हो रही है कि उन्होंने बांग्लादेशियों का इलाज करने से इन्कार कर दिया। यहां डॉक्टरों की भावनाओं को समझना जरूरी है। कोई व्यक्ति ढाका में मंदिरों का अपमान करे, हिंदुओं का उत्पीड़न करे, तिरंगे की मर्यादा से खिलवाड़ करे और भारतविरोधी विचारों को बढ़ावा दे, लेकिन इसके साथ यह उम्मीद भी रखे कि जब वह कोलकाता आए तो यहां भारतीय उसका स्वागत फूल मालाओं से करना अपना कर्तव्य समझें! यह नहीं हो सकता। भारतीय डॉक्टरों ने अनगिनत बांग्लादेशी मरीजों का इलाज किया है। वे भविष्य में भी इसके लिए तैयार हैं। बस, बांग्लादेशियों को 'मनुष्य' की तरह व्यवहार करना होगा। उन्होंने अपने देश की सड़कों पर जो हुड़दंग मचा रखा है, उसके लिए यह न समझें कि भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी। बेशक हम शांतिप्रिय लोग हैं। हम सभी बांग्लादेशियों के लिए अच्छी भावनाएं रखते हैं। हम चाहते हैं कि बांग्लादेश में खुशहाली आए, विकास हो। इसके साथ हम यह भी चाहते हैं कि बांग्लादेश के लोग भारतवासियों के लिए अच्छी भावनाएं रखें। अगर बांग्लादेशी यह सोचते हैं कि वे भारतविरोधी भावनाओं को बढ़ावा देते रहेंगे और दिल्ली से उनकी तरफ 'मिठाइयां' आती रहेंगी, तो अब ऐसा संभव नहीं है। जिस दिन भारत ने बिजली कटौती कर दी, जरूरी चीजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया या कीमतें बढ़ा दीं, परस्पर सहयोग बंद कर दिया, भारतवासियों ने आर्थिक बहिष्कार कर दिया तो बांग्लादेश छह महीने भी नहीं चल पाएगा। उस सूरत में यूनुस को हुड़दंगियों के खिलाफ मजबूरन बलप्रयोग करना होगा। सख्त कार्रवाई हो तो पूरा बांग्लादेश एक हफ्ते में 'सही लाइन' पर आ सकता है।