बाघों की आबादी का दसवां हिस्सा राज्य के वन क्षेत्रों में

बाघों की आबादी का दसवां हिस्सा राज्य के वन क्षेत्रों में

चेन्नई/दक्षिण भारतरविवार को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर राज्य, अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक (टाइगर परियोजना) ए वेंकटेश ने पत्रकारों से बाचतीत में कहा राज्य में स्थित बाघ अभ्यारण्यों में बाघ दिवस के उपलक्ष में बाघों के संरक्षण के बारे में जागरुक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश में बाघों की कुल आबादी का दसवां हिस्सा राज्य के जंगलों में है। उन्होंने कहा कि बाघों की संख्या के मामलों में देश में तमिलनाडु का चौथा स्थान है। उन्होंने बताया कि राज्य के वन संसाधन के २२ प्रतिशत हिस्से में बाघ अभ्यारण्य स्थित हैं। वेंकटेशन ने कहा कि हम जानवरों की रक्षा करने में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। जनता के बीच जागरूकता पैदा करने और जानवरों के महत्व को बताने के लिए नियमित अंतराल पर वन विभाग द्वारा जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन क्षेत्रीय वन सर्कल और कार्यालयों द्वारा किया जाता है। विशेषकर वन क्षेत्रों से स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और ग्रामीणों को जंगली जीवों को बिना नुकसान पहुंचाए उन्हें वन क्षेत्र में खदे़डने के आसान तरीकों से अवगत कराया जाता है। उन्होंने कहा कि एक संतुलित पर्यावरण प्रणाली के लिए जंगली पशुओं का होना आवश्यक है। वेंेकटेश ने बताया कि इस वर्ष अखिल भारतीय टाइगर जनगणना की जा रही है। यह जनगणना हर चार वर्ष में एक बार की जाती है। अंतिम बार वर्ष २०१४ में यह जनगणना की गई थी। जिसके दौरान अनुमान लगाया गया था कि भारत में २,२२६ में से २२९ बाघ तमिलनाडु में रह रहे थे। यह अभ्यास अक्टूबर तक खत्म हो जाएगा जिसके बाद सरकार वास्तविक घोषणा करेगी बाघों की संख्या, उन्होंने कहा।उन्होंने आगे कहा कि जब संरक्षण की बात आती है तो बाघों के आवास की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हम एक ही क्षेत्र में बाघों को सीमित नहीं रख सकते हैं। बाघों की संख्या बढाने के लिए वन क्षेत्रों में पर्यावरण प्रणाली संतुलि रहनी चाहिए और बाघों को समुचित आहार मिल सके इसके लिए वन क्षेत्रों में घास और पत्तियों यानि की शाकाहारी पशुओं की संख्या पर्याप्त होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि राज्य के वन क्षेत्रों में बाघ संरक्षण के लिए वाटरशेड प्रबंधन पर विशेष बल दिया जा रहा है। बाघों को गर्मी के मौसम में भी पर्याप्त पानी मिलता रहे इसके लिए प्राकृतिक दिखने वाले जल शेडों का निर्माण किया जा रहा है और इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि इन जल शेडों में पर्याप्त जलस्तर बना रहे।आमतौर पर जिन जंगलों में बाघ रहते हैं वह हरा भरा होना चाहिए और उनमें पर्याप्त पानी होना चाहिए। यदि जंगल हर-भरा होगा तो ही पे़ड पौधों की पत्तियों और घास खाने वाले जानवरों की संख्या बनी रहेगी जोकि बाघों के प्रमुख आहार होते हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के सभी वन क्षेत्रों में बाघों पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। जंगली क्षेत्रों से आवसीय क्षेत्रों में अक्सर भटक कर आने वाले बाघों पर जीपीएस टैग लगाए गए हैं। पिछले दो वर्ष की अवधि के दौरान वन क्षेत्र में गंभीर रुप से जख्मी पाए गए तीन बाघों को समुचित उपचार दिया गया है और उसके बाद उन्हें वापस वन क्षेत्र में छो़डा गया है।बाघ-मानव संघर्ष के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, आखिरी घटना दो साल पहले सामने आई थी। अब, लोगों को इस बारे में शिक्षित किया जा रहा है और इस प्रकार की घटनाओं में काफी गिरावट आई। प्रसन्नता की बात है कि भी सहयोग कर रही है। आरक्षित वन क्षेत्र में चारा उपलब्धता सुनिश्चित किया जा रहा है ताकि बाघ भटक कर आवासीय क्षेत्रों में नहीं आए। इसके साथ ही हम भावनात्मक और बौद्धिक जागरूकता भी पैदा कर रहे हैं। जंगली क्षेत्रों में बीमार होने वाले या आपसी ल़डाई में घायल होने वाले बाघों की देखरेख के लिए पशु चिकित्सकों की संख्या में भी बढोत्तरी की गई है।

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