कांग्रेस और पायलट दोनों ही डगमग

कांग्रेस और पायलट दोनों ही डगमग

कांग्रेस और पायलट दोनों ही डगमग

सचिन पायलट एवं सीएम अशोक गहलोत

श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में से एक राहुल गांधी ने कांग्रेस के युवा संगठन एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं को बुधवार को संबोधित करते हुए अपने उद्बोधन में सचिन पायलट का नाम लिए बिना कहा कि जिन्हें पार्टी छोड़कर जाना है, वे जाएंगे। ऐसे पुराने लोगों के जाने से ही आप जैसे युवाओं को आगे बढने का अवसर मिलेगा। कल तक यह कहा जा रहा था कि स्वयं राहुल गांधी सचिन पायलट से बात कर सकते हैं और उन्हें पार्टी में बने रहने के लिए कहेंगे। इसके पहले सुबह कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को सचिन के लिए अपशब्द कहने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं हुई थी क्योंकि उन्हें यह लगा था कि अब सचिन पायलट भाजपा में शामिल होंगे। उन्होंने बड़े नाराजगी भरे लहजे में सचिन पर हमला किया था।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बिना नाम लिए सचिन पर सीधा हमला करते हुए उन्हें गद्दार तक कह दिया था। अपने कथित प्रयासों के बावजूद जब वे सचिन पायलट को पार्टी में लौट आने को राजी नहीं कर सके तो उनका गुस्सा फूट पड़ा और उन पर एक के बाद एक कार्रवाई करते दिखाई दिए। लेकिन जब बुधवार सुबह पुनः पायलट ने यह कहा कि वे भाजपा में शामिल नहीं होंगे क्योंकि उन्होंने राजस्थान में पार्टी को पुनः सत्ता दिलाने और मजबूत करने में बहुत मेहनत की है। इस बयान के बाद फिर से सुरजेवाला प्रकट हुए और सचिन को समझाने बुझाने की मुद्रा में दिखाई दिए। पार्टी से उनके पुराने रिश्ते और गांधी परिवार से जुड़ाव की दुहाई देते दिखे।

इस प्रकार कांग्रेस अपने निर्णय पर बार बार डगमग डगमग होती दिखाई दी। कभी वह सचिन को दुत्कारने के मूड में तो कभी फिर से दुलारने के प्रयास में दिखाई दी। शीर्ष नेतृत्व भी शायद सचिन के मामले में ठीक से निर्णय नहीं ले पा रहा है। पायलट के पार्टी में बने रहने और छोड़कर जाने के हानि लाभ का आकलन करने में या तो वह सक्षम नहीं दिखाई दे रहा, या फिर भावी संभावनाओं से घबराकर ठोस कदम नहीं उठा रहा। कांग्रेस दो कदम कठोर उठाती है और अगले ही क्षण एक कदम नर्मी का उठा लेती है।

उधर यही हाल सचिन पायलट का है। उन्होंने पार्टी से बगावत तो कर ली परंतु अब उन्हें लगता है कि उनके पीछे जितना समर्थन आ खड़ा होने की उम्मीद थी, उन उम्मीदों को झटका लगा है। उनके साथ संभवतः 10-15 विधायक ही हैं। उनके साथ 30 से कम विधायक होने की स्थिति में भाजपा में भी कोई खास महत्व मिलने वाला नहीं है क्योंकि संख्याबल पर्याप्त न होने पर गहलोत सरकार को खुली चुनौती नहीं दी जा सकती और यदि गहलोत सरकार न गिरे तो पायलट और भाजपा दोनों को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। जब सचिन को लगा कि भाजपा बाहें फैलाकर उनका स्वागत करने के मूड में नहीं है तो उन्होंने कह दिया कि वे न तो भाजपा में मिलने वाले हैं और न ही अपनी कोई पार्टी बनाएंगे। समर्थकों के हवाले से सचिन के इस बयान ने फिर से कांग्रेस में आशा की किरण जगा दी और लोगों को विश्मय में डाल दिया कि फिर सचिन पायलट चाहते क्या हैं? वे किसी एक निर्णय पर पहुंच क्यों नहीं पा रहे? उनके फैसले में हिचकिचाहट है।

यदि उन्होंने केवल बारगेनिंग के लिए ही इतना ड्रामा किया था तो क्या यह उनकी बड़ी गलती नहीं है? अगर वे केवल बारगेनिंग कर रहे थे तो क्या इस चक्कर में ज्यादा दूर तक नहीं निकल गए, जहां से वापस लौटने में तो कुछ हाथ लगना ही नहीं है? वे अगर पार्टी नहीं छोड़ते हैं तो यह माना जाएगा कि उन्होंने गहलोत के समक्ष घुटने टेक दिए। इस स्थिति में गहलोत के अधीन उनकी स्थिति पहले से बदतर होनी है। उधर भाजपा भी सचिन को मुख्यमंत्री तो किसी भी हालत में नहीं बनाएगी। यह वही भाजपा है जिसने महाराष्ट्र में अपने पच्चीस वर्ष पुराने सहयोगी की जिद्द को मानने से इनकार कर दिया था, भले ही उसके हाथ से सत्ता चली गई। मुख्यमंत्री से कम पर तो सचिन भी क्यों मानेंगे, क्योंकि उपमुख्यमंत्री तो वे थे ही। इसका मतलब यह है कि सचिन के कदम उठाने से पूर्व किया गया आकलन कहीं गड़बड़ रहा होगा। अब वे झंझट में फंस गए हैं। उनकी और ज्योतिरादित्य की परिस्थितियों में बहुत असमानता है।

राजस्थान में जो कुछ हुआ है उसमें भाजपा को भले ही कुछ हाथ नहीं लगा, परंतु कोई नुकसान भी नहीं हुआ है। कांग्रेस कितना भी भाजपा को कोसे या आरोप लगाए कि यह सब बखेड़ा भाजपा ने गहलोत सरकार को अस्थिर करने के लिए किया है परंतु प्रदेश और देश की जनता समझ रही है और भाजपा भी यह समझाने में सफल रही है कि गहलोत के सिंहासन को हिलाने में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है। महाराष्ट्र में एनसीपी से धोखा खाने से होंठ जला चुकी भाजपा राजस्थान में छाछ फूंक फूंक कर पी रही है। इसलिए कांग्रेस में जो हलचल हुई उसके प्रति प्रदेश भाजपा ने अति आतुरता नहीं दिखाई। प्रदेश भाजपाध्यक्ष सतीश पूनिया का हर एक बयान समझदारी भरा था। राजस्थान में जो कुछ घटनाक्रम हुआ उसमें कांग्रेस को हर हाल में नुकसान हुआ है। वह कमजोर तो हुई ही है। हो सकता है कि वर्तमान में जैसे तैसे कांग्रेस अपनी सरकार एक बार बचा ले परंतु बगावत की जो चिनगारी सुलग उठी है वह आज नहीं तो कल आग का रूप धारण करेगी और कांग्रेस सरकार को जाना होगा। इसका कारण यह भी है कि कांग्रेस ने सरकार जोड़ तोड़ कर ही बनाई थी, पूर्ण बहुमत उसके पास भी नहीं था।

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