आतंकवाद पर भारत की दो टूक

जयशंकर ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है

आतंकवाद पर भारत की दो टूक

Photo: drsjaishankar FB Page

सुनिधि मिश्रा
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हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की इस्लामाबाद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भागीदारी ने एक बार फिर आतंकवाद के मुद्दे को वैश्विक मंच पर प्रमुखता से उठाया है| यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि इसने क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए आतंकवाद के खतरे पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर भी प्रदान किया| भारत लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी रहा है| हमारा देश दशकों से सीमा पार आतंकवाद का सामना कर रहा है, जिसने हजारों निर्दोष नागरिकों की जान ली है और अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है| इस पृष्ठभूमि में जयशंकर की यात्रा का महत्व और भी बढ़ जाता है| सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपने दृढ़ रुख को दोहराया है|

जयशंकर ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है, चाहे वह किसी भी कारण से हो| उन्होंने जोर देकर कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मानदंड नहीं हो सकते और सभी देशों को इस खतरे से निपटने के लिए एकजुट होना चाहिए| हालांकि यह ध्यान देने योग्य है कि पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध जटिल रहे हैं, विशेष रूप से आतंकवाद के मुद्दे पर| भारत ने बार-बार पाकिस्तान से अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आग्रह किया है| इस संदर्भ में जयशंकर की यात्रा एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है, जो दोनों देशों के बीच संवाद की आवश्यकता को रेखांकित करता है|

वर्तमान समय में आतंकवाद एक जटिल और बहुआयामी चुनौती बन गया है| तकनीकी प्रगति के साथ आतंकवादी समूह अब साइबर हमलों, सोशल मीडिया का दुरुपयोग और क्रिप्टो करेंसी जैसे नए माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं| देश में पिछले कुछ दशकों से लगातार आतंकी घटनाएं हो रही हैं, जो दिखाती हैं कि किस प्रकार भारत आतंक के चपेट में आ गया है| इन आतंकी घटनाओं का क्रम यही नहीं रुका| मुंबई आतंकी हमले (२६/११, २००८) ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था| यह देश के इतिहास का सबसे भयावह आतंकी हमला था, जिसमें १० आतंकवादियों ने मुंबई के कई स्थानों पर हमला किया, जिसमें १६६ लोग मारे गए और ३०० से अधिक घायल हुए| वहीं १४ फरवरी, २०१९ को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें ४० जवान शहीद हो गए| ५ मई, २०२३ को राजौरी जिले में आतंकवादियों ने सेना के वाहन पर घात लगाकर हमला किया| इस हमले में पांच जवान शहीद हो गए और एक अन्य घायल हो गया|

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद भारत के लिए दशकों से एक गंभीर चुनौती रहा है| इस क्षेत्र में आतंकवाद के इतिहास और वर्तमान स्थिति को समझने के लिए अनुच्छेद ३७० के निरस्त होने के प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है| अनुच्छेद ३७० भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान था, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था| यह १९४९ में लागू किया गया था और राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता था, जिसके तहत केंद्र सरकार की शक्तियां रक्षा, विदेश मामलों और संचार तक सीमित थीं| ५ अगस्त, २०१९ को भारत सरकार ने अनुच्छेद ३७० को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया| इस कदम का उद्देश्य क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना और आतंकवाद से निपटना था|
ये सभी घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या आज भी हम कहीं ना कहीं सुरक्षा व्यवस्था में चूक कर रहे हैं? इन सारी घटनाओं के मद्देनजर आज जब भारत इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाता है, तो कुछ पड़ोसी देश अपनी आदत से बाज नहीं आते हैं और वे भारत के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करते हैं| इसी संदर्भ में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन को भी एक स्पष्ट संदेश दिया है| उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान किया जाना चाहिए| यह संदेश सीमा विवाद और लद्दाख में चल रहे तनाव के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण था| 

उन्होंने जोर देकर कहा कि एससीओ के सदस्य देशों को एक-दूसरे की चिंताओं का सम्मान करना चाहिए और विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना चाहिए| कुल मिलाकर पाकिस्तान को अब यह समझना होगा कि आतंकवाद को बढ़ावा देने से न केवल पड़ोसी देशों को खतरा है, बल्कि यह उसके अपने विकास में भी बाधक है| इस मामले में भारत का रुख स्पष्ट है| वह अपने क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहता है| वर्तमान में भारत आतंकवाद से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपना रहा है, जिसमें सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण और प्रशिक्षण, सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक, साइबर सुरक्षा में सुधार, समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने जैसे कदम शामिल हैं| हालांकि चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दृढ़ संकल्पित है| यह स्पष्ट है कि आतंकवाद से निपटने के लिए न केवल सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पहलों की भी जरूरत है, जो आतंकवाद की जड़ों का खात्मा करें|

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