सिद्दरामैया ने शुरू की चुनावी प्रचार यात्रा
सिद्दरामैया ने शुरू की चुनावी प्रचार यात्रा
बसवकल्याण। पिछले चार वर्षों के दौरान पूरे राज्य में लागू की गई जनहितैषी योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा करने और उनके बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए यहां की कांग्रेस सरकार ने एक महीने तक चलने वाली संभ्रमा यात्रा की शुरुआत बुधवार से की है। मुख्यमंत्री ने आज बसवकल्याण से इस यात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा राज्य के सभी ३० जिलों से गुजरेगी और १३ जनवरी, २०१८ को संपन्न होगी। माना जा रहा है कि दरअसल यह यात्रा अगले वर्ष होनेवाले राज्य विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत है। बहरहाल, कांग्रेस ने एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा है कि इस यात्रा से प्रदेश कांग्रेस संगठन का कोई लेना-देना नहीं है। यह पूरी तरह राज्य सरकार की तरफ से अपनी योजनाओं की समीक्षा के लिए निकाली जाने वाली यात्रा है। सरकार राज्य के हरेक स्थान पर पहुंचकर देखना चाहती है कि उसकी कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित किया जा रहा है या नहीं। अगर हां तो इनका फायदा लक्ष्य वर्ग के हितग्राहियों तक पूरी तरह पहुंच रहा है या नहीं। इसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष या अन्य कोई भी संगठन पदाधिकारी शामिल नहीं है। सिर्फ जिला प्रभारी मंत्रियों और स्थानीय विधायकों को इस यात्रा में शामिल होने के लिए कहा गया है। इस दौरान सरकार के स्तर पर समीक्षा बैठकों का आयोजन किया जाएगा और इनमें जिला प्रभारी मंत्री, स्थानीय विधायक और अधिकारियों को शामिल किया जाएगा।जानकारी के मुताबिक, मुख्यमंत्री सिद्दरामैया संभ्रमा यात्रा के दौरान कई विकास परियोजनाओं की घोषणा करेंगे और कई स्थानों पर विभिन् परियोजनाओं का काम शुरू करने के लिए उनका शिलान्यास और भूमि पूजन भी करेंगे। उधर, लोकसभा सदस्य और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येड्डीयुरप्पा ने इस यात्रा का क़डा विरोध किया है। उन्होंने इसे एक गैर जरूरी यात्रा बताई और कहा कि राज्य सरकार इस यात्रा के नाम पर आम जनता के पैसे फूंक रही है। राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए येड्डीयुरप्पा ने कहा कि इस सरकार के पास उपलब्धि के नाम पर कहने के लिए कुछ भी नहीं है। वर्ष २०१३ में सिद्दरामैया की अगुवाई में राज्य की सत्ता में आई कांग्रेस सरकार पिछले चुनाव में जनता से किया गया एक भी वादा नहीं निभा सकी है। यहां तक कि मुख्यमंत्री ने ५० हजार रुपए तक के कृषि ऋण माफ करने का जो दावा किया था, वह भी कागजों से बाहर नहीं निकल सका। किसानों को न तो पिछले ऋण से निजात मिली है और न ही खेती का काम करने के लिए सहकारी संस्थानों से कोई नया ऋण मिला है।