लोकसभा चुनाव: राजस्थान की राजनीति पर असर डालेंगे इन 5 सीटों के परिणाम
लोकसभा चुनाव: राजस्थान की राजनीति पर असर डालेंगे इन 5 सीटों के परिणाम
जयपुर/भाषा। राजस्थान की जोधपुर, झालावाड़, बाड़मेर, बीकानेर और अलवर लोकसभा सीटों पर राजनीतिक विश्लेषकों की गहरी नजर है, जिनका मानना है कि इनके परिणाम आने वाले समय में राज्य की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें से दो सीटों पर पिछले करीब 15 साल से भाजपा का कब्जा है। राजस्थान में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं जिन पर दो चरणों में 29 अप्रैल और छह मई को मतदान होगा।
इस लोकसभा चुनाव में राज्य की सबसे चर्चित सीट जोधपुर है। जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह नगर है। वह इस सीट से पांच बार सांसद रहे हैं। कांग्रेस ने इस बार यहां से गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को प्रत्याशी बनाया है। वैभव का यह पहला चुनाव है। उनके सामने भाजपा के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत हैं। शेखावत ने 2014 में यह सीट कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी को 4,10,051 मतों से हराकर जीती थी।राज्य की झालावाड़-बारां सीट भाजपा का गढ़ है। भाजपा ने 1989 से यहां एक तरह से कब्जा कर रखा है। 1989 में वसुंधरा राजे ने कांग्रेस के शिवनारायण को हराकर अपने विजय रथ की शुरुआत की। वह 2004 तक सांसद रहीं। उसके बाद उनके बेटे दुष्यंत सिंह सांसद बने। वह इस सीट से चौथी बार भाजपा के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने उनके सामने भाजपा से ही आए प्रमोद शर्मा को उतारा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत ने कांग्रेस के प्रमोद भाया को 2,81,456 मतों से हराया था।
भारत-पाकिस्तान की अंतराष्ट्रीय सीमा से लगती बाड़मेर जैसलमेर सीट से कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह जसोल के सामने भाजपा के कैलाश चौधरी हैं। भाजपा के दिग्गज नेता रहे जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हुए। वह सांसद और विधायक रहे हैं। कैलाश चौधरी बायतू से विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस के सामने इस सीट पर जातीय समीकरण साधने की चुनौती है।
बाड़मेर से कांग्रेस के विधायक मेवाराम जैन कहते हैं, ‘जात-पांत से फर्क नहीं पड़ने वाला है। बाड़मेर सीट पर माहौल कांग्रेस के पक्ष में है।’ बाड़मेर सीट पर 2014 का चुनाव कर्नल सोनाराम ने जीता। उन्होंने निर्दलीय जसवंत सिंह को 87,461 मतों से हराया।
यादव और मुस्लिम बहुल अलवर सीट से भाजपा ने महंत बालक नाथ को टिकट दिया है। बालक नाथ रोहतक के मस्तनाथ मठ के महंत हैं। उनकी एक पहचान अलवर के पूर्व सांसद और महंत चांदनाथ के शिष्य की भी है। चांदनाथ के निधन के बाद से ही माना जा रहा था कि भाजपा कभी न कभी बालकनाथ को इस सीट से उतारेगी। यहां उनके सामने कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह हैं।
भाजपा ने 2014 में यह सीट भारी मतांतर से जीती जब बाबा चांदनाथ ने कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह को 2,83,895 मतों से हराया था। लेकिन उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के पास चली गई। विधानसभा चुनाव में भाजपा का इस जिले की सीटों पर प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। भाजपा के जिलाध्यक्ष संजय सिंह नरूका कहते हैं, ‘अब हालात अलग हैं। अब सबसे बड़ा फैक्टर मोदी का है, देश के स्वाभिमान का है… सवाल मोदी को दुबारा चुनने का है।’
बीकानेर सीट पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ‘हैट्रिक’ लगाने उतरे हैं। उनके सामने कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस मदन गोपाल मेघवाल को उतारा है जो रिश्ते में अर्जुनराम के मौसेरे भाई हैं। मोदी सरकार में मेघवाल का कद लगातार मजबूत हुआ है, लेकिन बीकानेर सीट पर उनके लिए हालात पहले जितने सुगम नहीं हैं। देवी सिंह भाटी का खुला विरोध है। वरिष्ठ पत्रकार श्याम मारू के अनुसार, ‘अर्जुन राम बड़े नेता हैं इसलिए उन्हें हराना नामुमकिन भले ही नहीं हो, पर मुश्किल जरूर है।’
उल्लेखनीय है कि 2004 में बीकानेर सीट से भाजपा के टिकट पर अभिनेता धर्मेंद्र चुनाव जीते थे। 2009 और 2014 में यहां से अर्जुनराम जीते। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार शंकर पन्नू को 3,08,079 मतों से हराया। राज्य के राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि इन पांच सीटों के परिणाम आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति को प्रभावित करेंगे।