संघर्ष के दिन

अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए ये बहुत संघर्ष के दिन हैं

संघर्ष के दिन

निस्संदेह शिक्षित माताएं अपनी संतानों को भी उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करती हैं

अफगानिस्तान में तालिबान शासन महिलाओं के लिए त्रासदी साबित हो रहा है। खासतौर से उन महिलाओं के लिए, जो पढ़ना चाहती हैं, नौकरी कर अपने परिवार को सहारा देना चाहती हैं। मानव समाज समय के साथ प्रगति करता हुआ ज्ञान-विज्ञान में इतना आगे बढ़ पाया है तो उसके मूल में शिक्षा है। जिन देशों में महिलाओं और पुरुषों के लिए शिक्षा और रोजगार के जितने समान अवसर उपलब्ध हैं, वहां जीवन-स्तर भी उतना ही बेहतर है। इसके विपरीत, जहां महिलाओं को शिक्षा, कामकाज के अवसरों से वंचित रखा गया, वहां सर्वसमाज ने इसकी भारी कीमत चुकाई। 

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अगर कोई देश अपनी आधी आबादी के लिए पढ़ाई-लिखाई और रोजगार की संभावनाओं पर ही ताला लगा दे तो उसका भविष्य कैसा होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है। तालिबान को अपने फैसले पर पुन: विचार करना चाहिए और महिलाओं को भी कॉलेज, यूनिवर्सिटी की पढ़ाई, दफ्तरों में काम करने की इजाजत देनी चाहिए। अन्यथा (पाबंदी का) यह फैसला अफगानिस्तान को भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाएगा। 

एक अफगान प्रोफेसर ने तो लाइव कार्यक्रम में अपना प्रमाणपत्र फाड़कर फेंक दिया कि अब उनके देश में इसकी कोई जरूरत नहीं है! प्रोफेसर का आक्रोश स्वाभाविक है। इक्कीसवीं सदी में यह पढ़कर ही आश्चर्य होता है कि महिलाओं को पढ़ाई और नौकरी से रोका जा रहा है! 

सऊदी अरब समेत कई इस्लामी देश महिलाओं को यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। वहां महिलाएं ऊंची से ऊंची डिग्रियां ले रही हैं। वे शॉपिंग मॉल, कंपनियां चला रही हैं। उनके पास बड़ी और महंगी कारें हैं, जो उन्होंने अपनी कमाई से खरीदी हैं। निश्चित रूप से इन सुधारों का उनके देश को लाभ मिलेगा।

भारत में महात्मा ज्योतिबा राव फुले, सावित्री बाई फुले, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, भगिनी निवेदिता, रवींद्रनाथ टैगोर, डॉ. भीमराव अंबेडकर आदि ने महिला शिक्षा और अधिकारों के लिए अपना जीवन खपा दिया था। उनके तप और त्याग का परिणाम हम आज देख रहे हैं। भारत की नारीशक्ति स्कूलों, बैंकों, कारखानों, पुलिस, सेना, अंतरिक्ष विज्ञान समेत सभी क्षेत्रों में कार्यरत है। कई कंपनियों की सीईओ महिलाएं हैं। वे उन्हें बहुत अच्छी तरह से संचालित कर रही हैं। हाल में एक बच्ची सानिया मिर्जा ने तो एनडीए की परीक्षा में इतिहास रच दिया था। 

भारत की इन बेटियों ने जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं, वे अफगानिस्तान की बेटियां भी प्राप्त कर सकती हैं। इसके लिए जरूरी है कि उनके लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे खोले जाएं, कामकाज के मौके दिए जाएं। शिक्षा से आने वाला बदलाव कुछ धीमा जरूर होता है, लेकिन यह कालांतर में देश की कायापलट कर सकता है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, जापान, न्यूजीलैंड आदि देशों ने पिछली सदी में महिला शिक्षा और रोजगार को लेकर महत्वपूर्ण फैसले लिए थे, जिनके परिणाम आज सबके सामने हैं। 

निस्संदेह शिक्षित माताएं अपनी संतानों को भी उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करती हैं। इसका प्रतिफल संपूर्ण समाज और देश को मिलता है। अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे बंद होंगे तो जाहिर-सी बात है कि भविष्य में वहां न तो कोई महिला चिकित्सक होगी और न ही नर्स। सवाल है- उस स्थिति में महिलाएं उपचार के लिए कहां जाएंगी, खासतौर से प्रसव के समय? इससे मातृमृत्यु दर में उछाल आएगा और इसका खामियाजा कई परिवारों को भुगतना होगा। 

अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए ये बहुत संघर्ष के दिन हैं, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि जैसे अन्य देशों में सकारात्मक बदलाव आए, उसी तरह अफगानिस्तान में भी आएंगे और महिलाओं को शिक्षा तथा रोजगार जैसे अधिकार मिलेंगे।

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