एक वक्त खाना खाकर गरीबी से किया संघर्ष, 21 साल की उम्र में आईएएस बना रिक्शा चालक का बेटा
एक वक्त खाना खाकर गरीबी से किया संघर्ष, 21 साल की उम्र में आईएएस बना रिक्शा चालक का बेटा
मुंबई/दक्षिण भारत। गरीबी, संघर्ष और मुश्किल हालात … ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनकी वजह से दुनिया में हर रोज कई उम्मीदें दम तोड़ देती हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इनसे लड़कर और मजबूती से खड़े होने और जीतने की ताकत हासिल करते हैं। अंसार शेख भी ऐसे ही एक शख्स हैं जो विपरीत परिस्थितियों में पले, बढ़े और जीते।
अंसार शेख सिर्फ 21 साल की उम्र में आईएएस बने थे। इस उपलब्धि के साथ ही उनका नाम सबसे कम उम्र में आईएएस बने नौजवानों में शुमार हो गया। साल 2016 में अंसार शेख ने पहले ही प्रयास में ही यूपीएससी सिविल सर्विस परीक्षा पास कर ली थी। उन्होंने 361वीं रैंक हासिल की थी। आज भी सोशल मीडिया पर उनके संघर्ष और कामयाबी के किस्से खूब पढ़े जाते हैं।महाराष्ट्र के जालना जिले के शेलगांव से ताल्लुक रखने वाले अंसार शेख का बचपन काफी मुश्किल हालात में बीता। पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे और उनकी कमाई इतनी नहीं होती थी कि परिवार का गुजारा आसानी से चल सके। पिता को शराब पीने की आदत होने से घर की आर्थिक स्थिति खराब थी। इसलिए मां खेतों में मजदूरी करने लगीं। एक वक्त ऐसा भी था जब परिवार को दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पाती थी। ऐसे में एक वक्त के खाने से ही संतोष करना पड़ता था।
गांव में शिक्षा का स्तर बेहतर नहीं था, इसलिए कई लोग नशा कर आपस में झगड़ते रहते थे। शराब के कारण घर में भी कई बार अशांति का माहौल हो जाता। अंसार की बहनों की कम उम्र में ही शादी कर दी गई। भाई ने छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ी और चाचा के गैराज में काम करने लगा। वहीं अंसार शेख की पढ़ाई में रुचि बनी रही।
शिक्षक की सलाह से संवर गई ज़िंदगी
एक दिन किसी रिश्तेदार ने उनके पिता को सलाह दी कि वे अपने बेटे को स्कूल से निकालें और काम पर लगाएं। पिता पर उसकी सलाह का कुछ असर हुआ, लेकिन जब वे शिक्षक के पास गए तो उन्होंने ऐसा न करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि बेटे की शिक्षा पर पैसा खर्च करें। पिता ने यह बात मान ली। 12वीं की परीक्षा में अंसार शेख ने 91 प्रतिशत अंक हासिल किए।
उसके बाद उन्होंने पुणे के फर्गुसन कॉलेज में दाखिला लिया। मराठी माध्यम से पढ़ाई, कम संसाधन और ग्रामीण माहौल में परवरिश होने के कारण अंसार शेख को शुरुआत में काफी दिक्कतें आईं। उस दौरान उनका भाई उन्हें हर माह अपने वेतन के छह हजार रुपए भेजा करता था।
अंसार शेख ने कॉलेज की पढ़ाई के समय ही यूपीएससी परीक्षा के बारे में सुना। उनकी काबिलियत के बारे में जानकर एक कोचिंग संचालक ने आधी फीस कम करने का प्रस्ताव रखा। प्रारंभिक परीक्षा के बाद जब मुख्य परीक्षा का समय आया तो उस दौरान उनके बहनोई की मौत हो गई, लेकिन उनकी बहन ने उन्हें हिम्मत बंधाई कि परीक्षा की तैयारी करो।
..मैं भारतीय मुस्लिम
अंसार शेख मुख्य परीक्षा पास कर जब साक्षात्कार में पहुंचे तो उनसे कई सवाल पूछे गए्। उनमें से एक सवाल यह भी था कि वे शिया हैं या सुन्नी। इस पर उन्होंने कहा कि मैं भारतीय मुस्लिम हूं। इसके बाद जब नतीजा आया तो उनका नाम सफल उम्मीदवारों में से था। अंसार शेख की यह कहानी सिर्फ उनकी लगन, हिम्मत और मेहनत के बारे में ही नहीं बताती, बल्कि समाज को यह संदेश देती है कि किसी प्रतिभाशाली बच्चे को पुस्तक तक पहुंचाना हमारी भी जिम्मेदारी है।
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