क्या मोहन भागवत को महंगा पड़ेगा सॉफ्ट हिंदुत्व का अलाप?

भागवत ने पिछले दिनों हर मस्जिद के नीचे मंदिर न खोजने की नसीहत दी थी

क्या मोहन भागवत को महंगा पड़ेगा सॉफ्ट हिंदुत्व का अलाप?

Photo: RSSOrg FB Page

मनोज कुमार अग्रवाल
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हाल ही में पुणे में मोहन भागवत में सहजीवन पर आयोजित व्याख्यानमाला में एक ऐसी टिप्पणी की जिसमें उन्होंने कहा कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की जरूरत नहीं है| उनके इस बयान पर उठा तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है| हिंदू समाज के ही कई संतों ने ऐतराज जताया है| शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और रामभद्राचार्य ने आपत्ति जताई है| यहां तक कि भाजपा सांसद साक्षी महाराज का भी कहना है कि कौन नहीं जानता कि मंदिरों को तोड़कर ही मस्जिदें बनाई गई हैं| उन्होंने कहा कि कुतुब मीनार में तो लिखा ही गया है कि इसका निर्माण २७ मंदिरों को तोड़कर किया गया है|

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों हर मस्जिद के नीचे मंदिर न खोजने की नसीहत दी थी| इसके अलावा उन्होंने कहा था कि कुछ राम मंदिर जैसे मामले खड़े करके हिंदुओं के नेता बनना चाहते हैं| ऐसा नहीं होने दिया जा सकता| मोहन भागवत के इस बयान पर विपक्ष ने भाजपा और अन्य संगठनों से इस पर अमल करने को कहा है| वहीं आरएसएस में अंदरखाने की मोहन भागवत के बयान से असहमति जताई जा रही है| यही नहीं आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर ने तो अपने ताजा में अंक में संभल के मुद्दे को ही कवर स्टोरी बनाया है| संभल को पत्रिका के पहले स्थान पर जगह दी गई है, जिसका शीर्षक है- सभ्यतागत न्याय की लड़ाई|संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि यह लड़ाई तो किसी का भी व्यक्तिगत या सामुदायिक अधिकार है| पत्रिका का कहना है कि कोई भी अपने पूजा स्थलों को मुक्त कराने के लिए कानूनी ऐक्शन की मांग कर सकते है| इसमें आखिर क्या गलत है| यह तो हम सभी को मिला एक संवैधानिक अधिकार है| इसके अलावा पत्रिका ने इसे सोमनाथ से संभल तक की लड़ाई से जोड़ दिया है| मैगजीन के कवर पेज में संभल की एक तस्वीर को रखा गया है| पत्रिका में लिखा गया है कि संभल में जो कभी श्री हरिहर मंदिर था, वहां अब जामा मस्जिद बनी है| उत्तर प्रदेश के इस ऐतिहासिक कस्बे में ऐसे आरोप ने नया विवाद खड़ा कर दिया है| आपको जानकारी देते हैं १९७५ के अंत में जब देश तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लगाए हुए आपातकाल से जूझ रहा था, पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़ कर ’मोहन राव मधुकर राव भागवत’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गए| वह विभिन्न पदों से गुजरते हुए २००९ से इसके सरसंघ चालक हैं तथा समय-समय पर धर्म, समाज और राजनीति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय देते रहते हैं| इसी कड़ी में २० दिसम्बर को मोहन भागवत ने पुणे में आयोजित ’सह जीवन व्याख्यान माला’ में ’भारत विश्वगुरु’ विषय पर व्याख्यान दिया और भारतीय समाज की विविधता को रेखांकित करते हुए मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठाने पर चिंता व्यक्त की है|

उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि ऐसे मुद्दों को उठाकर वे हिन्दुओं के नेता बन सकते हैं, यह स्वीकार्य नहीं है| राम मंदिर का निर्माण इसलिए किया गया क्योंकि यह सभी हिन्दुओं की आस्था का विषय था|राम मंदिर होना चाहिए था और हुआ परंतु रोज नए मुद्दे उठाकर घृणा और दुश्मनी फैलाना उचित नहीं| हर दिन एक नया विवाद उठाया जा रहा है| इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता|

अपने भाषण में उन्होंने सब लोगों को अपनाने वाले समाज की वकालत की और कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत देश सद्भावना पूर्वक एक साथ रह सकता है| ’रामकृष्ण मिशन’ में ’क्रिसमस’ मनाया जाता है| केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि हम हिंदू हैं| भागवत के अनुसार बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टरता लेकर आए और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आ जाए लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है| कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? यहां सभी समान हैं| जरूरत स्द्भावना से रहने और कायदे- कानूनों का पालन करने की है| उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व ३ जून, २०२२ को भी श्री भागवत ने नागपुर में स्वयंसेवकों की एक सभा से पहले अपने संबोधन में कई संदेश दिए थे जिनमें उन्होंने श्रद्धा और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर हिन्दू दावे का समर्थन किया था, परंतु इसके साथ ही बलपूर्वक यह भी कहा था कि ’राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ देश भर में किए जा रहे ऐसे दावों का समर्थन नहीं करता|

उन्होंने इस तथ्य को दोहराया था कि आक्रमणकारियों के जरिए इस्लाम भारत में आया था, लेकिन जिन मुसलमानों ने इसे स्वीकार किया है वे बाहरी नहीं हैं, इसे समझने की जरूरत है| भले ही उनकी प्रार्थना (भारत से) बाहर से आई हो और वे इसे जारी रखना चाहते हैं तो अच्छी बात है| हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है| मस्जिदों में जो होता है, वह भी इबादत का ही एक रूप है| ठीक है यह बाहर से आया है| भागवत के अनुसार हिन्दुओं के दिलों में खास महत्व रखने वाले मंदिरों के मुद्दे अब उठाए जा रहे हैं... हर रोज कोई नया मुद्दा नहीं उठाना - चाहिए| झगड़े क्यों बढ़ाते हैं? ’ज्ञानवापी’ को लेकर हमारी आस्था पीढ़ियों से चली आ रही है| हम जो कर रहे हैं वह ठीक है परंतु हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों ? उधर सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा है कि मोहन भागवत जी ने सही कहा है परंतु उनकी बात कोई नहीं सुनता| श्री भागवत की उक्त बातों पर कोई टिप्पणी न करते हुए हम इतना ही कहेंगे कि भाजपा की अभिभावक संस्था ’राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के प्रमुख होने के नाते मोहन भागवत का हर कथन मायने रखता है|हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि मोहन भागवत चर्चा में बने रहने के लिए अक्सर लीक से हटकर बयानबाजी करते हैं| क्या भागवत संघ को दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मकता वादी दर्शन से पृथक कर गांधी वादी दर्शन को स्वीकारने की पहल करना चाहते हैं? या वह स्वयं संघ के महात्मा गांधी बनने की राह चुन रहे हैं?

भागवत के इस नए दर्शन पर सभी संबंधित पक्षों को विचार करने की आवश्यकता है क्या भागवत ने विवादों के पैदा होने से आशंकित हैं और सच्चाई से मुंह चुराने की राह चुन चुके हैं और उसी को संघ की नीति बतौर रख रहे हैं| लेकिन उनकी इस सोच को लेकर संघ के भीतर भी एक धड़ा असहमत और असहज महसूस कर रहा है|संघ के मुखपत्र में असहमति स्पष्ट परिलक्षित होती है अब देखना होगा कि यह असहमति उनकी मान्यताओं को बदलाव के लिए मजबूर करेगी या उनकी सोच को अंगीकार कर घुटने टेक देगी|

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